Thursday, May 20, 2010

ये नेता प्रजाति का प्राणी हर देश में एक जैसा ही है !


नेता प्रजाति का प्राणी हर देश में एक जैसा ही होता है यह बात एक बार फिर से सिद्ध कर दिखाई है, थाईलैंड में मौजूदा प्रधानमंत्री अभिसित वेज्जाजिवा की सरकार के विरुद्ध पिछले मार्च से 'रेड सर्ट' आन्दोलन का नेतृत्व कर रहे वहाँ के विपक्षी नेतावों ने। यह आन्दोलन सही था अथवा गलत, इस बारे में मैं कुछ नहीं कहूंगा । हाँ, इतना जरूर बता दूं कि इस आन्दोलन में हिस्सा ले रहे ज्यादातर आन्दोलनकारी वहाँ के किसान और शहरी तबके के गरीब लोग थे।

मध्य मार्च से शुरू हुआ यह आन्दोलन थाईलैंड को अराजकता के दौर में धकेल चुका है, और अब तक करीब ७५ लोग इसमें मारे जा चुके है, व करीब १८०० लोग घायल हुए है। जिनमे से ४५ लोग सिर्फ सैन्य बलों के साथ झडपों में मारे गए। हाल ही में इन विपक्षी आन्दोलनकारी नेताओ ने सरकार की वार्ता की पहल को ठुकरा दिया था, आन्दोलनकारी लोगो ने भी मौत को गले लगाने, किन्तु आन्दोलन ख़त्म न करने का संकल्प लिया था । परिणाम स्वरुप पिछले दो दिनों से थाईलैंड की राजधानी बैंकॉक में सेना ने बल प्रयोग कर इन आन्दोलनकारियों को खदेड़ दिया। जिसमे ७ लोग मारे गए, उनमे से एक इटली का फोटोग्राफर भी था।

हैरानी की बात यह थी कि लोगो को मौत की हद तक लड़ने के लिए भड़काने वाले इन रेड सर्ट आन्दोलनकारी नेतावों ने जब अपनी जान पर बन आते देखा तो झटपट समर्पण कर दिया। आन्दोलन के प्रमुख नेताओ नत्तावुत सैकुआ और सोम्योत प्रुक्सकसेम्सुक ने अपनी गिरफ्दारी देते हुए लोगो का धन्यवाद किया और उन्हें अपने -अपने घरों को लौट जाने की अपील की। उनकी इस हरकत पर वहाँ के आन्दोलनकारी फूट-फूट कर रो पड़े ;

(अब रो के भला क्या फायदा, नेता तो अपना काम कर गया , छवि गूगल से साभार )

मेरी जानकारी के मुताविक मजे की बात तो यह है कि मरने वालों में से एक भी नेता नहीं मरा। लोगो को हिंसक वारदातों के लिए भड़काने वाले, और ७५ लोगो की मौत के जिम्मेदार ये नेता अब आने वाले समय में हो सकता है कि थाईलैंड की सरकार की गद्दी भी पा जांए। और फिर ये अपने घर भरेंगे, मगर इस आन्दोलन में मरा कौन ? नुकशान किसका हुआ ? और लुटा कौन? यह आन्दोलनकारी नेताओ के लिए कोई ख़ास अहमियत नहीं रखता। साधारण सी बात है कि एक आम आदमी और देश को यह सब भुगतना पडा और भविष्य में भी भुगतना पडेगा । तो ये नेता की प्रजाति ही कुछ ऐसी है, दुनिया भर में।

अब एक गंभीर सवाल आप लोगों और अपने देश की जनता से ; हमारी सरकार कहती है कि वे माओ और नक्सली आतंकवादियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं करेगी, क्योंकि वे अपने ही लोग है। अब मेरा सवाल , मान लो अगर आने वाले समय में कभी भी, किसी भी वजह से, हमारे देश में भी थाईलैंड जैसी कोई स्थिति बन जाती है, लोग इसी तरह का कोई आन्दोलन कर सड़क पर उतर आते है, पुलिस व्यवस्था नाकाम साबित होती है, तो क्या तब भी सरकार उन आन्दोलनकारियों( जोकि अपने ही देश के लोग होंगे ) के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं
करेगी ?

26 comments:

  1. बिलकुल सही विश्लेषण गोदियाल जी!लेकिन ये नेता नामक प्राणी एक अनावश्यक मजबूरी सी बनता जा रहा है!वैसे ये प्राणी "वर्ण-वयस्था" के हिसाब से किस वर्ण में आएगा......?

    कृप्या हर वर्ण के सम्मान के बारे में सोच-विचार कर बताईयेगा!

    कुंवर जी,

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  2. हमारी सरकार कहती है कि वे माओ और नक्शली आतंकवादियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं करेगी, क्योंकि वे अपने ही लोग है...

    माना कि अपने ही लोग हैं पर जिस रास्ते पर चल रहे हैं और निर्दोष लोगोंको मार रहे हैं तो क्या वो मरने वाले निर्दोष अपने नहीं हैं? उन्हें बचाना भी तो सरकार कि ज़िम्मेदारी है....ये कह कर सरकार अपनी ज़िम्मेदारी से मुंह मोड रही है..

    सार्थक प्रश्न...

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  3. बहुत खूब.......
    बढ़िया आलेख........

    समय मिले तो, कुछ शब्द ठीक कर लीजियेगा , तकनीकी कारणों से स श होगया है कई जगह

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  4. शुक्रिया खत्री साहब, त्रुटि सुधार कर रहा हूँ !

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  5. नेता प्रजाति का प्राणी हर देश में एक जैसा ही होता है
    aapne bilkul sahi kaha sir
    raha sawal aapke sawal ka to....iska jawab neta jee to aisa hin denge jo unki gandi rajniti ko chalate rahe..anytha ham uwa to is masle ko sena ki madad se ghante bhar me dur karna chahenge.

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  6. दरअसल नेता और नेतृत्व का जन्म जुल्म के खिलाप लड़ने और गरीब व लाचार लोगों के हक़ को उन तक पहुँचाने के लिए हुआ था / लेकिन आज इसका मतलब एकदम विपरीत हो गया है / गरीबों पे जुल्म और जुल्म व आतंक की सुरक्षा बस इसका असल मकसद बन गया है /

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  7. आपसे सहमत हु जी

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  8. एक आम आदमी और देश को यह सब भुगतना पडा और भविष्य में भी भुगतना पडेगा । तो ये नेता की प्रजाति ही कुछ ऐसी है.

    शासन में आने के लिए, नेताओं का प्रिय शगल है ये.

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  9. सादर वन्दे !
    भूख बेचता हूँ मै भूख बेचता हूँ
    है कोई बाकी मै खूब बेचता हूँ
    कटने से पहले सुनो कौन हूँ मै
    मै हूँ नेता ! जो लहू बेचता हूँ
    रत्नेश त्रिपाठी

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  10. आप दिल्ली में या कहीं भी किसी नेता के घर सामने उसके खिलाफ नारे लगा के दिखा दीजिये ना पुलिस की लाठिया कमर और सर पर पड़े तो कहना ................ यह सब बाते है कि अपने लोग है इसलिए सेना का प्रयोग नहीं होगा सब वोट बैंक की राजनीती है |

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  11. नेता नामक प्राणी ........बिलकुल सही विश्लेषण .

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  12. sahi kaha..ye to bas haddiyan fenkte hai unke lalach me bhaunkne waale kutte har jagah hain...

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  13. सही विश्लेषण ...बात में दम है ...

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  14. बहुत सुन्दर पोस्ट!
    सटीक और खरी बात लिखी है!

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  15. ये बात तो सही है कि नेता प्रजाति का प्राणी हर देश में एक जैसा ही होता है...लेकिन हिन्दुस्तानी नेता कुछ अधिक श्रेष्ठ प्रजाति में गिने जाते हैं

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  16. आप से सहमत है जी,
    हमारी सरकार कहती है कि वे माओ और नक्शली आतंकवादियों के खिलाफ सेना का इस्तेमाल नहीं करेगी, क्योंकि वे अपने ही लोग है...जी यह लोग इन नेताओ के इशारे पर ही चलते है इस कारण यह लोग तो इन के अपने हुये!!!
    हम आप आम जनता इन की अपनी नही, वो भॆड बकरियो की तरह से है ओर हमे भुनने मै यह समय नही खराब करेगे

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  17. बिल्कुल सटीक विष्लेष्ण किया है आपने. शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  18. गौदियाल जी ... अभी ३ दिन पहले ही मैं थाई लेंड़ से वापस आया हूँ और वहाँ के निवासी बताते हैं की ये समस्या चीन के समर्थन की वजह से अधिक है ... वो ही इन लोगों को हथियार मुहैया करता है ... और इससे जुड़े राजनेता बस अपने फाय्दे की सोचते हैं ... आपने सच लिखा है नेता सब जगह एक से हैं ...

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  19. किसी ने बिलकुल सही लिख है सर.. कि नेता... बदबू देता..

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  20. नेता नामक प्राणी ........बिलकुल सही विश्लेषण .

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  21. सच में नेता कहीं भी हो...नेता नेता ही होता है. :)

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  22. असली मीनाकुमारी की रचनाएं अवश्य बांचे
    फिल्म अभिनेत्री मीनाकुमारी बहुत अच्छा लिखती थी. कभी आपको वक्त लगे तो असली मीनाकुमारी की शायरी अवश्य बांचे. इधर इन दिनों जो कचरा परोसा जा रहा है उससे थोड़ी राहत मिलगी. मीनाकुमारी की शायरी नामक किताब को गुलजार ने संपादित किया है और इसके कई संस्करण निकल चुके हैं.

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  23. बहुत सही कहा गोदियाल जी,नेता कभी नही मरते,हमेशा जनता ही मरती है।

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  24. गोदियाल जी, सही लिखा है.. लेकिन भारत जैसे कहीं नहीं मिलेंगे...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।