Tuesday, May 4, 2010

कसाब, हम और हमारा क़ानून- कुछ सवाल !

कल मैंने कसाब पर एक छोटा सा लेख लिखा था ! और उसमे जो लिखा था वह उस एक आम भारतीय के नजरिये से था, जो यह मानता है कि इस दरिन्दे ने अनेक निर्दोष मासूमों की जिन्दगी छीन ली ! मगर एक दूसरा पहलू भी है, जिसे मैं आज एक समीक्षक के नजरिये से प्रस्तुत करना चाहता हूँ ; जैसा कि आप सभी को मालूम है कि २६ नवम्बर, २००८ को दस पाकिस्तानियों ने इस देश की व्यावसायिक राजधानी कहे जाने वाले महानगर, मुंबई पर एक बड़े ही सुनियोजित ढंग से धावा बोल दिया था और सरकारी आंकड़ों के मुताविक १६६ बेगुनाहों का क़त्ल कर दिया था, जिनमे से अनेक पुलिस और सुरक्षा बलों के जवान भी थे !

उसके बाद जैसा कि अमूमन होता है, हमने और हमारे बिना रीढ़ के नेतावों ने कुछ समय तक काफी हुंकारें भरी, भभकिया दी अपने पड़ोसी दुश्मन मुल्क को ! और उसके बाद....?? सब पहले जैसा........!! और करने बैठ गए अगले हमले का इन्तजार ! खैर, इन बातों को छोडिये, लेकिन अगर आपको याद हो तो हमारी जांच एजेंसियों, हमारे शीर्षस्थ नेतावो, और यहाँ तक कि अमेरिकी जांच और खुफिया एजेंसियों ने कई बार यह बात स्पष्ट की है कि इस पूरे प्रकरण में पाकिस्तान में बैठे आतंकी आंकाओ के अलावा पाकिस्तानी सेना, और आई एस आई ( जिसका सीधा अर्थ हुआ कि पाकिस्तान मुल्क और उस मुल्क की सरकार ) का भी सीधा हाथ था, अर्थात यह हमला पाकिस्तान ने किया था! आप शायद यह भी नहीं भूले होंगे कि १९९९ में कारगिल जब शुरू हुआ था तो पाकिस्तान ने सीधे तौर पर यही कहा था कि वह हमला भी आतंकियों ने किया था, यहाँ तक कि उसने उस युद्ध में मरे अपने सैनिक भी वापस नहीं लिए और उनके अंतिम संस्कार का काम भी भारतीय सेना को ही करना पडा !

खैर, मैं इसके ज्यादा डिटेल में नहीं जाना चाहता, बल्कि इसे सिर्फ यहाँ भूमिका के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ ! अब बात करते है, युद्ध बंदियों की ! इस बारे में बीसवीं सदी के प्रारम्भ से लेकर १९४९ तक जनेवा कन्वेंशन और अन्य फोरमों पर अन्तराष्ट्रीय संस्थाओं ने समय-समय पर परिभाषित किया है! अन्तराष्ट्रीय क़ानून कहता है कि "prisoners of war, in international law, persons captured by a belligerent while fighting in the military. International law includes rules on the treatment of prisoners of war but extends protection only to combatants. This excludes civilians who engage in hostilities (by international law they are war criminals; see war crimes) and forces that do not observe conventional requirements for combatants (see war, laws of)."

युद्ध बंदी की उपरोक्त परिभाषा से यह स्पष्ट है कि युद्ध बंदी ( prisoners of war ) वह है जो किसी देश की मिलिट्री की तरफ से लड़ रहा हो, और जिसे बंदी बना लिया गया हो! आपको यह भी मालूम होगा कि द्वितीय विश्व युद्ध में जापान और उसके बाद वियतनाम और कोरिया युद्ध में तो इन अन्तराष्ट्रीय नियोम कानूनों की तो धज्जियां उडी ही, मगर अपने पड़ोसी मुल्कों, चीन और पाकिस्तान के साथ युद्ध में इन कानूनों को कम ताक पर नहीं रखा गया ! १९७१ के बांग्लादेश युद्ध के बाद अपनी दरियादिली दिखाकर हमारे नेताओ ने तो पाकिस्तान के एकलाख युध्बंदी लौटा दिए, मगर कारगिल युद्ध में हमारे युवा वीर सैनिक लेफ्टिनेंट सौरभ कालिया के साथ पाकिस्तान ने क्या किया, इतना तो शायद आप भी नहीं भूले होंगे ! खैर, यह भी छोडिये !

अब मुख्य बात पर आता हूँ , आपको फिर याद दिलाना चाहता हूँ कि १९९९ में कारगिल युद्ध के बाद हमारे उदार दिल (बिना रीढ़ के ) नेतावों ने जहां पाकिस्तान के युद्ध में मारे गए सैनिको और आतंकियों ( वहाँ दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं ) को भारतीय सीमा में ही खुद दफनाया, वहीं पाकिस्तान के अपने युद्ध बंदियों को सीधे तौर पर वापस लेने से मना करने पर उन्हें अन्तराष्ट्रीय रेड-क्रास के हवाले कर पाकिस्तान को लौटा दिया था ! तो अब चंद सवाल ;

-क्या कसाब एक युद्ध बंदी नहीं है ( उपरोक्त कारगिल के और इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए कि जिसमे हमारे देश के शीर्षस्थ नेतावो ने पाकिस्तान पर सीधा आरोप लगाया था कि मुंबई हमले में पाकिस्तानी सेना और आईएसआई का हाथ था) ?
-कसाब कोई भाड़े का कातिल नहीं था, जिसने पैसे के लिए अथवा किसी व्यक्तिगत बदले के लिए यहाँ लोगो का क़त्ल किया ! उसे दुश्मन मुल्क ने तैयार करके इस देश पर हमले के लिए भेजा था, और जो हमले के वक्त बंदी बना लिया गया, तो क्या किसी सिविल कोर्ट को इस पर अपना फैसला देने का अधिकार है ? यदि है तो फिर कारगिल के बंदियों को क्यों लौटाया गया, उनपर क्यों नहीं मुकदमा चला ? यह ज्यादती सिर्फ कसाब के साथ ही क्यों ?
-कसाब, भी तो पाकिस्तानी सेना की तरफ से कारगिल की तरह इस देश पर अपने देश से चलकर युद्ध करने आया था! अपने देश के निर्देशों पर उसने हमला किया, वह लड़ा, पकड़ा गया, अगर हम उस युद्ध का प्रतिवाद ठीक से नहीं कर पाए ( पाकिस्तान को उसकी भाषा में जबाब देकर ) तो इसमें कसाब का क्या दोष ?
-जनरल मुशरफ तो कारगिल का अकेला आर्किटेक्ट था, कसाब ने तो सिर्फ १६६ लोगो को मारा, मुशरफ ने तो हजारों लोगो का क़त्ल किया/ करवाया ! फिर उसकी क्यों हमने दिल्ली और आगरा में लाल कारपेट बिछाकर आवाभगत की ?

अरे और तो और,इतिहास गवाह है कि जिस इंसान ने हमें सच में नरक की सीमा तक सताया, हमने उसके सम्मान में अपने देश की राजधानी की सड़क का नाम "औरंगजेब रोड " रखा है! क्या कसाब भी हमसे आगे चलकर कुछ ऐसी ही उम्मीद कर सकता है ?

15 comments:

  1. यह भारत है साहब, जहां कुछ भी हो सकता है. बुद्धिविहीन और रीढ़विहीन लोगों की कमी नहीं यहां. यह देश अभिशप्त है टुकडों में बंटने के लिये. यहां के लोग अभिशप्त हैं दुख झेलने के लिये...

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  2. जो यह जवाब देंगे वो बेचारे इसके सिवा और कुछ नहीं कर सकते,और जो कुछ कर सकते है वो यहाँ क्या कही भी जवाब नहीं देंगे.........

    कुंवर जी,

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  3. kunwar ji se bilkul sahmat hu godiyaal sahab

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  4. indian citizen aur kunwar ji dono se sahmat...........kahin koi asar kisi baat ka nahi hona sirf apni kursi aur apni satta se sabko matlab hai desh ya janta jaaye bhaad mein kyunki janta marne ke liye hoti hai aur kuch mar bhi gaye to kya fark padta hai wo bache huye hain .........ye to sirf mumbai hamle ki baat hai desh ki vyavsayik nagri thi isliye magar delhi mein jo hamle huye aur wahan jo mare gaye unke faisle ab tak nahi huye 5 saal ho gaye aur to chodo wo sansad par hamla karne wale ko abhi ab tak fansi nahidi gayi to kya guarantee phir bechari sarkar kisi davab mein aakar majboor ho jaye kyunki ye to nichli adalat ka faisla aayega abhi to high aur supreme court aur uske upar rashtrpati ji baithe hain to sochiye kya hona hai siway sarkari damad banne ke.

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  5. जब तक इस देश में कुशिक्षा के परिणामस्वरूप उत्पन्न सत्ता के लोभी स्वार्थी राजनीतिबाजों का वर्चस्व बना रहेगा, देश का अहित होता ही रहेगा।

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  6. अजी एक बात मेरी समझ मै नही आती एक नेता उस रात होटल मे जा कर किसी को निकाल कर लाया था, तो उस नेता से क्यो नही पुछताछ कि गई कि क्या वहा उस के जवाई थे जिन्होने उस कमीने को कुछ नही कहा, ओर जिसे निकाल कर लाये वो कोन था, ओर इस नेता का क्या रिशता था, यानि कसाब से पहले उसे पकडा जाता..... लेकिन सच मै भारत मै सिर्फ़ जंगल का राज ही है, एक रोटी चुराने वाले को सजा ओर देश के गद्दरो को दुशमनो को ....

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  7. Let him be hanged till death first !...Otherwise your idea will delay justice to many families of 26/11.

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  8. Only in India an honest CM like Modi is being grilled for 9 hours by SIT .Mrs Sonia Gandhi called him 'Merchant of death'. Ambica Soni is calling him frustated. Ignorants , biased and jealous people are bashing and harassing Modi

    but Alas !

    Nawaab Kasaab is living with royal treatment in our country.

    Mera bharat sachmuch mahaan hai !

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  9. विचारणीय आलेख...स्थितियां दुर्भाग्यपूर्ण ही कहीं जायेंगी.

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  10. राजधानी की सड़क का नाम "औरंगजेब रोड " रखा है!

    यह तो बता ही नहीं था. अकबर पर न्यौछवर होना तो समझ आता है मगर औरंगजेब !!!! फिर गजनी, गोरी ने क्या पाप किये थे?

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  11. गोदियाल साहब,
    कभी मौका लगे तो मि.मथाई(मि.नेहरू के वैयक्तिक सचिव) के द्वारा लिखित पुस्तक ’all that glitters.....' पढ़कर देखियेगा। समय, श्रम व मूल्य के लिये अफ़सोस नहीं होगा।
    इन सड़कों के नामकरण के बारे में मैं भी बहुत हैरान रहता हूं, लेकिन ये व्यथा सिर्फ़ हमारी पीढ़ी तक ही रहेगी, क्योंकि अब उस पीढ़ी का समय है जिसने फ़ैब्रिकेटिड इतिहास ही पढ़ा और सुना है।
    अफ़सोस इस बात का है कि अल्पसंख्यक वर्ग भी जाने अनजाने इन कलुषित राजनेताओं के षडयंत्र का शिकार हो रहा है और वस्तुस्थिति को नहीं समझ रहा है।

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  12. मो सम कौन जी शुक्रिया, कोशिश करूंगा, वैसे पता नहीं क्यों मुझे कुछ ऐसा ध्यान सा आ रहा है की इस किताब के बारे में मैंने कही नेट पर भी पढ़ा था , ठीक से याद नहीं आ रहा !

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  13. महान पोस्ट
    कृपया मेरे ब्लॉग पर भी पधारें और मुझे कृतार्थ करें

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  14. बढ़िया लेख.....आक्रोश साफ़ झलकता है....

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।