Wednesday, May 15, 2024

शून्य प्रत्यय !









शहर में किराए का घर खोजता 

दर-ब-दर इंसान हैं 

और उधर,

बीच 'अंचल' की खुबसूरतियों में

कतार से, 

हवेलियां वीरान हैं।

'बेचारे' कहूं या फिर 'हालात के मारे',

पास इनके न अर्श रहा न फर्श है,

नवीनता का आकर्षण ही

रह गया जीने का उत्कर्ष है, 

इधर तन नादान हैं 

और उधर,

दिलों के अरमान हैं।

बीच 'अंचल' की खुबसूरतियों में

कतार से, 

हवेलियां वीरान हैं।।

2 comments:

  1. हवेलियाँ कुछ दे नहीं पा रही हैं शायद |

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    1. सर, आपका दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगा।🙏 वजह बहुत सरल है। ब्लॉग अथवा ब्लागिंग दुनिया में आपसे बढ़कर नि: स्वार्थ बलागर नहीं मिला क्योंकि यहां give and take का दौर है। एक बार पुनः धन्यवाद 🙏

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।