दरिया-ऐ-इश्क, प्रीत दर्शाने की, फरमाइश अच्छी नही,
दिल की बात लव पे लाने की, सिफारिश अच्छी नहीं।
मंजूर वो जो बे-गरज कहें निगाहें,गेसुओं की ओंट में,
अंजुमन में आने की अर्ज, ये गुजारिश अच्छी नही ।
मजमा-ए-महफ़िल करें क्यों, प्रेम की पहचां उजागर ,
मुहब्बत की नजर,जज्बातों की नुमाइश अच्छी नहीं।
दरमियां मुहब्बत के ये देखिये,भरोसा न टूटे कभी ,
यकीं दिलाने को ये रिश्तों की पैमाइश अच्छी नहीं।
पैमानो में भरकर दर्द को, क्यों भला छलकायें हम,
मद भरी आँखों से बेमौसमी, हर बारिश अच्छी नहीं।
जबरदस्त है भाई साहब |
ReplyDeleteधमकाने वाला अंदाज दिख रहा है-
सादर ||
अंतर्मन में ऐक्य है, तनातनी तन माय |
ReplyDeleteप्यारी सी यह गजल दे, फिर से आग लगाय |
फिर से आग लगाय, बुलाना नहीं गवारा |
रहा खुद-ब-खुद धाय, छोड़ के धंधा सारा |
आँखों में इनकार, मगर सुरसुरी बदन में |
रविकर कर बर्दाश्त, आज जो अंतर्मन में ||
खूबसूरत अंदाज़
ReplyDeleteतेरी सुर्ख आँखों से बेमौसम की बारिश मुझे अच्छी नहीं लगती....क्या खूबसूरत बात कही है आपने
ReplyDeleteजिन्दगी की आपाधापी में व्यस्तता के कारण आपके ब्लॉग पर काफी दिनों बाद आया।
ReplyDeleteमाफी चाहूंगा।
हिन्दी-उर्दू मिश्रित इस उत्कृष्ट रचना के लिये आभार!!
पैमाने में भरकर अलसाये दर्द को, इस तरह न छलकाया करो, तेरी सुर्ख आँखों से बेमौसम की बारिश मुझे अच्छी नहीं लगती।
ReplyDeleteवाहवाह,लाजबाब गजल,,बधाई पी.सी.गोदियाल जी
recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...
वाह, गजब अन्दाज..
ReplyDeleteभरी महफ़िल में छलकते नयन, तेरी पहचान उजागर न कर दे,
ReplyDeleteप्रेम की मंडी में जज्बातों की नुमाइश मुझे अच्छी नहीं लगती।
बहुत खूबसूरत गज़ल
रावत जी, ये आपका बड़प्पन है भैजी! आपके इस स्नेह के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.
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