Friday, January 11, 2013

दरिया-ऐ-इश्क












दरिया-ऐ-इश्क, प्रीत दर्शाने की, फरमाइश अच्छी नही,
दिल की बात लव पे लाने की, सिफारिश अच्छी नहीं। 
  
मंजूर वो जो बे-गरज कहें निगाहें,गेसुओं की ओंट में,
अंजुमन में आने की अर्ज, ये गुजारिश अच्छी नही ।

मजमा-ए-महफ़िल करें क्यों, प्रेम की पहचां उजागर ,
मुहब्बत की नजर,जज्बातों की नुमाइश अच्छी नहीं।

दरमियां मुहब्बत के ये देखिये,भरोसा न टूटे कभी ,
यकीं दिलाने को ये रिश्तों की पैमाइश अच्छी नहीं।

पैमानो में भरकर दर्द को, क्यों भला छलकायें  हम,
मद भरी आँखों से बेमौसमी, हर बारिश अच्छी नहीं। 

10 comments:

  1. जबरदस्त है भाई साहब |
    धमकाने वाला अंदाज दिख रहा है-
    सादर ||

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  2. अंतर्मन में ऐक्य है, तनातनी तन माय |
    प्यारी सी यह गजल दे, फिर से आग लगाय |
    फिर से आग लगाय, बुलाना नहीं गवारा |
    रहा खुद-ब-खुद धाय, छोड़ के धंधा सारा |
    आँखों में इनकार, मगर सुरसुरी बदन में |
    रविकर कर बर्दाश्त, आज जो अंतर्मन में ||

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  3. खूबसूरत अंदाज़

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  4. तेरी सुर्ख आँखों से बेमौसम की बारिश मुझे अच्छी नहीं लगती....क्‍या खूबसूरत बात कही है आपने

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  5. जिन्दगी की आपाधापी में व्यस्तता के कारण आपके ब्लॉग पर काफी दिनों बाद आया।
    माफी चाहूंगा।
    हिन्दी-उर्दू मिश्रित इस उत्कृष्ट रचना के लिये आभार!!

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  6. पैमाने में भरकर अलसाये दर्द को, इस तरह न छलकाया करो, तेरी सुर्ख आँखों से बेमौसम की बारिश मुझे अच्छी नहीं लगती।

    वाहवाह,लाजबाब गजल,,बधाई पी.सी.गोदियाल जी

    recent post : जन-जन का सहयोग चाहिए...

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  7. भरी महफ़िल में छलकते नयन, तेरी पहचान उजागर न कर दे,
    प्रेम की मंडी में जज्बातों की नुमाइश मुझे अच्छी नहीं लगती।

    बहुत खूबसूरत गज़ल

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  8. रावत जी, ये आपका बड़प्पन है भैजी! आपके इस स्नेह के लिए तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ !

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  9. बहुत सुन्दर प्रस्तुति. हार्दिक बधाई.

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।