यह बड़ी ही दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि देश के मौजूदा हालात पर एक नजर, उसके भूत और भविष्य का आंकलन हमारे समक्ष कोई आशातीत, सकारात्मक परिदृश्य प्रस्तुत नहीं करता। ऐसा लगता है कि मानो पिछली सदियों की ही भांति इस तथाकथित शिक्षित और तकनीकि रूप से उन्नत और प्रगतिशील सदी में भी हमने शीतलमय, उत्तेजनाविहीन रहकर सब कुछ भगवान भरोसे ही छोड़ दिया है। अगर मैं गलत नहीं तो ऐसा प्रतीत होता है कि शायद हमारे पास विकल्पों का अकाल सा पड़ गया है।
पशु-पक्षी जगत में चूँकि अपनी एक ख़ासी रूचि है, इसलिए मैं डिस्कवरी एवं नेशनल जियोग्राफिकल चैनल बड़े ध्यान से देखता हूँ। पालतू और वन्य-जीव जगत में दो प्रकार के पशु-प्राणी, एक भेड और दूसरा बैल सदृश्य, खास अफ़्रीकी प्रजाति का मृग, जिसे अंग्रेजी भाषा में विल्ड़ेबीस्ट या विल्डबीस्ट के नाम से जाना जाता है, मैं समझता हूँ कि न सिर्फ मेरे लिए अपितु तमाम बुद्धिजीवी वर्ग के लिए हमेशा अध्ययन और कौतुहल के खासे विषय बने रहे है। वाकई बड़े अद्भुत किस्म के प्राणी है ये दोनों ही प्रकार के खुर-पशु। मेरा यह मानना है कि इनका स्वभाव, अस्तित्व, आकार और व्यवहार किसी का भी ध्यान सहसा अपनी और आकर्षित करने में पूर्णत: सक्षम है। मैं जब कभी इन्हें देख अपने ख्यालाती जंगलों के इर्द-गिर्द घूमते हुए इनके हाव-भाव पर गौर फरमा रहा होता हूँ तो इनकी तुलना अपने आस-पास बिखरे मानव-जगत के तमाम सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक ताने-बाने से करने लगता हूँ। और हो भे क्यों न, क्योंकि अगर हम बारीकी से दोनों पर गौर फरमाए तो बहुत सी समानताए हमें खुद व खुद नजर आने लगेंगी।
खिले-अधखिले, कुम्पित-मुरझाए, स्पष्ट-अस्पष्ट इस खुर-पशु जगत से ताल्लुक रखने वाले हर चेहरे को अपने ढंग से पढने का भरसक प्रयास करता हूँ। अपनी कल्पना शक्तियों के आधार पर, टीवी प्रोग्रामो में जीव-जंतुओं पर आधारित डाक्यूमेंट्री फिल्मों, चल-चित्रों में देखे गए दृश्यों को याद कर उन घटनाओं को इन खुर-पशुओं के समकक्ष रखने की कोशिश करता हूँ। कहीं किसी संकरी गली से गुजरता हुआ एक भेडों का झुण्ड नजर आता है जिसे देखकर मुझे कहीं पढ़ा हुआ एक प्रसंग याद आ जाता है और मैं अपने चक्षुओं के सामने आये वाकिये को उसी अंदाज में अवलोकित करने लगता हूँ कि गली के अगले छोर पर किसी ने एक अवरोध-सूचक डंडा (बैरियर) लगा रखा था ! लीडर भेड़ आगे-आगे चलते हुए जब डंडे के पास पहुँची तो उस बैरियर के ऊपर से कूदकर निकल गई। लेकिन कूदते वक्त डंडा उसकी टांग से टकराने की वजह से नीचे गिर गया ! और अब उसी स्थान से गुजरने की बारी लीडर का अनुसरण कर रही बाकी भेड़ो की थी। और यह देख आश्चर्य मिश्रित आनंद हो रहा था कि डंडा नीचे गिर जाने के बावजूद भी जितनी भेड़े अपने लीडर के पीछे थी, वे भी सभी उसी अंदाज में वहाँ से कूद-कूदकर निकली, जैसे लीडर भेड़ निकली थी।
कहीं हरा-भरा सहरा, सपाट मैदान, कहीं ऊबड़-खाबड़ टीले, कहीं घने वृक्षों के झुरमुट और उनके बीचों-बीच कहीं कलकल तो कहीं शांत बहती नदी और कहीं पथरीला तपता रेगिस्तान। जब कभी किंचित इन्ही ख्यालों के सहरा में गुम हो जाता हूँ तो वो चाहे घर से दफ्तर तक का मार्ग तय करना हो अथवा दफ्तर से घर लौटने तक का या फिर कहीं लम्बे सफ़र में जाने-पहचाने अथवा अनजान रास्तों को तय करने का। यूं महसूस होता है कि मानो मैं किसी स्पोर्ट्स यूटिलिटी व्हीकल (SUV) में बैठा, उपरोक्त वर्णित तमाम खूबियों से परिपूर्ण किसी घने अफ्रीकी जंगल क्षेत्र से होकर गुजर रहा हूँ , और उस सुहाने सफ़र के दौरान मैं देख रहा होता हूँ कि भोर की बेला पर अनेक अफ्रीकी खुर-पशुओं के झुण्ड उस वनांचल में एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र तक अपने और अपने बच्चों के भरण-पोषण की तलाश में गंतव्य को निकल रहे है, अथवा फिर शाम को थके-हारे, कोई पेट भर खाने और कुछ पाने की संतुष्टि एवं कोई कुछ खोने का गम चेहरे पर लपेटे अपने रैन-बसेरों की और लौट रहे होते हैं। कहीं, ऊँची घास, पेड़ अथवा झाड़ियों की ओट में ताक में बैठे भेड़िये कि कब कोई खुर-पशु कहीं जरा सा जंगल के कानूनों का उल्लघन करता नजर आये और वे उन जंगली कानूनों की आड़ में उसे नोच खाए। कहीं झाड़ियों में छुपे लकडबग्घे और सियार कि बाघ, शेरनी अथवा जंगल का कोई राजा और उसके चाटुकार कोई शिकार करे, और ये उससे उसे झपटने और अपना हिस्सा प्राप्त करने का प्रयास करें। क्योंकि शेरनी , जंगल का राजा भी ये खूब समझते है कि चाटुकार और पंजे वाले परजीवी ही है जो किसी निरीह खुर-पशु को उनका काल ग्रास बनने और उनके खूनी पंजो तक पहुचाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते है। ऊपरी तौर पर देखने से ही ऐसा लगता है कि मानो यहाँ भी इनका अपना कोई कमीशन पहले से तय है।
और अंत में बस चंद शब्द ही मेरी जुबाँ पर रेंगकर रह जाते है, वे ये कि इन खुर-पशुओं को एक और बड़ी एवं निर्णायक क्रान्ति की सख्त जरुरत है। कब आयेगी इनके लिए वह सुहानी भोर ? यह सवाल मेरे जेहन में इस कदर कौंधता है कि मैं उनकी दुर्दशा देख बडबडाने लगता हूँ कि ये खुर-पशु क्यों आए इस संसार मे, इन्हें तो पैदा ही नहीं होना चाहिए था। इसी कशमकश में मैं अपने कानो पर हाथ रखकर जोर से चीख पड़ता हूँ, मगर मेरी वह चीख कोई नहीं सुनता, सिर्फ मेरे कमरे की दीवारें या फिर गाडी अथवा जिस वाहन में मैं सफ़र कर रहा होता हूँ उसके दरवाजे कांपकर रह जाते है।
इस अफ्रीकी वन-प्रदेश के एक जंगल के बीहड़ों में अभी हाल में वहां की रसूकदार शेरनी के 'युवा" शावक की ताजपोशी हुई है, जल्दी ही उसके भी जंगल का राजा बनने के ख्वाब संजोए जा रहे है। ये बात और है कि जंगल में मौजूद कुछ शरारती बंदरों ने यह चुटकी लेनी भी शुरू कर दी है कि मौजूदा जंगल के राजा से तो प्रजा को यह शिकायत थी कि यह दहाड़ता नहीं है, मुह नहीं खोलता। किन्तु, अगर यह "युवा" शावक अगर जंगल का राजा बन गया तो इन खुर-पशुओं को फिर से यह शिकायत होनी शुरू हो जायेगी कि जंगल का यह "युवा" राजा दहाड़ता क्यों है, मुह क्यों खोलता है?
अब जो चिंतित होने का बड़ा सबब है, वह यह है कि वर्तमान जंगल के निस्तेज किस्म के बूढ़े राजा को दरकिनार कर दिया गया है। उसके आगे उसका भविष्य एक पूर्ण विराम की तरह खड़ा कर दिया गया है। शेरनी के चाटुकार वजीर अपने-अपने राग अलाप रहे हैं। अपनी धुर्त्ताओं और करतूतों से ध्यान हटाने के लिए अनाप-शनाप बके जा रहे है। और ऐसा भी नहीं कि ये किसी अज्ञानता या मूर्खताबश ऐसा कह रहे हो, बल्कि यह उनकी एक सोची-समझी जंगल-नीति का ही हिस्सा है, जिसे वे ख़ास मौकों पर अपनाते आये है। वे भली-भाँति यह जानते हैं कि खुर-पशुओं की एक सबसे बड़ी और भद्दी खासियत यह है कि इनकी जुबाँ लम्बी और याददाश्त बहुत कमजोर होती है। ये झांसे में बहुत आसने से आ जाते है, इनके कान भरकर इन्हें आपस में ही लड़ा दो और फिर अपना काम स्वत: बहुत आसान हो जाता है। अभी पड़ोसी जंगल के जानवरों की घटिया हरकतें सामने आने पर बूढ़े राजा ने पड़ोसी जंगल के हिंसक पशुओं से कहा था कि उनकी इस निम्न स्तरीय घटिया हरकत को माफ़ नहीं किया जा सकता, वहीं दूसरी और उसके एक जोकर वजीर ने परसों उसने जाकर कह दिया कि अप्रिय बाते जंगलों के बीच में होती रहती है, किन्तु इन्हें शांति के मार्ग में बाधक नहीं बनने दिया जा सकता।
अंत में बस यही कहूंगा कि वर्तमान हालात को देखकर तो यही लगता है कि अगर समय रहते इन खुर-पशुओं ने किसी ठोस और निर्णायक दिशा में कदम नहीं उठाये तो जहां एकतरफ मुझे इस पंजा-तंत्र में पंजे वाले जानवरों, उनके परिवारों, कुनवों का भविष्य बहुत उज्जवल दिखाई पड़ता है, वहीं इन खुर-पशुओं के लिए आगे भी कुदरत और भगवान के ही मालिक बने रहने के पूर्ण आसार स्पष्ट तौर पर दृष्ठि-गौचर हैं, क्योंकि बड़ी विडंबना यह भी है कि इस कुटिल पंजा-तंत्र का इस वक्त कोई मजबूत विकल्प भी नजर नही आ रहा।
और आखिर में : नेताजी सुभाष चन्द्र बोष को नमन !
और आखिर में : नेताजी सुभाष चन्द्र बोष को नमन !
अक्षरशः सत्य !!
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति!
ReplyDeleteवरिष्ठ गणतन्त्रदिवस की अग्रिम शुभकामनाएँ और नेता जी सुभाष को नमन!
विषद-जानकारी-
ReplyDeleteबढ़िया प्रभावी शैली -
आभार आदरणीय
लीडर की करते नक़ल, भेड़-चाल में लीन ।
विल्डबीस्ट खुर-पशु सदा, लगते बुद्धि विहीन ।
लगते बुद्धि विहीन, जुबाँ लम्बी है लेकिन ।
हुआ गरदुआ रोग, करे खुरचाली हर-दिन ।
खुराफात खुर्राट, खुरखुरा मानव रविकर ।
खड़ी-खाट खटराग, किन्तु बढ़िया है लीडर ।।
खुरचाली = बुरा आचरण
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteपंजा-वाले से भला, खुरवाला खुद्दार ।
ReplyDeleteपरम्परागत चाल से, करे जाति-उद्धार ।
करे जाति-उद्धार, जलाशय पद्म उगाये ।
तोडूं तारे-चाँद, कथ्य पंजा भरमाये ।
गंगा गीता गाय, पूजने खिलता *अंजा।
छक्का पंजा करे, सदा ही खूनी पंजा ।।
अंज = पद्म , कमल
हे भगवन ! :)
ReplyDeleteवन्य जीवन हमे भी बहुत आकर्षित करता है . ये मेरे भी पसंददीदा प्रग्राम हैं।
क्या किया जाये? यही हमारी विडंबना है परंतु पृकृति अपने विकल्प भी ढूंढ ही लेती है, चिंता मत किजिये इनका भी इलाज जल्दी ही होगा.
ReplyDeleteरामराम.
जंगल कितना कुछ, बस अपने जैसा लगता है।
ReplyDelete