Friday, June 26, 2020

संयुक्त

लक्ष्मण रेखा, हमने नहीं, उसने लांघी है
ऐ पार्थ, मत छोडना तुम उस कमीन को,
क्योंकि तुम ही रखवाले हो, इस युग के,
आ़ंच आने न पाए, मातृभूमि जमीन को।

दौलत का निहायत ही भूखा है, हरामी,
कुटिल बातों मे उसकी कभी हरगिज भी,
डगमगाने न देना तुम, अपने यकीन को,
वक्त आने पे छोडना मत, कुटिल चीन को।

3 comments:

संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।