Friday, June 26, 2020

संयुक्त

लक्ष्मण रेखा, हमने नहीं, उसने लांघी है
ऐ पार्थ, मत छोडना तुम उस कमीन को,
क्योंकि तुम ही रखवाले हो, इस युग के,
आ़ंच आने न पाए, मातृभूमि जमीन को।

दौलत का निहायत ही भूखा है, हरामी,
कुटिल बातों मे उसकी कभी हरगिज भी,
डगमगाने न देना तुम, अपने यकीन को,
वक्त आने पे छोडना मत, कुटिल चीन को।

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संशय !

मौसम त्योहारों का, इधर दीवाली का अपना चरम है, ये मेरे शहर की आ़बोहवा, कुछ गरम है, कुछ नरम है, कहीं अमीरी का गुमान है तो कहीं ग़रीबी का तूफान...