हम जब समाज मे किये थे प्रवेश
उस बदलते समाज की देहरी से,
तो सिर्फ़, संस्कार हमारे साथ थे,
हमारे लाख समझाने पर भी, वो
हमारा साथ छोडने का राजी न थे।
मगर, वक्त की विडम्बना तो देखिए,
जब जमाने का रंग चढा हम पर, तो
"संस" हमें दरकिनार कर गए, और
तथाकथित हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा पर,
"कारों" ने वर्चस्व हासिल कर लिया।।
उस बदलते समाज की देहरी से,
तो सिर्फ़, संस्कार हमारे साथ थे,
हमारे लाख समझाने पर भी, वो
हमारा साथ छोडने का राजी न थे।
मगर, वक्त की विडम्बना तो देखिए,
जब जमाने का रंग चढा हम पर, तो
"संस" हमें दरकिनार कर गए, और
तथाकथित हमारी सामाजिक प्रतिष्ठा पर,
"कारों" ने वर्चस्व हासिल कर लिया।।
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteसब वक्त की विडम्बना ही है।
🙏
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