...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
वक्त की परछाइयां !
उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...

-
नोट: फिलहाल टिप्पणी सुविधा मौजूद है! मुझे किसी धर्म विशेष पर उंगली उठाने का शौक तो नहीं था, मगर क्या करे, इन्होने उकसा दिया और मजबूर कर द...
-
स्कूटर और उनकी पत्नी स्कूटी शहर के उत्तरी हिस्से में सरकारी आवास संस्था द्वारा निम्न आय वर्ग के लोगो के लिए ख़ासतौर पर निर्म...
-
You have chosen sacred silence, no one will miss you, no one will hear your cries. No one will come to put roses on your grave wit...
पता नहीं आपने क्या सोच कर लिखा लेकिन नाराज न हों मैं इस पर थोड़ा विनोद करना चाहता हूँ...
ReplyDeleteसुन दरी!
अच्छा किया जो गुम हुई!
तुम्हारे मालिक को
तुम्हारी नहीं
बिस्तर की चिंता थी
तुम
बचाती थी हमेशा उन्हें सीत से
वरना बिस्तर की अकेले क्या औकात?
सुन दरी!
यह तो पूछ अपने मालिक से
कि मैं जब सहारा थी सिर्फ बिस्तर की
तो आपके पेट में इतना दर्द क्यों हो रहा है?
सुन दरी!
यह भी कह दे
कि जब नहीं थी मैं तेरी कोई
तो क्या फर्क पड़ता है
कि मैं हम बिस्तर रहूँ
किसी के भी।
:)
सुन दरी !
ReplyDeleteबिछोने का इक तू ही तो
अकेला सहारा थी मेरी,
बाजुओं में दबाये
लिए फिरता था मैं तुझे
सुबह से शाम,
इस पार से उस पार,
इस राह से उस राह !
बेचैन हूँ तबसे बड़ा,
जबसे तू अचानक
गुम राह हुई !!
बढ़िया प्रस्तुति है .
व्यंग्य थोड़ा मैं भी करूँ -
दरी को भी कुछ न कुछ तो गर्म बिस्तर चाहिए ,
इक साफ़ चादर चाहिए ..
ram ram bhai
बृहस्पतिवार, 13 सितम्बर 2012
आलमी होचुकी है रहीमा की तपेदिक व्यथा -कथा (आखिरी किश्त )
http://veerubhai1947.blogspot.com/
अब तो सोफे में बैठने लगे हैं।
ReplyDeleteकुछ ज्यादा ही परवाह करना या परवाह बिलकुल न करना दोनों परिस्थितियाँ गुमराही का कारण बन सकती हैं अब आपकी दरी के पीछे तो मुझे पहलेवाला कारण ही लगता है कंही आपकी बाहों में उसका दम तो नहीं घुटने लगा था
ReplyDelete@ देवेन्द्र पाण्डेय जी और राजेश कुमारी जी :)
ReplyDeleteबहुत सार्थक!
ReplyDeleteबेचारी दरी! अब तक मनुष्य गुमराह होते थे अब दरी भी!
ReplyDeleteघुघूती बासूती
दरी को माध्यम बनाकर एक ठोस अभिव्यक्ति.
ReplyDeleteउतनी भी गुमराह नहीं है...खोजो प्लीज़..मुझे भी इन्तजार है!!
ReplyDeleteदरी-चादर की जगह आजकल सोफों-कालीनो ने ले लिए हैं....
ReplyDeleteगहन भाव लिए उत्कृष्ट अभिव्यक्ति
ReplyDeleteमैं जानता हूँ दरी
ReplyDeleteतुम गुम हो गयीं ..
शायद मेरे से ज्यादा
उन्हें जरूरत थी तेरी
जिनका सब कुछ छीन लिया था
व्यवस्था के ठेकेदारों ने ..
तुझे ढूंढ लूँगा उन सभी के घर
जो शिकार हो चुके हैं
सांसों के फेर से आज़ाद हो चुके हैं ..
दरी बेचारी क्या गुमराह होगी ..... वो तो गुम हो चुकी है ...
ReplyDeleteअब तो धरती मैया का सहारा है बस.....
ReplyDelete:)
अनु