Tuesday, July 14, 2009

लघु कथा- अच्छी खबरों वाला चैनल !

करीब दस साल पहले मेरी मिश्रा जी से पहली बार तब मुलाक़ात हुई थी, जब मैं अपने नए मकान में प्रवेश से पूर्व पुताई करवा रहा था, और वे मेरे मकान से कुछ दूरी पर स्थित एक प्लाट को खरीदने के विचार से उसे देखने वहाँ आये थे ! लघु परिचय में उन्होंने बताया कि वे एनआरआई है, और अमेरिका में रहते है! फिर मैंने उनसे पूछा था कि आप इनवेस्टमेंट पॉइंट आफ व्ह्यु से प्लाट खरीद रहे होंगे, तो उनका जबाब था नहीं, बुढापे के लिए खरीद रहा हूँ ! लेकिन आपने तो बताया कि आप अमेरिका में सेटल्ड है? मैंने फिर सवाल किया ! वे बोले, सो तो है, मगर वह हम जैसे लोगो के लिए बुढापे में रहने लायक जगह नहीं है, सोचता हूँ कि एक कुटिया इंडिया में बनाकर अपना बुढापा शांति से काटूं !

कुछ दिनों बाद उन्होंने वह प्लाट खरीद लिया था, और फिर वे मेरे घर पर आये थे, यह बताने कि उन्होंने वह प्लाट खरीद लिया है, और परसों वे वापस अमेरिका जा रहे है, अतः हम लोग उनके प्लाट का भी ध्यान रखे! मैंने उन्हें आस्वस्थ किया कि जब तक हम लोग यहाँ पर है, आप लोग बिलकुल भी चिंता न करे ! चाय की चुस्किया लेते-लेते उन्होंने अपने कुछ खट्टे-मीठे अनुभव भी हमे सुनाये, जो कि अकसर विदेश में रहकर आया हर भारतीय लौटने पर यहाँ के हालात की तुलना विदेश से कर, सुनाता है ! लेकिन उनका एक अनुभव मुझे और मेरी पत्नी को काफी रोमांचित कर देने वाला लगा था, और तब से अक्सर उनकी उस बात को याद कर हम फुरसत के पलों में खूब हंसते थे ! हुआ यह था कि बहुत साल पहले जब वे अपनी पत्नी और दस वर्षीय बेटे के साथ भारत भ्रमण पर आये तो मुंबई उतरे थे ! वहाँ एक दिन घूमते वक्त वे लोग सी एस टी स्टेशन पर पहुंचे तो लोगो की भारी भीड़ में उनकी पत्नी उनके बेटे का हाथ, अपने हाथो में पकडे चल रही थी, कि कब बेटा, माँ से हाथ छुडा, बगल से चल रहे अपने पिता का हाथ पकड़कर चलने लगा, उनकी पत्नी को पता भी न चला ! बात यहीं तक सीमित रहती तो अलग बात थी, किन्तु हद तो तब हो गई जब उनकी पत्नी ने अपनी ही धुन में बगल में चल रहे एक ठिगने से व्यक्ति का मजबूती से हाथ पकड़ लिया और खींचते हुए उसे अपने साथ ले जाने लगी! वह व्यक्ति गुहार लगाए जा रहा था कि दीदी आप मुझे कहाँ ले जा रही है.... दीदी मेरा हाथ छोड़ दो आप मुझे कहाँ ले जा रही है ! और दीदी थी कि उसे अपने बेटे का हाथ समझ खींचे जा रही थी ! काफी देर बाद जब मिश्रा जी का ध्यान उस और गया और उन्होंने पत्नी को बताया तो सभी वह देखकर खिसियाये से रह गए, और फिर उस व्यक्ति को सॉरी बोलने के बाद एक साथ जोर से हंस पड़े !

अभी छः महीने पहले एक दिन शाम को मै जब दफ्तर से घर लौटा तो मेरी पत्नी ने मुझे बताया कि आज मिश्राजी आये थे, और जल्दी अपने मकान का काम शुरू करवा रहे है! फिर करीब चार महीने में उनका मकान बनकर तैयार हो गया था! इस बीच वे मुझसे चार-पांच बार मिल चुके थे! वे शायद किसी गेस्ट हाउस में रह रहे थे और फिर एक दिन वे और उनकी पत्नी अपने नए मकान में शिफ्ट हो गए!

अपने इस नए मकान में शिफ्ट होने के बाद कल जब मेरी उनसे पहली मुलाकात हुई तो उनके चेहरे से असंतुष्टी साफ़ झलक रही थी! मैंने पूछा, मिश्राजी, नए घर में आप संतुष्ट तो हो न, कोई दिक्कत, परेशानी तो नहीं है? उन्होंने अपने दाहिने हाथ कि उंगली से अपने कान के ऊपर के बालो को थोडा सा खुजलाया और फिर बोले, गोदियाल जी, अब आप से क्या छुपाये, बस ये समझो कि दिक्कत ही दिक्कत है ! सोचा कुछ और था, मिला कुछ और! बस, यूँ समझिये, शकुन कही भी नहीं है ! आज बिजली का बिल भरने बिजली के दफ्तर गया तो वे कहने लगे कि आपका मीटर कम कैपसिटी का लगा है जबकि आप बिजली अधिक खर्च कर रहे है, अतः आपको मीटर की कैपसिटी बढ़वानी होगी ! फिर थोडा रूककर वे बोले, अच्छा एक बात बताइये गोदियाल जी, आपने अपने टीवी पर कनेक्सन कौन सा लिया है ? मैंने कहा, केबल का कनेक्सन है, लेकिन यह बात आप क्यों पूछ रहे है ? वे बोले, मैंने भी केबल का ही कनेक्सन लगाया हुआ है लेकिन कोई भी अच्छी खबरे देने वाला चेनल उस पर नहीं आता! जिस भी न्यूज़ चैनल पर जावो, जिस भी अखबार को पढो, बस मार-धाड़, लूट, ह्त्या, दुर्घटना और घोटालो की ही खबरे सुनने और पढने को मिलती है! मैं यह जानना चाहता था कि कोई ऐसा चैनल अथवा अखबार भी है जो सिर्फ अच्छी खबरे देता हो ?

मैंने उनके अन्दर के दर्द को भाँपते हुए उन्हें समझाया, मिश्राजी, आप तो जानते ही है कि हमारे देश ने सदियों से सिर्फ लूट-खसोट, मार-धाड़ और कत्ल के सीन ही अधिक देखे है, इसलिए यहाँ के लोग यही सब देखने-सुनने के आदी हो चुके है, अब आप ही बताइये कि जहां सिर्फ ऐसे दर्शक और पाठक हों जिन्हें बस अप्रिय देखना और सुनना ही भाता हो, वहां भला सिर्फ अच्छी खबरे दिखाने वाला चैनल सर्वाविव कैसे करेगा ? अमूमन हर बात पर थैंक्यू बोलने वाले मिश्राजी, मेरी बात सुनकर थैंक्यू गोदियालजी कहकर धीमे कदमो से अपने घर को चल दिए, और मैं यही सोचता रहा कि काश, क्या सच में कभी ऐसा वक्त आयेगा, जब इस देश में सभी खबरी संचार माध्यम, अच्छी और सिर्फ अच्छी खबरे ही लोगो को दे रहे हो ??!!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।