Saturday, July 18, 2009

शर्म-अल-शेख का 'शर्म' !

मेरे ब्लॉग के प्रिय पाठक गण:

ब्लॉग के उचित नियंत्रण और पाठको की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मैंने अपने दो अन्य ब्लॉग My Lyrics और Tirchhi Nazar को आज से इसी ब्लॉग में समावेशित कर दिया है !
साभार !
Godiyal


हर जगह अपने को एक भला व्यक्ति शाबित करने की कवायद में, हमारे प्रधानमंत्री श्री मनमोहन सिंह जी यह भी भूल गए कि देश के अन्दर भले ही एक व्यक्ति का अपना निजी गौरव ज्यादा अहमियत नहीं रखता हो, किन्तु विदेश में राष्ट्र के गौरव का तो हम कम से कम थोडा बहुत ख्याल रख सकते है! यह हमारे लिए बड़े शर्म की बात है कि हम शर्म-अल-शेख में अपने उस दुश्मन देश के आगे झुके, जो अपनी घिनौनी हरकतों से पिछले ६०- ६२ सालो से इस देश के लाखों मासुमो का खून बहाने के लिए जिम्मेदार है, जिसने लाखो माताओं की गोदे सूनी की, जिसने लाखो महिलाओं का सिन्दूर उजाडा, वह भी तब जब हमारे पास इस बात के पुख्ता सबूत थे, कि वह पूरा देश ही, उस देश की सरकार ही तथा उस देश की सेना और खुफिया तंत्र ही २६/११ के मुंबई काण्ड का दोषी है ! सिर्फ २६/११ ही इन्होने किया होता तो एक बारी माफ़ भी किया जा सकता था, किन्तु हमारे पास तो पूरे ६० सालो का इतिहास पडा है, लेकिन इससे हमारे राजनीतिज्ञो को भला क्या फर्क पड़ता है! उनकी नजर तो सिर्फ किसी शान्ति पुरुष्कार पर है, जिसे पाकर वे अजर और अमर हो जायेंगे !

अमेरिका तो अपना उल्लू सीधा कर रहा है, उसे तो हर तरफ सिर्फ अपना ही हित दिखाई देता है, भारत दौरे पर आई हिलेरी किलींटन जितना मर्जी मनमोहन सिंह जी की तारीफ़ के पुल बाँध ले, लेकिन उनकी इस तारीफ में स्वार्थ की बू साफ़ महसूस की जा सकती है ! हमें पाकिस्तान के साथ बातचीत की नसीहत देने वाले और ०९/११ के नाम पर लाखो निर्दोष लोगो को मौत की नींद सुलाने वाले अमेरिका से, क्या हममें यह पूछ पाने की हिम्मत है कि उसने ०९/११ के बाद अफगानिस्तान पर हमला करने की वजाए मुल्ला उमर और बिन लादेन से बातचीत क्यों नहीं की थी ?

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।