झमाझम बारिश,
सावन की मस्ती है,
दिखा दिया,
इन्द्रदेव ने
वो क्या हस्ती है।
पानी-पानी
हुई राजधानी,
बारिश की चर्चा
हर एक ज़ुबानी।
जहां चला करती थी
कलतक बस, कारे,
चल रही आज
वहाँ कश्ती है।
दिखा दिया,
इन्द्रदेव ने
वो क्या हस्ती है।।
बारिश दिन-रैन,
सब के सब बेचैन,
एक ही दिन में ये हाल,
हर बाशिंदा बेहाल ,
कीचड का सैलाब,
डूबी सारी बस्ती है।
दिखा दिया,
इन्द्रदेव ने
वो क्या हस्ती है।।
कलतक बिनबारिश जीवन महंगा था,
ReplyDeleteअब मौत हो गई सस्ती है !
-दोनों हालात में हालात खराब!!
जी हाँ।
ReplyDeleteआपने बिल्कुल सही चोट की है।
मैं समीरलाल जी की बात से सहमत हूँ।
अब रुकती बारिश दिन-रैन नहीं,
ReplyDeleteइंसान को कहीं भी चैन नहीं !
कलतक बिनबारिश जीवन महंगा था,
अब मौत हो गई सस्ती है !
bahut sahi kaha aapne!
पानी-पानी हो गई राजधानी,
ReplyDeleteबारिश की चर्चा हर एक ज़ुबानी !
जहां चलती थी कारे कल तक,
आज चल रही कश्ती है !
अब रुकती बारिश दिन-रैन नहीं,
इंसान को कहीं भी चैन नहीं !
कलतक बिनबारिश जीवन महंगा था,
अब मौत हो गई सस्ती है !
वाह वाह इसे कहते हैं, सामयिक और सार्थक चित्रण, हम तो कनाडा में बैठें हैं लेकिन याद आ ही गया प्रगति मैदान में घुटनों तक पानी में तैरते जाना, पहुंचा दिया आपकी कविता ने हमें दिल्ली...
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