Tuesday, July 28, 2009

इन्द्रदेव मेहरबान हुए भी तो...!



झमाझम बारिश,
सावन की मस्ती है,
दिखा दिया,
इन्द्रदेव  ने
वो क्या हस्ती है।

पानी-पानी
हुई राजधानी,
बारिश की चर्चा
हर एक ज़ुबानी।

जहां चला करती थी
कलतक बस, कारे,
चल रही आज
वहाँ कश्ती है।
दिखा दिया,
इन्द्रदेव  ने
वो क्या हस्ती है।।

बारिश दिन-रैन,
सब के सब बेचैन,
एक  ही दिन में ये हाल,
हर बाशिंदा बेहाल ,

कीचड का सैलाब,
डूबी सारी बस्ती है।
दिखा दिया,
इन्द्रदेव  ने
वो क्या हस्ती है।।


4 comments:

  1. कलतक बिनबारिश जीवन महंगा था,
    अब मौत हो गई सस्ती है !

    -दोनों हालात में हालात खराब!!

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  2. जी हाँ।
    आपने बिल्कुल सही चोट की है।
    मैं समीरलाल जी की बात से सहमत हूँ।

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  3. अब रुकती बारिश दिन-रैन नहीं,
    इंसान को कहीं भी चैन नहीं !
    कलतक बिनबारिश जीवन महंगा था,
    अब मौत हो गई सस्ती है !

    bahut sahi kaha aapne!

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  4. पानी-पानी हो गई राजधानी,
    बारिश की चर्चा हर एक ज़ुबानी !
    जहां चलती थी कारे कल तक,
    आज चल रही कश्ती है !

    अब रुकती बारिश दिन-रैन नहीं,
    इंसान को कहीं भी चैन नहीं !
    कलतक बिनबारिश जीवन महंगा था,
    अब मौत हो गई सस्ती है !

    वाह वाह इसे कहते हैं, सामयिक और सार्थक चित्रण, हम तो कनाडा में बैठें हैं लेकिन याद आ ही गया प्रगति मैदान में घुटनों तक पानी में तैरते जाना, पहुंचा दिया आपकी कविता ने हमें दिल्ली...
    बस यही कहेंगे जवाब नहीं आपका...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।