आज श्रावण मास का पहला सोमवार है, और सुबह से ही शिव मंदिरों में लोगो का तांता लगा है ! दूसरी ओर कांवड़ यात्रा, या यूँ कहूं कि शिव भगवान की महिमा का सड़क-प्रदर्शन अपने चरम पर है! कहीं लंबा ट्रको का जत्था शिव भगवान् का रथ बनकर, फिल्मी अंदाज़ में नाच-गान करता हुआ, समूचे यातायात को बाधित कर अपनी मस्त चाल में आगे बढ़ रहा है तो कहीं मोटर साइकिलों पर कुछ युवा कावडीये इस तरह उस जल कलश को ले जा रहे है कि उनमे से बारी-बारी से एक कावडिया कलश लेकर सड़क पर दौड़ता है, और उसके पीछे वो चार-पांच मोटरसाइकिल सवार दौड़ते है, सारे यातायात के नियम कानूनों को ताक पर रखकर ! चालान काटने में मुस्तैद दिल्ली ट्रैफिक पुलिस के जवान भी आजकल किसी कोने पर बैठ सुर्ती फाँक रहे है ! यह सब देखकर मुझे अपने उस कुलगुरु पर बड़ा क्रोध आ रहा था, जिन्होंने मुझे बचपन में इस तरह के उटपटांग उपदेश सुनाये थे कि इंसान होने के नाते हमारा फर्ज है अपने कर्तव्य का उचित निर्वहन ! इस दुनियां में आजतक इस बात के कोई प्रमाण नहीं मिले, जिसमे कोई भगवान् अथवा परमात्मा इंसानों से यह कहता पाया गया हो कि तुम अपना कर्तव्य छोड़कर, मुझे खुश करने के लिए तरह-तरह के हथकंडे अपनाओ ! अगर मेरे वो कुलगुरु आज जिंदा होते तो उन्हें यह सब जरूर दिखाता और पूछता कि केवल आप ही एक विद्वान हो, क्या ये इतने सारे लोग सब मूर्ख है ?
इस चिट्ठाजगत मंच पर कुछ सज्जनों के विद्वता पूर्ण लेख कुछ दिन पूर्व पढ़े थे, जिसमे उन्होंने कावड़ के समर्थन में काफी तर्क पूर्ण विवेचन प्रस्तुत किये थे! उन सज्जनों को मैं एक छोटी सी सच्ची कहानी सुनाना चाहता हूँ : एक था नेगी, ३० साल का नौजवान ! सुदूर चमोली गढ़वाल का रहने वाला! चमोली में पीडब्लूडी में नौकरी करता था, उसकी माँ कुछ दिनों से उसके बड़े भाई के पास विजय नगर गाजियाबाद में रह रही थी, उसे वापस गाँव ले जाने के लिए वह तीन दिन पहले चमोली से तडके निकला था, इस बात से बेखबर कि इन दिनों दिल्ली- हरिद्वार मार्ग पर कितनी अराजकता फैली हुई है ! पहले से तय कार्यक्रम के हिसाब से उसने अनुमान लगाया था कि वह करीब सात बजे मोहन नगर पहुँच जाएगा और वहाँ से ऑटो रिक्शा पकड़ साड़े सात बजे तक भाई के घर पहुँच जाएगा, लेकिन भला हो उस कावडीये का जो भरी दोपहर में भांग पीकर एक बिजली के ट्रांसफार्मर के पोल पर चढ़ गया और घंटो यातायात वाधित किये रहा ! कई घंटो बाद जब पुलिस ने क्रेन की मदद से उसे उतारा तो तब जाकर यातायात सामान्य हुआ ! अतः जिस बस से नेगी दिल्ली आ रहा था वह पूरे सात घंटे देरी से, यानी २ बजे सुबह मोहन नगर पहुँची ! मोहन नगर पहुँच नेगी ने चिंतित घरवालो को फोन कर बताया कि कावड़ की वजह से बस लेट थी, अतः अब जाकर वह मोहन नगर पहुंचा है और ऑटो-रिक्शा कर थोड़ी देर में घर पहुँच जाएगा ! लेकिन भाग्य में कुछ और ही लिखा था, सो सुबह उसकी लाश वसुंधरा पुलिस चौकी के बगल पर पडी मिली !
खैर यह तो एक छोटी सी सच्ची कहानी थी,अगर बस ठीक टाइम पर पहुँचती तो शायद वह जिंदा होता लेकिन न जाने कितनी और सच्ची झूटी कहानियां इस कावड़ के बाबत गढी जाती होंगी ! मुझे भी करीब २५ साल दिल्ली में रहते हो गए लेकिन ठीक से याद नहीं कि आज से १०-१२ साल पहले तक मैंने कावड़ के बारे में ज्यादा कुछ सूना था ! ज्यादा सिर्फ पिछले ८-१० सालो से ही सुन रहा हूँ ! हो सकता है तब पानी की समस्या इतनी बिकराल नहीं थी और शिवजी स्थानीय उपलब्ध पानी से ही काम चला लेते हो, इसलिए उस जमाने में कावड़ इतनी फेमस नहीं थी ! बस, एक बात अंत में अपने कावड़ बन्धुवों से कहना चाहूँगा कि;
स्वर्ग पाने की फितरत में, कुछ करो ऐसा,
कि यहाँ पाप के लिए कोई मुकाम न हो !
संभल के डालना ठंडा गंगाजल उनपर दोस्तों,
बदलते मौसम में कहीं उनको जुकाम न हो !
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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भगवान् में आस्था रखने वाले.............इंसान में भी भगवान् का रूप देखते हैं और देखना चाहिए अगर नहीं देखते
ReplyDeleteइन कांवडियों ने हर किसी को इतना सताया है की इन्हें अपनी यात्रा का कोई पुण्य नहीं मिलेगा.
ReplyDeleteभगवान् शिव भी सभी भक्तों से अनुशासन, कर्तव्यपालन, और सदाचार की अपेक्षा रखते हैं, गांजा-भांग खाकर मस्त रहने की नहीं.
What is the phycology of kawariya?. Nikamme, Nakara, Aalsi and who fails in the real life. By this way they (Kawariye)shows the the capabilities "Aakhirkar Haridwar se lekar dilli tak paidal yatra ki"
ReplyDeleteAs usual, thanks a lot once again Sir, for taking interest in my articles.
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