गूँज उठी खनखनाती घंटियाँ,
जल उठे मंदिरों में दीप पावन।
घुमड़-घुमड़, गरज-गरजकर,
आया चौखटों पर उदार सावन।
लग रहा तय समय खेतिहर की ,
इन्द्रदेव ने सुन ली गुजारिश।
हो रही जरुरत के मुताविक,
कही थोड़ी, कही अधिक बारिश।
जहां मुरझा गई थी कुसुम-कलियाँ,
वहाँ आ गई अब रुत सुहानी।
बाग़- बगीचे, खेत-खलिहान,
हो गए हैं सब पानी-पानी।
संचित नीर ताल-पोखरों के ,
परिंदे पर फड़फड़ाकर नहाए।
मेढकी भी किसी हौद-कुण्ड से
गीत, मधुर नया इक गुनगुनाए।
जल उठे मंदिरों में दीप पावन।
घुमड़-घुमड़, गरज-गरजकर,
आया चौखटों पर उदार सावन।
लग रहा तय समय खेतिहर की ,
इन्द्रदेव ने सुन ली गुजारिश।
हो रही जरुरत के मुताविक,
कही थोड़ी, कही अधिक बारिश।
जहां मुरझा गई थी कुसुम-कलियाँ,
वहाँ आ गई अब रुत सुहानी।
बाग़- बगीचे, खेत-खलिहान,
हो गए हैं सब पानी-पानी।
संचित नीर ताल-पोखरों के ,
परिंदे पर फड़फड़ाकर नहाए।
मेढकी भी किसी हौद-कुण्ड से
गीत, मधुर नया इक गुनगुनाए।
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