आओ, फिर आज नया उल्फ़त का तराना है,
मेह की रिमझिम फुहार, मौसम वो पुराना है।
किये थी कबसे हमें बेचैन , दिल की हसरत,
लम्बी सैर पे जाने का, उम्दा सा बहाना है।
लिए संग चलेंगे चंद अल्फाज, प्रेम के अपने,
जिगर पे लिखने को, इक नया अफसाना है।
दिल खोल के खर्च करेंगे, वक्त का हर लम्हा,
समर्पण का हमारे पास अनमोल खज़ाना है।
मुल्तवी पल 'परचेत', जुल्फों की घनेरी छाँव,
बीत जाए सफ़र सकूँ से, महफूज ठिकाना है।
behad khubsurat bhaav... badhaayee
ReplyDeletearsh
वाह भाई वाह ...मजा आ गया
ReplyDeleteमेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
बहुत सुंदर भाव .. अच्छी रचना !!
ReplyDeleteधुंधला गए, लिखे थे जो मुहब्बत के चंद अल्फाज हमने,
ReplyDeleteदिलों पर लिखने को फिर इक नया अफसाना ढूंढ लाते है !
-बहुत सुन्दर!! वाह!
धुंधला गए, लिखे थे जो मुहब्बत के चंद अल्फाज हमने,
ReplyDeleteदिलों पर लिखने को फिर इक नया अफसाना ढूंढ लाते है !
Ye badhiya hai bhai !!
उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आप सभी का !
ReplyDeleteहमारी जिन्दगी का हर लम्हा यूँ तो एक खुली किताब है,
ReplyDeleteखामोशियों में भी जो हकीकत लगे ऐसा फसाना ढूंढ लाते है
लाजवाब दिल को छूने वाले ख्याल........