Friday, July 24, 2009

फिर आज नया उल्फ़त का तराना है




आओ, फिर आज नया उल्फ़त का तराना है,
मेह की रिमझिम फुहार, मौसम वो पुराना है।

किये थी कबसे हमें बेचैन , दिल की हसरत,
लम्बी सैर पे जाने  का, उम्दा सा बहाना है।

लिए संग चलेंगे चंद अल्फाज, प्रेम के अपने,
जिगर पे लिखने को, इक नया अफसाना  है।

दिल खोल के खर्च करेंगे, वक्त का हर लम्हा,
समर्पण का  हमारे पास  अनमोल खज़ाना है।

मुल्तवी पल 'परचेत', जुल्फों की घनेरी छाँव,
बीत जाए सफ़र सकूँ से, महफूज ठिकाना है।  

7 comments:

  1. behad khubsurat bhaav... badhaayee


    arsh

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  2. बहुत सुंदर भाव .. अच्‍छी रचना !!

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  3. धुंधला गए, लिखे थे जो मुहब्बत के चंद अल्फाज हमने,
    दिलों पर लिखने को फिर इक नया अफसाना ढूंढ लाते है !



    -बहुत सुन्दर!! वाह!

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  4. धुंधला गए, लिखे थे जो मुहब्बत के चंद अल्फाज हमने,
    दिलों पर लिखने को फिर इक नया अफसाना ढूंढ लाते है !

    Ye badhiya hai bhai !!

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  5. उत्साहवर्धन के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया आप सभी का !

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  6. हमारी जिन्दगी का हर लम्हा यूँ तो एक खुली किताब है,
    खामोशियों में भी जो हकीकत लगे ऐसा फसाना ढूंढ लाते है

    लाजवाब दिल को छूने वाले ख्याल........

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।