चोरी का माल खाके, हुए बदमिजाज भी,
वो जो बेईमान भी है और दगाबाज भी।
मिला माल लुच्चे-लफंगों को मुफ्त का,
घर-लॉकर भी भर दिए, मेज दराज भी।
इख्तियार की मद में,वो ग्रीवा की ऐंठन,
रोग-ग्रस्त चले आ रहे, है वो आज भी।
तनिक जो तरफदार उनके सुधर जाएँ,
वो आवाज भी बदलेंगे और अंदाज भी।
उतरेगा सुरूर उनके माथे से 'परचेत'
तबियत शिथिल होगी, नासाज भी।
इख्तियार=सत्ता
बहुत करारा व्यंग्य इस माध्यम से।
ReplyDeleteBAHUT SUNDAR ABHIBYAKTI LEKIN JAB WE SAMJHE.
ReplyDeleteतीखा व्यंग्य
ReplyDeleteनशा उतरे तब न!
ReplyDeleteबेशर्म को शर्म आयें तब ना
ReplyDeleteLATEST POST सुहाने सपने
my post कोल्हू के बैल
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (6-4-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
ReplyDeleteसूचनार्थ!
सन्नाट व्यंग..
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