Wednesday, April 3, 2013

मर्जी धोबन माई की ! (लघु व्यंग्य)




मेरा पुत्तर बहुत होनहार है, और होगा भी क्यों नही, आखिर मेरा पुत्तर जो है। जैसे एक फ़ौजी का बेटा अक्सर  फ़ौजी  ही बनता है, पुलिस वाले का  पुलिस वाला और आजकल तो जो लेटेस्ट ट्रेन्ड चल पडा है कि एक एमपी  और एमएलए का बेटा भी एमपी  और एमएलए ही बन जाता है।   साथ में ऊपर से आश्चर्जनक बातयह भी कि आगे चलकर यदि वह भी मंत्री बन जाए तो बाप ही के नक़्शे कदमो पर चलकर बाप से बड़ा घोटालेबाज भी बन जाता है। तो नेचुरल सी बात है कि एक होनहार बाप का पुत्तर ही तो होनहार होगा, जैसे मेरा है।

अब कल ही की बात है, शाम को दफ्तर से थका-हारा  घर पहुंचा ही था कि उसने मुझसे ऐसा धाँसू सवाल पूछा कि थोड़ी देर के लिए तो मैं खुद भी चक्कर खा गया। कहने लगा, अच्छा पापा ये बताओ कि जो इन्सान कैरेक्टर का ढीला होता है, उसके आगे "बे" अक्षर इस्तेमाल किया जाता है। मसलन 'बे'इज्जत, 'बे'कार, 'बे'शर्म, 'बे'गैरत, 'बे'ईमान.......... वह अपनी ब्रेक-फेल जुबान से कुछ और शब्द निकाले इससे  पहले ही मैंने कह दिया " एकदम सही कहा बेटे "......... पलभर को मेरी तरफ देख पलकें झपकाकर वह फिर बोलने लगा " तो अच्छा पापा, ये बताओ कि  जब यह "बे" अक्षर इतना ही कैरेक्टरलेस है तो फिर बेटा और बेटी में ये 'बे' क्यों इस्तेमाल किया जाता है? 

उसका सवाल  सुनना था कि बीवी की परोसी गरमा गरम चाय को मैं नींबू-सरबत समझकर गटक गया। खैर, मैं भी कहाँ हार मानने वाला था? ऊपर से उसका बाप जो ठहरा। मैंने कहा, दरहसल बेटा, बात ये है कि जहां तक हिन्दी और देवनागरी का सवाल है, तो 'टा' अथवा  'टी' अपने आप में कोई पूर्ण  शब्द नहीं है। थोड़ा रूककर मैं मन ही मन बडबडाया "और संस्कृत मुझे आती नहीं".......इसलिए बेटा, यह कहना अनुचित होगा कि किसी हिन्दी वर्णमाला के शब्द के अर्थ को विकृत करने के मकसद से यहाँ पर 'बे' अक्षर  इस्तेमाल किया गया होगा। किन्तु, जहां तक अंगरेजी की बात है तो अंग्रेज लोग खासकर ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन वासी TA ('टा') शब्द इनफॉर्मल तरीके से धन्यवाद कहने के लिए इस्तेमाल किया करते है। और 'टी' (TEE) शब्द खेल में, खासकर गोल्फ और फुटबाल के खेल में उस बिंदु को कहते है जहाँ से पहले-पहल बॉल पर स्टिक  (डंडी) अथवा लात से वार किया जाता है।

इसलिए बेटा, अगर अंग्रेजों की भाषा के नजरिये से हम देखे ( फिर मन ही मन  बडबडाया-  और हम देखते भी उसी नजरिये से ही है क्योंकि लम्बी गुलामी का खून जो दौड़ रहा है हमारी रगों में)  तो जब  'टा' का अर्थ होता है  कृतज्ञता ( Thankful) , तो जाहिर सी बात है कि माँ-बाप के प्रति जो सबसे बड़ा थैंकलेस इंसान होता है उसे 'बे'टा कहते है। अब रही बात बेटी की, तो  उसमे भी ज्यादा सोचने जैसी कोई बात नहीं है, क्योंकि खेल के मैदान में जिस निर्धारित जगह से स्टिक (डंडी) अथवा लात मारने की व्यवस्था होती है  उसे 'टी' (TEE) कहा जाता है। लेकिन, शायद  पुत्री को 'बे'टी  इसलिए कहा गया होगा क्योंकि बाप को यही मालूम नहीं रहता  कि घर में मौजूद जवान पुत्री की वजह से कब और किधर से उसके पिछवाड़े डंडा या लात पड़ने वाली है, यानी डंडा अथवा लात पड़ने वाली जगह अनिश्चित है। इसको मैं तुम्हे दुसरे उदाहरण से समझाने की भी कोशिश करता हूँ। तुम जानते ही हो कि आगे जाकर कोई सीधी गली जहाँ बंद होकर दायें और बाएं को घूम जाती है उसे टी- पॉइंट कह्ते………………

अभी मेरे यह ज्ञान बांटने का क्रम चल ही रहा था कि किवाड़ पर ख़ट-खट की आवाज हुई। मैं समझ गया कि बेवक्त आने वाला यह 'अवक्ती' अपने गुप्ता जी ही होंगे, और मेरा सोचा हुआ एकदम सही भी निकला। आसन ग्रहण करते हुए अनुग्रह बिना ही आग्रह की स्वीकारोक्ति देते हुए बोले" भाभीजी से कहिएगा कि  चाय में  शक्कर ज़रा कम ही डालना। मैंने एक अच्छे संदेशवाहक की भाति उनका सन्देश किचन में मौजूद बीवी तक पहुंचाया और फिर सुनने बैठ गया, गुप्ताजी की 'राजनीति पांच सौ बयालीसा'।

गुप्ता जी ने बोलना शुरू किया; बहुत बुरा हाल है, जनाब तमाम जंगलात का ! क्या कहें, जिधर देखो, बस अराजकता ही अराजकता। बाड़े का एक गदहा तो आज फिर से तमाम जंगलात के गदहों के जले पर नमक छिड़क गया।  डुगडुगी बजाकर कह रहा था कि अगर फिर से गदहों की पंचायत में चुनकर आने का सौभाग्य हमारे बाड़े को प्राप्त हुआ तो "अस्तबल" ( जहां के घोड़े-गदहों का बल यानी शारीरिक ताकत अस्त हो चुकी होती है ) का मुखिया तो हम फिर से उसी विरादर  को बनायेंगे जिसे जंगलात के तमाम गदहे  इतने सालों से झेल रहे है। कमाल के प्राणी है यार ये तो, हद ही कर देते है। कम से कम ऐसे बाण  छोड़ने से पहले जंगलात के तमाम गदहों  की राय तो लेनी तो बनती ही है, या नहीं? कि विरादारों, पहले तुम बताओ कि इसे फिर से मुखिया बनाने के बारे में तुम्हारे क्या ख़यालात है ? तुम चाहते भी हो या नहीं। जंगलात के सारे गदहे तो पहले से ही कल्पे हुए बैठे हैं। अभी कल ही एक काला गदहा अपनी बादामी कलर की गदही से कुढ़ते हुए कह रहा था कि ये बेइमान, हमारे हिस्से की सारी हरी-हरी घास कुछ खुद खा रहे हैं और कुछ सफ़ेद चमड़ी के गदहों के खाने के लिए जंगलात से बाहर ले जा रहे है, और हमारे लिए कहते है कि सूखा पड़ा है, मैदान बंजर है। इस मुखिया के बच्चे को तो इस बार हम मजा चखाते किन्तु यह खुद तो खडा हो ही नहीं पाता, धोबन माई का सहारा लेकर खडा होता है। यह सुनकर बादामी कलर की गदही ने लम्बी सांस ली और उठकर बोली, क्या कर सकते है, इस धोबन माई की मर्जी के आगे तो पूरी गदहा विरादरी ही लाचार है।   

गुप्ता जी की चाय की प्याली खाली हो चुकी थी, लेकिन वे फिर भी चुस्कियाँ  लिए ही जा रहे थे। इससे यह स्पष्ट हो रहा था कि उनके मनमस्तिष्क में कितनी हलचल है। खैर, बात को घुमाते हुए वे बोले; छोडो यार, मैं भी क्या ये गदहा राग अलापने बैठ गया। मैं तपाक से जबाब देने ही वाला था कि गदहे अगर  गदहा राग नहीं अलापेंगे तो और क्या करेंगे, किन्तु मैंने बीवी जी के बड़े होते नयन देख लिए थे, मानो वह अन्तर्यामी पहले ही भांप गई हो कि इधर से भी ढेंचू-गिटार बजने वाला है।  गुप्ता जी ने आसन छोड़ा, खड़े हुए और चलते हुए बोले, अरे यार, मैंने दो लाईने कविता की लिखी थी, लेकिन आगे जोड़ने के लिए मैटिरियल ही नहीं मिल रहा। जब मैंने कहा, सुना डालो  गुप्ता जी तो वे बोले;

मेरा मुल्क,  पता है तुमको क्यों कहलाता है महान,
क्योंकि इस मुल्क में हैं सौ में से निन्यान्व़े बेईमान। 

फिर बोले, यार आगे की लाइन  नहीं बन पा रही है। मैंने कहा, अरे गुप्ता जी कुछ भी जोड़ दो, जैसे कि 

अपने आज और कल का तो किसी को यहाँ पता नहीं,
और भविष्यबाणी करते है दारू वाले, वो भी 'बे'जान।।   

और वाह-वाह-वाह करते गुप्ता जी खिसक लिए !                             


12 comments:

  1. शुभकामनायें-
    सुन्दर प्रस्तुति -

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  2. गुप्‍ताजी के माध्‍यम से अच्‍छी रही। ऐसे चौधरी सभी जगह पाए जाते हैं।

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  3. मन को छूती अनुभूति सुंदर अहसास
    बहुत बहुत बधाई

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों
    मुझे ख़ुशी होगी

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  4. तिकोनी धार का त्रितरफा मजेदार वर्णन. उत्तम...

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  5. मेरा मुल्क, पता है तुमको क्यों कहलाता है महान,
    क्योंकि इस मुल्क में हैं सौ में से निन्यान्व़े बेईमान। ...

    हा हा सच है ...
    ओर त्रिकोणी धार .... मज़ा ही आ गया उत्तम ...

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  6. इस लघु व्यंग को लिखने से पहले अपने चाय तो नहीं पी लगती। :)

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    1. डा० साहब, मैं चाय पीने के बाद कुछ लिखता ही नहीं, क्योंकि अगर कुछ लिख कर मैंने पोस्ट कर दिया तो दुसरे दिन सुबह -सबेरे मुझे लैपटॉप खोलना पड़ता है की कहीं रात को चाय पीने के बाद कुछ गड़बड़ तो नहीं लिख बैठा :)

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  7. विचारपरक व्‍यंग्‍य। और आपकी जोड़ी गईं दो पंक्तियां गजब हैं।

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  8. सवाल बड़े कठिन हैं, बे जैसे शब्द हटे नहीं और टी और टा जैसे शब्द स्वतन्त्र भी हो गये।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।