Saturday, March 30, 2013

कहने लगा चाँद जबसे










कहने लगा चाँद जबसे, चितचोर हमको,
शरमाते हुए देखते हैं,सारे चकोर हमको।

कभी लगता नहीं था कहीं,जो उदास मन,  
अब  रमने को कहता है, चहुँ ओर हमको। 

बदरी ये चाहत की जबसे, छाई है मन में,  
तेरी प्रीत की बारिश,करे सराबोर हमको।  

परेशां होने न देता,अब गम के दरिया में, 
तेरी मौजों का दिल नशीं, ये शोर हमको। 

लिखने लगे है तबसे खुद तकदीर अपनी,  
मिला महबूब का जबसे, यह ठौर हमको।  

अब डगमगा न पाएगी, कभी प्रेम पथ से, 
काली अंधियारी घटा भी, घनघोर हमको। 

तेरी कश्ती से, है दरिया के हमें पार जाना, 
कहे 'परचेत' मतवाला ये, मनमोर हमको।   

11 comments:

  1. वाह वाह परचेत साहब.. वाह.

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  2. वाह वाह...गजब की रचना. बहुत शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  3. चाहत की ये बदरी,जबसे छाई है मन में,
    तेरी प्रीत की बारिश,करे सराबोर हमको। ...

    वाह या बात है गौदियाल साहब ... उनकी प्रीत की बारिश में तो उम्र भर नहाने का मन करता है ...

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  4. हाय उफ़्फ़ ..कतल कर डाला जी कतल । एकदम कमाल है

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  5. Godiyal jee aap to cha gaye. Behad khoobsurat gazal.

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।