कहने लगा चाँद जबसे, चितचोर हमको,
शरमाते हुए देखते हैं,सारे चकोर हमको।
कभी लगता नहीं था कहीं,जो उदास मन,
अब रमने को कहता है, चहुँ ओर हमको।
बदरी ये चाहत की जबसे, छाई है मन में,
तेरी प्रीत की बारिश,करे सराबोर हमको।
परेशां होने न देता,अब गम के दरिया में,
तेरी मौजों का दिल नशीं, ये शोर हमको।
लिखने लगे है तबसे खुद तकदीर अपनी,
मिला महबूब का जबसे, यह ठौर हमको।
अब डगमगा न पाएगी, कभी प्रेम पथ से,
काली अंधियारी घटा भी, घनघोर हमको।
तेरी कश्ती से, है दरिया के हमें पार जाना,
कहे 'परचेत' मतवाला ये, मनमोर हमको।
वाह वाह परचेत साहब.. वाह.
ReplyDeleteवाह वाह...गजब की रचना. बहुत शुभकामनाएं.
ReplyDeleteरामराम.
नाव को किनारा मिले
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
ReplyDeleteवाह !!! बहुत उम्दा प्रस्तुति
ReplyDeleterecent postकाव्यान्जलि: होली की हुडदंग ( भाग -२ )
वाह !
ReplyDeletebahut khub
ReplyDeleteचाहत की ये बदरी,जबसे छाई है मन में,
ReplyDeleteतेरी प्रीत की बारिश,करे सराबोर हमको। ...
वाह या बात है गौदियाल साहब ... उनकी प्रीत की बारिश में तो उम्र भर नहाने का मन करता है ...
हाय उफ़्फ़ ..कतल कर डाला जी कतल । एकदम कमाल है
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteGodiyal jee aap to cha gaye. Behad khoobsurat gazal.
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