इंसानों और खासकर हममें से अधिकाँश स्वार्थी हिन्दुस्तानियों ने तो काफी पहले ही शर्म को इस देश से निष्काषित कर दिया था,किन्तु जब मैं नीचे चस्पा किये गए चित्र और ऐसे ही अन्य अनेक मार्मिक चित्र देखता हूँ तो मेरे जेहन में बस एक ही सवाल कौंधता है कि क्या हमारे भगवानो को शर्म आती होगी या फिर उन्होंने भी हमारी देखा-देखी देवलोक से भी उसे निष्काषित कर दिया होगा ?
उपरोक्त चित्र में एक बौद्ध भिक्षु जले हुए मंदिर में अपने इष्ट की पूजा में तल्लीन है। यह छवि बांग्लादेश के कोक्स बाजार की है, जहां मुस्लिम कट्टरपंथियों ने इसे जला दिया था। हाल ही में वहां की जमात-ऐ-इस्लामी के एक पाकिस्तान समर्थित नेता जोकि १९७१ में अनेको बेगुनाहों के क़त्ल का दोषी है को वहाँ की अदालत द्वारा मौत की सजा सुनाये जाने के बाद, उसकी पार्टी के लोगो और अन्य मुस्लिम कट्टरपंथियों ने एक सुनियोजित षड्यंत्र के तहत कई हिन्दुओं को मार डाला, हिन्दुओं के करीब ७०० घर जला डाले, और दर्जनों मंदिरों को नष्ट कर दिया। श्री मोदी को पानी के घूँट पी -पी कर कोसने वाले और असम तथा वर्मा ( म्यांमार) में मुस्लिमों पर हुए अत्याचारों के विरोध में मुम्बई में हमारे शहीदों के स्मारकों पर लात मारने वाले किसी भी माई के लाल ने यहाँ यह जुर्रत नहीं समझी कि कोई इनके दुखड़े को भी उठाये।
खैर छोडिये, किन्तु मेरा सवाल तो बस भगवान पर था कि क्या उसे शर्म भी आती होगी?
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छवि AFP से साभार !
लानत है ऐसे लोगो पर और मुझे शर्म आती है ऐसे लोगो को मुसलमान कहते हुए। और जो लोग ऐसों के खिलाफ अपनी आवाज़ दबाए बैठे हैं उन पर भी!
ReplyDeleteशर्म की बात है ...
ReplyDeleteओर किन लोगों की बात कर रहे हैं आप ... छद्म मीडिया या नेताओं की ...उन्हें तो कभी शर्म आने वाली नहीं ...
सचमुच बेशर्म हो गया है-कलुवा
ReplyDeleteठलुवा कलुवा कर रहा, फिर से बेडा गर्क |
राकस को वरदान दे, पैदा करता फर्क |
पैदा करता फर्क, नर्क का भय नहीं होता |
मारे सज्जन वृन्द, धरा को गहिर डुबोता,
लिया सुअर अवतार, ढूँढ़ता फिरता कलुवा |
ठेलुवन सा नित खेल, करे यह बडका ठलुवा ||
नितांत दुखद और तकलीफ़देह है ये सब.
ReplyDeleteरामराम.
हम तो निशब्द बैठे हैं, धर्मनिरपेक्ष जो हो गये हैं।
ReplyDeleteशर्म को भी हमको देखकर शर्म आती होगी लेकिन हमको शर्म भला क्यों आये क्योंकि हम तो सेक्युलर जो ठहरे !!
ReplyDeleteधर्म के नाम पर विध्वंश किसी भी धर्म के लिए शर्म की बात है।
ReplyDeleteबहुत अफसोसजनक है यह तो!
ReplyDeleteधर्म के नाम पर .....शर्मनाक .....
ReplyDeleteशर्म शर्म शर्म और दुखद
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ReplyDeleteबड़े ही शर्म की बात है,फिर भी हम भूल गए वो मंजर.
ReplyDeleteयही तो भारतीय लोकतंत्र है | शर्म आती है
ReplyDeleteबहुत दुखद स्तिथि...
ReplyDeleteशर्मनाक और दुखद स्थिति
ReplyDeleteदुसरे मुल्क के लोगो की कहे फिकर कर रहे है आप।
ReplyDeleteखुद हमारे मुलुक में हर रोज 5-7 दलित महिलाओं की सरेआम इज्जत लूटी जाती है वो भी खुद हिन्दुओ द्वारा ,,,
आओ पहले उसे सुधरने की कोई जुगत करी जाए ...फिर अंतरास्ट्रीय मुद्दों पर चिंतन करेंगे .