बसर हो रही कहाँ,कैसे,तुझको सब पता है,
ये कैदे बामशक्कत, जो तूने की अता है।
माना कि दूर बहुत है, मगर अंजान नहीं तू,
देख सब कुछ रहा,सिर्फ नजरों से लापता है।
हथिया लिया यहाँ पे, ठग,चोरों ने सिंहासन,
कुछ पर केस चल रहा, कुछ सजायाफ्ता हैं।
नारी की अस्मिता यहाँ,खतरे से खाली नहीं,
दरिन्दे दिखा रहे सरेराह,क़ानून को धता है।
पता नहीं क्या हुआ, आदमी को इस देश के,
गद्दार,नमकहराम फल-फूल रहे अलबता हैं।
बहुत बढ़िया आदरणीय-
ReplyDeleteशुभकामनायें-
वाह वाह बहुत ही लाजवाब.
ReplyDeleteरामराम.
अच्छी गजल !!
ReplyDeleteहथिया लिया यहाँ पे, ठग,चोरों ने सिंहासन,
ReplyDeleteकुछ पर केस चल रहा, कुछ सजायाफ्ता हैं। ...
सच कहा है गौदियाल जी ... ये सिंहासन तो कब से हथियाया हुवा है ऐसे लोगों ने ...
माना कि दूर बहुत है, मगर अंजान नहीं है,
ReplyDeleteदेख सब रहा तू, सिर्फ नजरों से लापता है।
उम्दा गज़ल.........
बहुत ही बढ़िया..
ReplyDeletehame to achchhi lagi gazal...
ReplyDelete