Wednesday, March 20, 2013

"ये कैदे बामशक्कत, जो तूने की अता है"



  
बसर हो रही कहाँ,कैसे,तुझको सब पता है,
ये कैदे बामशक्कत, जो  तूने की  अता है।  

माना कि दूर बहुत है, मगर अंजान नहीं तू,
देख सब कुछ रहा,सिर्फ नजरों से लापता है। 

हथिया लिया यहाँ पे, ठग,चोरों ने सिंहासन,
कुछ पर केस चल रहा, कुछ सजायाफ्ता हैं। 
   
नारी की अस्मिता यहाँ,खतरे से खाली नहीं, 
दरिन्दे दिखा रहे सरेराह,क़ानून को धता है। 

पता नहीं क्या हुआ, आदमी को इस देश के,
गद्दार,नमकहराम फल-फूल रहे अलबता हैं।   

7 comments:

  1. बहुत बढ़िया आदरणीय-
    शुभकामनायें-

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  2. वाह वाह बहुत ही लाजवाब.

    रामराम.

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  3. हथिया लिया यहाँ पे, ठग,चोरों ने सिंहासन,
    कुछ पर केस चल रहा, कुछ सजायाफ्ता हैं। ...

    सच कहा है गौदियाल जी ... ये सिंहासन तो कब से हथियाया हुवा है ऐसे लोगों ने ...

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  4. माना कि दूर बहुत है, मगर अंजान नहीं है,
    देख सब रहा तू, सिर्फ नजरों से लापता है।

    उम्दा गज़ल.........

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।