Monday, March 11, 2013

कार्टून कुछ बोलता है - एक उभरते उम्मीदवार का अंत !


7 comments:

  1. शुभकामनायें आदरणीय-

    कई दरिन्दे शेष है, मरते हैं मर जाँय |
    मारे मारे शर्म के, कुल मारे लटकाय ||

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    1. रविकर जी , हमारी ज्युडिशियरी (सिस्टम) से वह भी बोर हो गया था :)

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  2. शायद यही हश्र होता, पर जेल में स्वयं को फ़ांसी लगा लेना भी समझ के परे है.

    रामराम.

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  3. एक बेहया बदलाव के साक्षी बन रहे हैं हम लोग .

    ज़बर्ज़स्त तंज भाई साहब .व्यवस्था को राजा भैया ही हांक रहे हैं .

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  4. बहुत उम्दा प्रस्तुति करण
    साभार...........

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  5. समय के पहले ही चला गया..

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वक्त की परछाइयां !

उस हवेली में भी कभी, वाशिंदों की दमक हुआ करती थी, हर शय मुसाफ़िर वहां,हर चीज की चमक हुआ करती थी, अतिथि,आगंतुक,अभ्यागत, हर जमवाडे का क्या कहन...