Sunday, March 10, 2013

नयन-सुख की लाचारी को उसका धैर्य समझने का भ्रम !

 

शहर की भीड-भाड और गुजरते वाहनों से भरी सडको पर से निकलते हुए कभी आपने भी शायद कुछ ऐसा नजारा देखा होगा  कि कोई आँखों से लाचार व्यक्ति किसी कनजेस्टेड  सड़क को पार करने के इन्तजार में एक हाथ में छड़ी पकडे और एक हाथ मदद के लिए उठाये हुए बहुत देर तक सड़क के एक कोने पर तब तक खडा रहता है, जब तक कि कोई दयालू प्रवृति का इंसान  उसे सड़क पार न करवा दे। दफ्तर जाने के रास्ते में मुझे भी ऐसे ही एक सज्जन के दर्शन अक्सर हो जाते है। और जब मैं उन सज्जन से पास से गुजरते हुए अपने गंतव्य पर निकलता हूँ, तो बहुत से भाव और बिचार मेरे मन-मस्तिष्क पर अक्सर कौंधने लगते है।   

पिछले  रविवार की बात है, एक  मित्र  संग किसी काम से बाजार निकला था। मित्र महाशय ने अभी हाल में एक स्कूटी ( हौंडा एक्टिवा) खरीदी थी, बाजार की भीड़-भाड का अंदाजा लगाकर हम दोनों ने उसी से निकलना मुनासिब समझा। जनाब ने यह कहकर चाबी मुझको पकड़ा दी थी कि ज़रा तू चलाकर देख। चूकि अस्सी और नब्बे के दशक में खूब स्कूटर चलाया हुआ था, इसलिए बेहिचक उसका  निमन्त्रण स्वीकार कर तुरंत हैंडल  पकड़ लिया। ये बात और थी कि चलाते वक्त खासी परेशानी हुई और कई बार साँसे गले में अटकती नजर आई , क्योंकि गाडी धीमी करते वक्त पैर बार-बार ब्रेक ढूंढ रहे थे और ब्रेक  हेतु कलच दबाते वक्त बांया हाथ अक्सर जबरदस्ती गियर बदलने की कोशिश कर रहा था। मुख्य सड़क पर पहुंचे ही थे कि दोपहर की धूप में दूर से ही एक और नयन-सुख जी सड़क पार करने की इंतजारी में उसी परिचित मुद्रा में नजर आये। समीप ही स्कूटर रोककर मैंने मित्र से कहा, यार ज़रा,,,,, प्लीज,,,,, ! 

मित्र महाशय मेरा इशारा झटपट समझ गए थे, अत स्कूटर से  उतरकर उसने उन सज्जन को सड़क पार करवाई और फिर वापस स्कूटर में बैठते हुए उसने एक बार  जो बोलना  शुरू किया था तो बाजार पहुंचकर ही उसके मुह पर भी ब्रेक लगा था। " बहुत पेशेन्श होता  है यार, इन लोगो में",,,,,, पेशेंश नहीं होता , वो उसकी लाचारी  है,,,,, मैंने टोकते हुए उससे कहा था। हाँ, तेरी बात भी सही है,,,, मित्र ने मेरी हाँ में हाँ भरी और बोलने लगा,,, पता नहीं कब से खडा था वहाँ पर ,,,,,,,क्या करे बेचारा, इसका कोई इलाज भी तो नहीं  है उसके पास,,,दुनिया जालिमों से भरी पडी है, न जाने कब कौन टक्कर मारकर चला जाए,,,,,,असहाय से भला कौन डरता है , उसे मालूम है कि ये कुछ नहीं कर सकता,,,,,,,वाकई, ये इनकी लाचारी नहीं तो और क्या है? देखने वाले को तो ऐसा ही लगता है कि वह धैर्य दिखा रहा है किन्तु…        

उन बातों को बीते एक हफ्ता हो चुका है, किन्तु मित्र के उन नयन-सुख सज्जन के विषय में कही बातें मेरे दिमाग में अभी भी  ताजा है  । कल पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा अशरफ परवेज के अजमेर शरीफ  दरगाह पर पहुँचने की फुटेज टीवी पर देख रहा था। जयपुर में भारत के विदेश मंत्री का लंच पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री के साथ गर्मजोशी से हाथ मिलाना… वायुसेना के तीन हैलिकौप्टरों का उनके लाव-लश्कर को जयपुर से अजमेर पहुचाना… लंबा कारों का काफिला और फिर दरगाह में उनके पहुँचने और स्वागत के दृश्य, विरोध में वहाँ के दीवान का  टीवी कैमरे से दूर रहना  और फिर हाथ हिलाते हुए उनका वापस पाकिस्तान लौटना…  इत्यादि,,,इत्यादि। एक फुटेज वह भी दिखाई दी जिसमे एक दिन पहले ही संसद में हमारे प्रधानमंत्री का वह ओजसी कथन भी था कि जब तक पाकिस्तान…. हमारे आपसी सम्बन्ध सामान्य नहीं हो सकते,,,,,,,,.!                
                     
हाँ, एक और फुटेज भी  देखी, जिसमे उस पैलेस, जिसमे पाक प्रधानमंत्री जिस वक्त लंच में भारतीय पकवानों का मजा ले रहे थे, उसके बाहर कुछ नौजवान काले झंडे और हाथ में तख्तिया लेकर पुलिस से भिड़ रहे थे। उन बैनरों पर यह भी लिखा था  कि हमारे सैनिकों के सिर वापस लौटाओ,,,,,, उस फुटेज को देख मुझे ऐसा लगा मानो किसी नयन-सुख को  सड़क पार करते  हुए एक जालिम वाहन चालक न सिर्फ रौंदकर चला गया था अपितु उसकी बौडी भी साथ ले गया और उसके परिजनों को लौटाने से इन्कार करते हुए  सड़क पर चौड़ा होकर हाथ हिलाता हुआ निकल गया, और परिजन गुहार लगाते कातर नजरों से उसे निहारते रहे, बस ।      

10 comments:

  1. उस फुटेज को देख मुझे ऐसा लगा मानो किसी नयन-सुख को सड़क पार करते हुए एक जालिम वाहन चालक न सिर्फ रौंदकर चला गया था अपितु उसकी बौडी भी साथ ले गया और उसके परिजनों को लौटाने से इन्कार करते हुए सड़क पर चौड़ा होकर हाथ हिलाता हुआ निकल गया, और परिजन गुहार लगाते कातर नजरों से उसे निहारते रहे,

    पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा अशरफ परवेज के अजमेर शरीफ दरगाह यात्रा के संदर्भ में आपका उपरोक्त कथन बिल्कुल सटीक है. जब हम खुद ही अंधे और लाचार बनने को तैयार हैं तो दूसरा कोई क्या करेगा?

    रामराम.

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  2. बहुत सार्थक प्रस्तुति आपकी अगली पोस्ट का भी हमें इंतजार रहेगा महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाये

    आज की मेरी नई रचना आपके विचारो के इंतजार में
    अर्ज सुनिये

    कृपया आप मेरे ब्लाग कभी अनुसरण करे

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  3. पता नहीं, राजनीति हमें कब समझ में आयेगी?

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  4. गजब-
    साम्य-

    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    शुभकामनायें आदरणीय -
    हर हर बम बम -

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  5. सार्थक प्रस्तुति

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  6. इस देश में तानाशाही है केवल क्योंकि सरकार अंधी बहरी है। पीड़ितों की गुहार सूनी नहीं जाती यहाँ। यहाँ दो गद्दार साथ साथ दावतें उड़ाते हैं।

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  7. मुझे तो ऐसा लगा कि ये स्‍वयं नयनसुख हैं जो अल्‍लाह के दरबार में भी सलमान खुर्शीद का हाथ पकड़कर आए हैं। अरे यहाँ तो प्रधानमंत्री के नाते ना आते। अकबर भी पैदल ही गया था।

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  8. हम ही हैं वो जान बूझ के बने अंधे ... अब धैर्य तो रखना ही पड़ेगा ...
    ये तो अभिनय की लाज जो रखनी है ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।