Monday, April 15, 2013

बेकाबू अफ़साने !



तट की महीन रेत और 
लहरों के शीतल संस्पर्श पर 
लगने वाली वो 
सप्ताहिक प्रणय -हाट !

उस छोटे से 
मोहब्बत के बिसातखाने पर 
तुम्हारी परवशता, 
और बिना मोले-तोले ही 
आलिंगन का वो गर्मजोशी भरा  
भाव तुम पर उडेला जाना !  

गुजरी सदी के उन 
अफसानो  से कह दो कि 
वक्त-वेवक्त आकर, 
अब और न 
मेरे दिल के किवाडों पे 
दबिश दिया करें।


छवि गूगल से साभार !

10 comments:

  1. गुजरे जमाने के अफसाने छेड़ते हैं, हालात के हवाले हम उन्‍हें लतेड़ते हैं।

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  2. कुछ मधुर सा उकेर तो जाते हैं पर वापस भरने में समय लगता है।

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  3. खूबसूरत एहसास सँजोये स्मृतियाँ ।

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  4. बहुत ही उम्दा, शुभकामनाएं.

    रामराम.

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि-
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा आज मंगलवार (16-04-2013) के मंगलवारीय चर्चा ---(1216) ये धरोहर प्यार की बेदाम है (मयंक का कोना) पर भी होगी!
    नवरात्रों की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ!
    सूचनार्थ...सादर!

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  6. गुजरी सदी के
    उन अफसानो से कह दो
    कि वक्त-वेवक्त आकर,
    इसतरह अब और न
    मेरे दिल के किवाडों पे
    दबिश दिया करें।। ..

    उफ़ ... गज़ब का एहसास लिए ... दस्तक की गुदगुदी महसूस करती हुई रचना ... आज तो मज़ा ही आ गया ... कुछ नए रंग नज़र आ रहे हैं मिजाज में ...

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  7. खूबसूरत लम्हें कभी न कभी दिल पर दस्तक देने पहुँच ही जाते हैं ...
    बहुत बढ़िया

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  8. वाह! बहुत सुन्दर रचना | ह्रदय पुलकित हो उठा कविता पढ़कर | आभार

    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    Tamasha-E-Zindagi
    Tamashaezindagi FB Page

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  9. वाह..
    शुभकामनायें आपको !!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।