Saturday, March 28, 2020

वाहवाही बटोरने की मानसिकता पर ब्रेक की जरूरत ।

हडवडी मे घोषित देशव्यापी सर्व लॉकडाउन कुछ ही दिनों मे गरीब मजदूरों, रेडी-पटरी वालों के पलायन की ऐसी भयावह तस्वीर पेश करेगा कभी सोचा न था। 21वीं सदी का भारत कमोवेश देश विभाजन के समय की स्थिति से ज्यादा भिन्न नहीं नजर आ रहा। अतः मन मे कई सवाल उठना लाजिमी है।

सबसे पहला और प्रमुख सवाल यह उठ खडा हुआ कि ऐसी अस्तव्यस्तता की स्थिति पैदा क्यों हुई, इसकी मुख्य वजह क्या है? पांच ट्रीलियन की अर्थव्यवस्था के सपने देखना, विश्व समुदाय के बीच अपने को चौथी और पांचवीं सबसे बडी अर्थ व्यवस्था के खिताब से नवाजा जाना मन को क्षणभंगुर सुख की अनुभूति अवश्य प्रदान करता है किन्तु अंदर की सच्चाई जानने लगो तो एक भयावह तस्वीर नजरों के सामने घूमने लगती है।

राजनेताओं और सत्तातंत्र के मुह से यह सुनने मे तो काफी सुखद लगता है कि हम अगले तीन महिनें तक 80 करोड़ लोगों को फ्री का राशन खिलाएंगे। हम देश की राजधानी मे रोज चार लाख लोगों को मुफ्त़ मे भोजन देंगे। मगर वास्तविक सच्चाई ये है कि ये लोग इनके लिए सत्ता हासिल करने का एक माध्यम मात्र है। एक बार अगर ये सत्ता पर काबिज हो जाएंं तो इन महापुरुषों से ये सवाल कोई नहीं कर सकता कि अरे, भले मानुसों, अगर हमें रोज मुफ्त़ का पेटभर भोजन उपलब्ध हो जाता, फ्री की राशन और पैसा मिल जाता तो हम पागल थे जो देश की राजधानी छोड, भूखे-नंगे अपने गाँव की ओर पैदल ही निकल पडते? हम सडकों पर पुलिस के डण्डे खाएं और जो अमीर इस महामारी को इस देश के अन्दर लाए उन्हें आप विमान भेजकर विदेशी धरती से खुशी-खुशी देश लेकर आओ।

कुछ राजनीतिज्ञो और उनकी सरकारों के प्रयास ईमानदार होंगे, इसमे कोई संदेह नहीं कि यह कौन देखेगा कि क्या उनके प्रयासों का प्रतिफल उचित जरूरतमंदो को मिल भी रहा अथवा नहीं? 'एक देश एक राशन कार्ड' के चक्कर मे उत्तराखंड समेत कई राज्यों मे लम्बे समय से राशनकार्ड बनने ही बंद हो रखे हैं। फिर कोई जरूरतमंद आर्थिक पैकेज का लाभ कैसे उठाएगा ? और अंदर झांक कर दखोगे तो पाओगे कि सरकार के ईमानदार प्रयासों के बावजूद भी एक मोटी जमात ऐसी है जो आर्थिक रुप से सुदृढ़ होते हुए भी बीपीएल के 2 रुपये कीलो चावल का लुत्फ़ उठा रही है।



महामारी का संक्रमण न हो इसके लिए सडक पर चार लोग एकत्रित तो नहीं हो रहे, यह तो आपने तत्परता से देखा लेकिन जो हजारों लोग बस अड्डों के समीप पिछले कई दिनों से एकत्रित होकर धक्के खा रहे हैं, वहां भी तो संक्रमण का अंदेशा है, यह कौन देखेगा? सेकडों की संख्या मे रेलगाड़ियां कुछ दिनों से खडी हैं। हमारे रेल मंत्री जी रेल सुधारों के बारे मे रोज अच्छे-अच्छे ट्वीट करते हैं। मगर यह देखने की किसी को फिक्र नहीं कि हजारों गरीब सेकडों किलोमीटर की यात्रा पैदल कर रहा है।

क्या ही अच्छा होता कि जनता के बीच '8PM वाले PMJi' का टाईटल अर्जित कर चुके माननीय प्रधानमंत्री जी विश्व समुदाय की वाहवाही के ख्याल को नजरअंदाज कर दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर तीन चार दिन पहले से देश की जनता को सरकारी तंत्र के माध्यम से यह सूचित करते कि अमूक तिथि से देश मे सम्पूर्ण लॉकडाउन होने जा रहा है। और अंतिम वक्त पर मारामारी और Chaos पैदा न होता। देश को महामारी से बचाने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है और सरकार उस जिम्मेदारी को निभाने का एक माध्यम। यह सरकार की जिम्मेदारी बनती है कि उसका हर निर्णय परिपक्व हो।

6 comments:

  1. "देश को महामारी से बचाने की जिम्मेदारी हर नागरिक की है और सरकार उस जिम्मेदारी को निभाने का एक माध्यम..."
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    सार्थक सन्देश।

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  2. यह दृश्य आँखों को नम कर गया

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।