Friday, March 27, 2020

कोरोना वायरस पर मोदी सरकार का हवाई फायर ।

सिर्फ हमारा देश ही नही अपितु पूरा विश्व समुदाय इस वक्त चीन के वूहान प्रान्त से शुरू हुए एक जानलेवा वायरस जिसे कोविड-19 नाम दिया गया है, से बुरी तरह जूझ रहा है। इस खतरनाक वायरस से प्रभावित हर देश की सरकारें अपने-अपने ढंग से नियंत्रण पाने की जी तोड कोशिशों मे जुटी हैं।

विश्व के कुछ चुनिन्दा शक्तिशाली देशों की क्रोना वायरस के आगे विवशता को देखते हुए तथा यहां मौजूद सीमित साधनों के मध्यनजर हमारी सरकार ने बडी चतुराईपूर्वक समय रहते इसपर नियंत्रण के लिए जो कदम उठाए उसकी मैं तारीफ करता हूं।

इसमे शायद ही किसी को संदेह हो कि हमारी मौजूदा सरकार न सिर्फ निपुण है बल्कि चुनौतियों का सामना करने मे भी सक्षम है। बस, कभी-कभार इनकी ये चातुर्यता थोड़ी ज्यादा (over) सी महसूस होने लगती है। जो सरकार की मुद्दे पर गम्भीरता के प्रति मन मे संदेह सा पैदा करने लगती है।

अभी कल ही सरकार की वित्तमंत्री, श्रीमती निर्मला सीतारमण ने क्रोना की वजह से पूरे देश मे तीन सफ्ताह की तालीगिरी (Lockdown)  से उत्पन्न मौजूदा संकट से निपटने के लिए सरकार की तरफ से एक लाख सत्तर हजार करोड़ के विशाल आर्थिक पैकेज की घोषणा की। इस आर्थिक पैकेज मे जहां कुछ पहलुओं पर सरकार का नजरिया बहुत ही सार्थक है वहीं इसमें किये गये प्रावधानों और घोषणाऔं की यथार्थता के प्रति संदेह भी पैदा होता है और यूँ लगने लगता है कि सरकारी तंत्र अपने चातुर्य से कहीं जनमानस की आंखों मे धूल तो नहीं झोंक रहा?

मसलन, कल के आर्थिक पैकेज की घोषणा मे सरकार कहती है कि वह उन प्राईवेट संस्थानों जिनके यहां 100 तक कर्मचारी/मजदूर काम करते हैं और 100 मे से अगर 90 या उससे अधिक कर्मचारियों का वेतन(जिसपर प्रोविडेंट फण्ड कटता है) 15000 रुपये से कम है,  अगले तीन माह तक कर्मचारी/मजदूर और नियोक्ता दोनों के हिस्से का फण्ड सरकार अपनी जेब से जमा करेगी। इससे अस्सी लाख कर्मचारियों/मजदूरों को फायदा होगा।
अब यहां व्यवहारिक तौर पर देखने वाली बात यह है कि मान लो एक प्राईवेट फर्म है जिसमे कुल 100 लोग नौकरी करते हैं और जिसमे से नवासी(89) मजदूर जिनकी सेलरी 15000 रुपये से कम है और 11 कर्मचारी विभिन्न पदों पर काम करते हैं, जो हर महीने 15000 से अधिक कमाते हैं और हमारे देश मे यह एक बहुत स्वाभाविक बात है कि आठ मजदूरों के ऊपर दो कर्मचारी काम करते ही करते हैं। तो सरकार की उपरोक्त शर्त के अनुसार तो कोई भी प्राईवेट संस्थान इस पैकेज का लाभ नहीं उठा सकता? 

इसी तरह कुछ अपवादों को छोड गोर से देखें तो अन्य घोषणाओं मे भी बहुत से लोचे नजर आते हैं जो इस बाबत सरकार की मनसाहत पर संदेह पैदा करते हैं। यहां, एक और बात यह भी गौर करने वाली है जैसे कि मान लो, दिल्ली की एक फर्म है जिसमे 20 मजदूर काम करते हैं। दिल्ली सरकार ने एक अकुशल श्रमिक की न्यूनतम मजदूरी 15000 रुपये मासिक के करीब निर्धारित की हुई है तो उस सस्थान को तो कोई लाभ ही नहीं मिलेगा। क्या ही अच्छा होता कि पीएफ का झुनझुना पकडाने की बजाए सरकार आर्थिक तंगी से जूझ रहे सस्थानों से कहती कि वेतन देने के लिए वे बैंकों से तीन या छह माह का कर्ज ले सकते हैं जिसका ब्याज सरकार चुकाएगी।

-पीसी गोदियाल 'परचेत'

1 comment:

प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।