Friday, June 19, 2015

छणिकाएँ

एहसास :
'अच्छे दिन" 
अभी दूर की कौड़ी है,
इस जोड़े का दुस्साहस देखकर 
इतना तो एहसास  मिल ही गया।  


रमादान:
 इबादत के इस दौर में, मांगता हूँ मैं भी ये दुआ खुदा से कि 
 ऐ खुदा, कुछ अंधभक्तों को भी अपने, थोड़ी सी अक़्ल देना।

क्रेडिट कार्ड: 
बनकर आया है जबसे
अपनी श्रीमती जी का क्रेडिट कार्ड, 
घर ई-कॉमर्स कंपनियों के  
दफ़्ती,डिब्बों के ढ़ेर में तब्दील हो गया है।   

अच्छे दिनों के इंतज़ार में :
जरुरत से ज्यादा 'लीद' निकाली है  जबसे कम्बख्त  मैगी ने, 
बुरे दिन लौट आये है स्वास्थ्य विघातक अर्वाचीन  बीवियाँ के।  


योग जूनून:
कुछ इसतरह फंस गई जिंदगी 
अलोम -विलोम के चक्कर में
कि अब तो बीवी के हाथों की
सुबह की चाय भी नसीब नहीं होती।       


4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (20-06-2015) को "समय के इस दौर में रमज़ान मुबारक हो" {चर्चा - 2012} पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक

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  2. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, कदुआ की सब्जी - ब्लॉग बुलेटिन , मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  3. अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति बहुत ही अच्छा लिखा आपने .बहुत ही सुन्दर रचना.बहुत बधाई आपको . और कुछ अपने विचारो से हमें भी अवगत करवाते रहिये.

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संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।