Friday, February 23, 2024

द्वंद्व !

 











निरुपम अनंत यह संसार इतना, क्या लिखूं,

ऐतबार हुआ है तार-तार इतना, क्या लिखूं ।


सर पर इनायतों का दस्तार इतना, क्या लिखूं 

है मुझपर आपका उपकार इतना, क्या लिखूं ।


और न सह पायेगा मन भार इतना, क्या लिखूं,

दिल व्यक्त करे तेरा आभार इतना, क्या लिखूं। 


सरेआम डाका व्यवहार पर इतना, क्या लिखूं,

दिनचर्या में लाजमी आधार इतना, क्या लिखूं।


इस दमघोटू परिवेश में भी दम ले रहा 'परचेत',        

है इस ग़ज़ल का दुरुह सार इतना, क्या लिखूं ।

4 comments:

  1. बेहतरीन पंक्तियाँ

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  2. और न सह पायेगा मन भार इतना, क्या लिखूं,

    दिल व्यक्त करे तेरा आभार इतना, क्या लिखूं।
    वाह!!!

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  3. सुन्दर पंक्तियाँ , आदरणीय .

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संशय!

इतना तो न बहक पप्पू ,  बहरे ख़फ़ीफ़ की बहर बनकर, ४ जून कहीं बरपा न दें तुझपे,  नादानियां तेरी, कहर  बनकर।