Wednesday, November 11, 2009

गलत समझने का आनंद !

भतीजे और उसके साथी गुंडों ने एक बार फिर अपनी अशोभनीय और गिरी हुई हरकतों से जिस तरह देश दुनिया का मनोरंजन किया उसकी जितनी भी घोर निंदा की जाए, मैं समझता हूँ, कम ही है! ये अगर अपनी हर उचित और अनुचित मांग को मनवाने के लिए लोगो को डराए धमकाए, तो इस देश में आजादी के मायने क्या है ? जहां चाचा ने भी अपने वक्त में तरह तरह के ढोंग रचकर अपना उल्लू साधा वही भतीजा आज जिस लक्ष्मण रेखा को लाँघ रहा है, उसे उस रेखा को लाघने की विद्या भी चाचा से ही मिली थी! आप को याद होगा कि कुछ सालो पहले एक बार चाचा ने जब मुस्लिम आतंकवाद की तर्ज पर हिन्दुओ के भी आत्मघाती दस्ते बनाने की बात कही थी तो चाचा के इस घिनौने प्रयास पर टिप्पणी करते हुए एक वरिष्ठ स्तम्भकार ने लिखा था कि यदि चाचा को आत्मघाती दस्ते बनाने ही हैं तो वह इसकी शुरुआत सर्वप्रथम अपने बेटे और भतीजे के रूप में पहला आत्मघाती मानव बम के रूप में क्यों नहीं करता? लेकिन चाचा तो किसी और के बेटे को आत्मघाती बनाने की ताक में था !

खैर ये तो चाचा भतीजे के कारनामो की छोटी सी लिस्ट थी, लेकिन जो मैं कहना और बताना चाह रहा था, वह यह कि देश में हाल ही में संविधान और राष्ट्र हितों पर दो जबरदस्त कुठाराघात देवबंद और मुंबई में हुए, लेकिन इस देश की सत्ता के प्रमुख हमारे प्रधानमंत्री जी एक शब्द भी नहीं बोले, इस पर, आखिर क्यों ? इस चुप्पी के मायने, क्या एक प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य नहीं होता कि सत्ता की बागडोर जब उनके हाथो में है तो वे इस पर सत्तापक्ष की स्थिति को स्पष्ट करे ? प्रश्न यह उठता है कि इस सार्वभौमिक देश में उस संविधान की दुहाई देने वाले कहाँ है जिस संविधान के आधार पर यह देश अपने नागरिको को समानता का अधिकार देता है? भाषाई स्वतंत्रता का अधिकार देता है ? राष्ट्रवाद का ढोंग रचने वाले किस सेकुलर थ्योरी के अंतर्गत मूकदर्शक बनकर भतीजे और देवबंद के मुल्लाओ का यह नंगा नाच देख रहे है ? क्या सिर्फ चार विधायको को निलंबन भर से इनके कर्तव्य की इतिश्री हो गई ? और बहुत संभव है कि अभी कुछ दिनों बाद ही माफीनामे की धूल जनता की आँखों में झोक उनका निलंबन भी रद कर दिया जाएगा !

अब अंत में गलत समझने के आनंद के बारे में बताता हूँ ; एक अंग्रेज दंपत्ति भारत घूमने आये थे, इस देश की राजनीति के दांव-पेंचो से बेखबर ! दिल्ली से सड़क मार्ग से उदयपुर जा रहे थे, कि जयपुर भी नहीं पहुँच पाए और लौटना पडा, क्योंकि तेल डिपो पे आग की वजह से रास्ते बंद हो गए थे ! वापस दिल्ली आकार हरिद्वार घूमने के लिए गए , लौट रहे थे तो सड़क मुज्जफरनगर में किसानो ने बंद करदी गन्ने के मूल्य बढाने की अपनी मांगो के समर्थन में ! पूरे आठ घंटे फंसे रहे ! दिल्ली लौटने पर जब मैंने उनकी सुखद यात्रा के विषय में पूछा तो उफ़ करने के बाद उन्होंने सवाल दागा, कि इस देश में कोई शासन चलाने वाला है भी ? मैंने कहा हां, मनमोहन सिंह जी है,......फिर उनके बातो-बातो में ज्यादा डिटेल पूछने पर मैंने कहा.... ही इज अ सिख....... वी हैव अ सिख प्राइम मिनिस्टर, मैंने और विस्तृत तरीके से कहा, मगर यह क्या , अंग्रेज दम्पति एक साथ बोल पड़े ...ओह.. देंन औवियसली.. .....!!! शायद सोच रहे होंगे कि जब देश का कर्ता-धर्ता ही बीमार है, तो देश कहा से स्वस्थ होगा?

16 comments:

  1. क्या गोदिया्ल जी? कल आप सालों को गरिया रहे थे आज भतीजो को धार पर धर लिया। सब ठीक ठाक है न, अब हमको बैठे-बैठे ही चिंता मे डाल दिये कि कल भाईयों का तो नम्बर नही है-हा हा हा ये हंसी स्लाग ओवर के लिए।-आभार

    ReplyDelete
  2. बहुत ही लाजवाब प्रस्तुति रही आपकी । साथ ही लेखन भी धारदार रही .........

    ReplyDelete
  3. कमाल लिखते है ....हंस हंस के पेट मे बल पड रहे है............शुक्रिया!

    ReplyDelete
  4. "सत्तापक्ष की स्थिति को स्पष्ट करे?"

    क्या खा के करेंगे?

    ReplyDelete
  5. aap bahoot hi dho dho kar maarte hain ..... mazaa aa gaya padh kar ...

    ReplyDelete
  6. अच्छे सटके दिये हैं.

    रामराम.

    ReplyDelete
  7. वैसे गलत पढ़ने का भी अपना ही मजा है कभी उठाकर देखें।

    ReplyDelete
  8. सही है महारष्ट्र के हालात बदतर हो चले हैं उन्हें महारास्त्र के अलावा कुछ और नहीं सूझता सिर्फ ग्रेट महाराष्ट्र और उल जुलूल बातें|
    और प्रधान मंत्री जी तो सचमुच सिखों के नाम पर दाग है और वो सचमुच ही sick हैं!!! बहुत सुन्दर लेख!!!

    ReplyDelete
  9. "इस देश की सत्ता के प्रमुख हमारे प्रधानमंत्री जी एक शब्द भी नहीं बोले, इस पर, आखिर क्यों ?"

    आप को याद दिला दें कि इस प्रधानमंत्री के प्रथम रजनीतिक गुरू थे पूर्व प्रधान मंत्री जो यह कहते थे कि the law will take its own course और फिर मौन हो जाते थे :)

    ReplyDelete
  10. हा हा हा ...

    सबको इलाज की जरूरत है ।

    ReplyDelete
  11. क्या एक प्रधानमंत्री का यह कर्तव्य नहीं होता कि सत्ता की बागडोर जब उनके हाथो में है तो वे इस पर सत्तापक्ष की स्थिति को स्पष्ट करे ?बोलते भी है तो लगता है मिन मिना रहे हो, उस कुर्सी पर शेर की दहाड वाला ओर दिल वाला बेठना चाहिये लाल बहादुर जेसॊ के लिये बनी है यह कुर्सी, कठ पुतली क्या सत्ता की बाग डोर समभालेगी....
    बहुत सुंदर लिखा आप ने.
    धन्यवाद

    ReplyDelete
  12. लगे रहो जी!
    गुस्सा कहीं तो उतरेगा ही!

    ReplyDelete
  13. गज़ब का हथौडा मारा जी..................
    भीतर तक सिरहन महसूस हुई...........
    आभार !

    ReplyDelete
  14. रियली ही इस ए sick...
    अंधेर नगरी, चौपट राजा वाली कहावत यहाँ पूरी तरह से फिट बैठती है ।

    ReplyDelete
  15. पूरा तंत्र ही SICK है , पता नहीं कब तक लोकतंत्र का मजाक ,ये मसखरे उडाते रहेंगे

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...