Friday, November 6, 2009

बेच खाया देश को........

बाग-डोर पकड़ डाली ,
लुच्चे ,लफंगों ने !
 तिजोरी कर दी खाली ,
ऐयाश, नंगो ने !!

कभी सोने की चिडिया,
 देश सर्वनाम था !
बेकस,लाचार  के लिए
आश्रय -धाम था !!

वंदेमातरम भी उलझाया ,
फिजूल के पंगो ने !
वतन को ही बेच खाया ,

ऐयाश, नंगो ने !!

लुप्त प्राय हो चुके है अब ,
धर्म और ईमान !
तुष्टिकरण में लूटा दिया ,
देश का सम्मान !!

जनतंत्र  छल-पेशा  किया ,
बाहुबली-भुजंगों ने !
बेच खाया समग्र देश को,

ऐयाश, नंगो ने !!

भारत शान्ति के पक्षधर था ,
'अतिथि देवो भव:' नारा था !
जहां पहुँच अनजान क्षितिज को ,
मिलता एक सहारा था !!

आज कटुता फैला दी है ,
धर्मांध व्यक्रित दंगो ने !

वतन को ही बेच खाया ,
ऐयाश, नंगो ने !!

7 comments:

  1. "तुष्टि के लिए बेच डाला,
    देश का सम्मान !!"

    बिल्कुल सही है!

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  2. बहुत ही सही लिखा है आपने... बधाई

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  3. कटुता फैला दी,
    धर्मान्धता के दंगो ने !
    बेच खाया देश को,
    भूखे और नंगो ने !!
    बहुत सुन्दर

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  4. सुन्दर बात ...सचमुच बेच खाया है देश को

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  5. देश की बागडोर पकड़ ली,
    लूचे और लफंगों ने !
    बेच खाया देश को,
    भूखे और नंगो ने !!

    सभी छंद नगीने की तरह से सजाए हैं, आपने!

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  6. कटुता फैला दी,
    धर्मान्धता के दंगो ने !
    बेच खाया देश को,
    भूखे और नंगो ने !!

    सत्य कथन्!! प्रत्येक छन्द एक सच उजागर करता हुआ......

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।