बाग-डोर पकड़ डाली ,
लुच्चे ,लफंगों ने !
तिजोरी कर दी खाली ,
ऐयाश, नंगो ने !!
कभी सोने की चिडिया,
देश सर्वनाम था !
बेकस,लाचार के लिए
आश्रय -धाम था !!
वंदेमातरम भी उलझाया ,
फिजूल के पंगो ने !
वतन को ही बेच खाया ,
ऐयाश, नंगो ने !!
लुप्त प्राय हो चुके है अब ,
धर्म और ईमान !
तुष्टिकरण में लूटा दिया ,
देश का सम्मान !!
जनतंत्र छल-पेशा किया ,
बाहुबली-भुजंगों ने !
बेच खाया समग्र देश को,
ऐयाश, नंगो ने !!
भारत शान्ति के पक्षधर था ,
'अतिथि देवो भव:' नारा था !
जहां पहुँच अनजान क्षितिज को ,
मिलता एक सहारा था !!
आज कटुता फैला दी है ,
धर्मांध व्यक्रित दंगो ने !
वतन को ही बेच खाया ,
ऐयाश, नंगो ने !!
लुच्चे ,लफंगों ने !
तिजोरी कर दी खाली ,
ऐयाश, नंगो ने !!
कभी सोने की चिडिया,
देश सर्वनाम था !
बेकस,लाचार के लिए
आश्रय -धाम था !!
वंदेमातरम भी उलझाया ,
फिजूल के पंगो ने !
वतन को ही बेच खाया ,
ऐयाश, नंगो ने !!
लुप्त प्राय हो चुके है अब ,
धर्म और ईमान !
तुष्टिकरण में लूटा दिया ,
देश का सम्मान !!
जनतंत्र छल-पेशा किया ,
बाहुबली-भुजंगों ने !
बेच खाया समग्र देश को,
ऐयाश, नंगो ने !!
भारत शान्ति के पक्षधर था ,
'अतिथि देवो भव:' नारा था !
जहां पहुँच अनजान क्षितिज को ,
मिलता एक सहारा था !!
आज कटुता फैला दी है ,
धर्मांध व्यक्रित दंगो ने !
वतन को ही बेच खाया ,
ऐयाश, नंगो ने !!
"तुष्टि के लिए बेच डाला,
ReplyDeleteदेश का सम्मान !!"
बिल्कुल सही है!
वाह .. सुंदर रचना !!
ReplyDeleteबहुत ही सही लिखा है आपने... बधाई
ReplyDeleteकटुता फैला दी,
ReplyDeleteधर्मान्धता के दंगो ने !
बेच खाया देश को,
भूखे और नंगो ने !!
बहुत सुन्दर
सुन्दर बात ...सचमुच बेच खाया है देश को
ReplyDeleteदेश की बागडोर पकड़ ली,
ReplyDeleteलूचे और लफंगों ने !
बेच खाया देश को,
भूखे और नंगो ने !!
सभी छंद नगीने की तरह से सजाए हैं, आपने!
कटुता फैला दी,
ReplyDeleteधर्मान्धता के दंगो ने !
बेच खाया देश को,
भूखे और नंगो ने !!
सत्य कथन्!! प्रत्येक छन्द एक सच उजागर करता हुआ......