Saturday, September 19, 2009

कृपया ज़रा इस सच का भी सामना करे !

पहले स्पष्ट कर दूं कि मेरा किसी भी व्यक्ति अथवा सम्प्रदाय की धार्मिक भावनाओं को न कभी ठेश पहुचाने का कोई उद्देश्य रहा है, और न कभी ऐसी कोई कोशिश करूंगा ! चिटठा जगत पर जो लोग मुझे जानते है, वे यह भी बखूबी जानते है कि पिछले साल-छः महीने में किस तरह कुछ गिनेचुने लोगो द्वारा आम लोगो की धार्मिक भावनाओं और आस्थाओ को चोट पहुचाने का जब भी यहाँप्रयास किया गया, मैंने उसका पुरजोर विरोध किया !

हम सभी लोग जानते है कि आज के इस तकनीकी युग में हम लोग जब कभी अपने परिवारों के साथ सैर पर जाते है तो फोटो खीचते/खिचवाते है, वीडियो बनाते है, ताकि कालांतर में अपनी उन स्मृतियों को ताजा कर सके !

अब मै कुछ उन इस्लाम के चैम्पियनों, जो यहाँ पर ब्लॉग के जरिये लोगो को बड़े-बड़े उपदेश देते फिरते है, उनसे पूछना चाहता हूँ कि जो फोटो मैंने नीचे दी है, उसकी क्या उपयोगिता है ? ( गंभीरता से प्रश्न कर रहा हूँ, कृपया इसे हलके में न ले ) यदि कोई उपयोगिता नहीं है तो मेरा उनसे निवेदन है कि बजाय यहाँ पर उपदेश सुनाने के अपने समाज में जाए और इस बुराई को दूर करने का प्रयास करे ! खूबसूरती देखने के लिए ही होती है, ढकने के लिए नहीं (एक सीमा में ) !


17 comments:

  1. ऐसे चित्र हर धर्म के मानने वालों के इन्‍टनेट पर आसानी से उपलब्‍ध हैं, यह उस धर्म का नहीं उस व्यक्ति कि अक़लमंदी या मूर्खता का संबंध होता है ना कि पूरे समुदाय का, अगर अपने धर्म को शर्मिंदा करवना चाहो तो अपने सलीम खान कहते हैं मैं गूगल में तुरंत काम की चीज ढूंडकर पेश कर देता हूं, आजमालो,
    अरे अगर समय है तो इस्लाम के उस पहलू पर विचार करो

    signature:
    कि मुहम्मद सल्ल. कल्कि व अंतिम अवतार और बैद्ध मैत्रे, अंतिम ऋषि (इसाई) यहूदीयों के भी आखरी संदेष्‍टा हैं या यह Big game against islam? है
    antimawtar.blogspot.com (Rank-1 Blog)

    इस्लामिक पुस्तकों के अतिरिक्‍त छ अल्लाह के चैलेंज
    islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
    Direct link '

    ReplyDelete
  2. मेरा रैंक 2 ब्लाग का डायरेक्‍ट लिंक पिछले कमेंट में ठीक काम नहीं कर रहा इस लिये उसका डायरेक्‍ट लिंक दोबारा दे रहा हूँ

    इस्लामिक पुस्तकों के अतिरिक्‍त छ अल्लाह के चैलेंज
    islaminhindi.blogspot.com (Rank-2 Blog)
    Direct link '

    ReplyDelete
  3. जनाब अब ये तो कोई बात नहीं हुई ....

    मैं भी महुम्मद साहब की नाट से तकल्लुफ रखता हूँ .....

    एक आदमी की बेवकूफी से आप धर्म को हे बेकार क्यों कह रहे है?जैसा की आपने कहा की धर्म में बदलाव कीजिये......इसका मतलब ये चीज उसकी १ बुरे है ...और दूसरी तरफ आप ये भी बोलते है की मैं किसी साम्प्रादय की बुरे नहीं कर रहा ..........

    जनाब अगर आपको थोडा भोत याद हो तो अगर पिछले कुछ शतक छोडे जाये तो हिन्दुओ में भी परदे का रिवाज था......यहाँ तक औरते पूरी पूरी ज्जिंदगी अपने हाथ तक भी नहीं दिखाती थी.......

    तो आप कृपया सुधर और बेसुधर की बातो को तो छोड़ ही दीजिये ........

    बाकि आपकी मर्जी मैं कौन होता हु सलाह देने वाला.........

    और हाँ जाते जाते............ जनाब मैं भी एक हिन्दू हूँ :)

    ReplyDelete
  4. जनाव आपसे विनम्र निवेदन है कि आप मेरा लेख ज़रा ठीक ढंग से पढ़े, मैंने कही पर भी ऐसा नहीं लिखा है ! मैंने लिखा है "समाज", अब अगर आप लोगो की दृष्थी ही संकुचित है तो उसमे मै क्या कर सकता हूँ भला ?

    ReplyDelete
  5. प्यारे उपदेशक मित्रों,

    हिन्दु औरते परदे में थी. इसे मानते है. जरा इतिहास में झाँके उन्हे परदे में कब और क्यों धकेला गया? हमारे मन्दिरों तक में निवस्त्र प्रतिमाएं थी.

    वहीं हिन्दु औरतों को परदे से मुक्ति मिली यह सही हुआ या गलत? अगर सही हुआ तो आप कब सही होवोगे?

    अगर आपके मामले में मेरा टाँग अड़ाना गलत लग रहा है तो कृपया हिन्दुओं को भी आपकी नसीहत की जरूरत नहीं. हम एक किताब के अन्धे अनुयायी न कभी रहे, न रहेंगे.

    आपके बताए अनुसार अगर मोहम्मद अंतिम अवतार है, तो हमें भी उन्हे अपने दस अवतारों में शामिल करने में कोई आपत्ति नहीं. आप भी बाकी दस को खूदा का अवतार मान लें.

    ReplyDelete
  6. संजय बैंगाणी जी से १०० % सहमत !

    ReplyDelete
  7. @ गोदियाल जी
    श्रीमान बात ऐसी है की हम सब यहाँ हिंदी लेख से ही जुड़े है और कौन सा शब्द कौन सी कहानी समझाता है हर कोई अच्छी तरह से समझता है तो.......शब्दों के चक्रव्यूह बनाना तो भूल ही जाइये.......

    अच्छा एक बात और संवाद करने के लिए आदमी के कई तरीके होते है और उनमे से दो ये भी होते है :-
    १- शाब्दिक
    २- तार्किक

    मैं तार्किक होने पर ज्यादा जोर देर हो रहा हूँ हो सके तो आप भी दे

    धन्यवाद्

    कुंवर पुनीत पुंडीर

    ReplyDelete
  8. @ PUNEET
    पुंडीर जी, आपकी बात सर आँखों पर, लेकिन अगर आप मेरी बात पर गौर करे तो मैंने भी अपनी बात तार्किक तौर पर ही रखी है, मैंने पूछा है की परदे की एक हद के बाद उपयोगिता क्या है ? आप उस बात पर अपना ध्यान केन्द्रित करे बजाये बाते घुमाने के !

    ReplyDelete
  9. आपने ये बात तो बिलकुल सही कही इस बात में कोई दो राय नहीं की ''परदे की भी एक हद होती है''.....और मैं इस बात के खिलाफ नहीं .......

    वह असल में एक वाक्य लिखा है '' जाईये अपने अमाज में वापिस और इस बुराई को दूर कीजिये ''........ये वाक्य तो ऐसा हुआ की बिलकुल उन्हें परजीवी बना दिया गया है......और पता नहीं किसी के दिल पर इस बात की क्या गुजरे...

    हम्म.... उदाहरण के तौर पर ये देखिये .....

    अगर कोई अंग्रेज हमसे भगवान् हनुमान की बारे में ये बात कहता है की देखो ये तो बंदर की पूजा करते है .......'' भक्ति की भी कोई हद है ''....... उन्हें नहीं पता की हमारी भगवान् हनुमान के बारे में क्या मान्यता है लेकिन हमे तो पता है......शयद ये ऐसी बात जिसे हम समझते है लेकिन उनका प्रधान मंत्री तक न जानता हो......

    उसी तरह से ये भी एक ऐसी चीज़ है जिसके बारे में हमे कहने का शायद अधिकार नहीं........जब तक हम खुद एक इस्लामी न हो.......

    ----------------------
    और बाकि आप मुझसे बड़े है और ज्यादा समझदार है और अगर कोई भूल चुक हो गयी हो तो कृपया क्ष्मा कीजियेगा .......

    धन्यवाद्

    कुंवर पुनीत पुंडीर

    ReplyDelete
  10. @संजय बेगाणी

    तो श्रीमान आप नग्न मूर्तियों से सीखते है और व्यक्तिगत जीवन में उसके अनुसार बदलाव करते है ?

    पहले चरण में उन्हें देख कर आपने परदे उतारे ........अब दुसरे चरण के लिए क्या विचार तय किया है ?

    ReplyDelete
  11. @संजय बेगाणी

    तो श्रीमान आप नग्न मूर्तियों से सीखते है और व्यक्तिगत जीवन में उसके अनुसार बदलाव करते है ?

    पहले चरण में उन्हें देख कर आपने परदे उतारे ........अब दुसरे चरण के लिए क्या विचार तय किया है ?

    ReplyDelete
  12. पुनितजी, समय और आवश्यकतानुसार जो भी सही लगेगा उसे अपनाएंगे. हमारा धर्म हमें बाँधता नहीं, मुक्त करता है.

    ReplyDelete
  13. यहाँ तो बकवादी खुजली मची हुई है। संजय वेंगाणी इसमें कैसे उलझ गये?

    ReplyDelete
  14. वाह गोदियाल जी! क्या फोटो दिखाया है!! मान गए भइ आपको!!!

    पर आपसे अनुरोध है कि सबसे पहले आप अपने इस पोस्ट से कुप्रचार और विज्ञापन वाली टिप्पणी को मिटा दें। अग्रिम धन्यवाद भी स्वीकारें।

    गोदियाल जी, आजकल अर्थ का अनर्थ निकाल कर और कुतर्क करके दूसरों को उकसाने का एक नया चलन शुरू हो गया है जिसका साफ साफ उद्देश्य है खुद को सही बता कर स्वयं को महाज्ञानी तथा दूसरों को मूर्ख साबित करने की कोशिश करना औ‌र अपने विचारों को दूसरों पर लादने की कोशिश करना। आप क्यों उकसावे में आकर व्यर्थ जवाबदेही करते हैं। अच्छा तो यह है कि टिप्पणी मॉडरेशन को सक्षम करके ऊल-जुलूल टिप्पणियों को प्रकाशित ही न होने दें।

    ReplyDelete
  15. सभ्य कहलाने वाली इस दुनिया ने
    सच कहने की आदत को हमारी
    बगावत करार दिया है !
    हम तो चले थे बस उन्हें शराफत से
    आईना दिखलाने, उन्होंने इसे हमारी
    शरारत करार दिया है !!

    ReplyDelete
  16. dear readers

    islam can not be understood in better way without going through scholarly articles by agniveer site.

    self acclaimed islamic scholar dr zakir naik has been analysed critically and his half baked untruth is exposed by agniveer ji.

    please visit below links for more details.

    http://agniveer.com/category/misc/zakir-naik-misc/

    articles on philisophy of islam on heaven, hell, muhammad sahib, quran, allah in quran , kafir , shaitan
    etc are also among major features of website.

    please visit below link to know more.

    www.agniveer.com

    dr vivek arya

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...