Saturday, September 19, 2009

आज मेरे पेट में भी सनसनी है !

आज मेरे पेट में भी सनसनी है, दो बातो की सनसनी है: पहली सनसनी तो इन इंडिया टीवी वालो ने पैदा की है ! वैसे आप लोगो को भी बता दूं कि अब त्योहारों का मौसम आ गया है, और अगर आप पुराना टीवी कबाडे में फेंककर, नया टीवी खरीदना चाहते है लेकिन अपनी पुरानी चीज से मोह आपको ऐसा करने से रोक रही है, तो मेरा सजेसन है कि अगर आप थोडा गरम किस्म के इंसान है तो किसी दिन शाम को एक पत्थर अथवा कोई सख्त वस्तु हाथ में पकड़कर इंडिया टीवी चैनल लगाकर समाचार सुनने बैठ जाइए, आपका काम आसन हो जायेगा! अब मैं आपको अपना पेटदर्द वाली बात बताता हूँ ! शायद आप लोगो ने भी परसों यानी १७ सितम्बर की शाम को इंडिया टीवी पर लद्दाख में चीन से लगी अग्रिम पोजीशन पर भारतीय सेना की तैनाती की उनके(इंडियाटीवी) साहसिक कवरेज़ को देखा होगा , तो आपने भी नोट किया होगा कि इनके सवाददाता और एंकर बार-बार यह दोहरा रहे थे कि " भारतीय सैनिक चीनी सीमा पर ....."वैसे तो कमोवेश हमारे सभी खबरिया चैनलों का भी यही हाल है पर मैं इन लोगो से विनम्र निवेदन करूंगा कि आप बोलने से पहले अपने तथ्यों को ठीक कर लिया करे ! वह चीनी सीमा नहीं, वह भारतीय इलाका है, जिसमे चीन जबरन कब्जा किये बैठा है ! अन्तराष्ट्रीय सीमा वहा से काफी आगे है !


दूसरी सनसनी : दिल्ली और एनसीआर में रहने वाले लोग, जो कि कल दफ्तर से शाम को अपने घरो को लौट रहे थे, अथवा किसी काम से जमुना पार गए हो, उन्होंने महसूस किया होगा कि दिल्ली और एन सी आर में विश्वकर्मा जी बहुत आ गए है, या पैदा हो गए है ! दो तरह के विश्वकर्मा जी सक्रीय है, एक वह जो सृजनात्मक कार्यो से नगर वासियों को परेशान किये है और एक वो कलयुगी विश्वकर्मा जो साल में तकरीबन ८-१० बार ही दर्शन देते है लेकिन विकास के वजाय विनाश ज्यादा करते है!जिनकी वजह से घंटो सड़के जाम हो जाती है और न सिर्फ आम आदमी परेशान होता है बल्कि देश को भी अरबो रूपये का चूना लग जाता है अनावश्यक तेल की खपत की वजह से ! कभी कावडे के रूप में, कभी नमाज अता करते मुल्लो के रूप में, कभी दिवाली तो कभी गुरु जयंती और कभी क्रिश्मस के रूप में ! और अब एक समस्या और जो साल दर साल विकराल रूप धारण कर रही है वह है, विश्वकर्मा जी का जलावतरण करने की समस्या ! पता नहीं हमारी यह सरकार कब इस बारे में सोचेगी और यहाँ भी सादगी बरतने के लिए नियम कानून बनाएगी ! आर्श्चय होता है कि गंगा-यमुना को प्रदुषण मुक्ति के नाम पर अरबो का बजट साफ़ करने वाले ये समाज के ठेकेदार, जो कि कभी-कभार तो पूजा की हवन सामग्री को भी नदी में अवतरित करने पर लोगो पर जुर्माना ठोक देते है, और जब इतने सारे भारी भरकम विश्वकर्मा नदियों में डुबोये जाते है, तब ये लोग पता नही कहा सोते रहते है ?

4 comments:

  1. बिलकुल सही कहा आ[ाने अगर आस्था ही है तो आटे आदि घुलम्शील प्दार्थ से भी बना कर विसर्जन किया जा सकता है और श्री गणेश पूजा पर भी मुझे तो ये देवी देवताओं का निरादर लगता है कि बाद मे ये मूर्तियाँ औन्धे मुह किनरों पर या बीछ मे पडी रहती हैं जो स्नान करने वलों के पाँव के नीचे आती रहती हैं बहुत बडिया विशय है बधाई

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  2. यदि सेक्यूलर कही जाने वाली सरकार आस्था को जनता के घरों की चार-दीवारी तक सीमित कर दें तो समस्याएं काफ़ी हद तक दूर हो जाये।

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  3. सहमत हूँ आपके बात से। ये समस्या अगर देखा जाये तो बहुत ही बड़ी है। क्योकीं हर साल गंगा बचाव के लिए ढेर सारे पैसे पास होते है, और सरकार कहती है कि हमे गंगा को प्रदूषण मुक्त करना है। वही सरकार का इस तरफ ध्यान ही नहीं जाता।

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  4. भैय्या जब पेट में सनसनी है तो पेट की टी.आर.पी. बढेगी .हा हा हा
    सुन्दर प्रस्तुति . धन्यवाद . नवरात्र पर्व की हार्दिक शुभकामनाये

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।