रविवार का दिन, काफ़ी दिनो बाद जाके आसमान साफ़ हुआ । सुबह की भीनी-भीनी धूप और मुहल्ले के पार्क मे एक बेंच पर बैठे मिश्रा जी मिल गये । अपनी रिटायर्ड जिन्दगी की अपने नाती-पोतो के संग सुबह की सैर का मजा ही कुछ और होता है ! बच्चे खेलने मे व्यस्त थे, और मिश्रा जी लगे आज की राजनीति का दुख्डा रोने । देश मंदी की मार झेल रहा है, ये कहते है कि इनके पास साधनों की कमी है। एक तरफ़ हमारे जवान-जवान सैनिक पुराने पड चुके हथियारो से ही दुश्मन से लोहा लेने को मजबूर है, पाकिस्तानी सीमा पर आतकंवादियों से जुझने के लिये उनके पास अन्धेरे मे देख सकने वाले उपकरणों की भारी कमी है । दूसरी तरफ़ अगर किसी नेता का हैलीकौप्टर कहीं गुम हो जाये तो उसे ढूढने हेतु इनके पास सारे उपकरण उपलब्ध है । तीन दशको से पूर्व खरीदे गये लडाकू जहाजो को भी आज हमारे सैनिको को कफ़न सिर पर बाध कर उडाना पड रहा है । ये कहते है कि नये लडाकू जहाज खरीदने के लिये इनके पास धन उप्लब्ध नही है, दूसरी तरफ़ इनके मन्त्री एक-एक लाख रुपये रोज के किराये के कमरों मे महिनो से रह रहे है । जिन भूखे-नंगो ने कभी अपने घर मे पूरे पांव पसार कर सोने के लिये बिस्तर नही पाया था ,उन्हे हवाई जहाजों की एकोनोमी क्लास की सीटे अब संकरी महसूस होती है। कोई उन्हे अगर इस फिजूल खर्ची के बारे मे पूछ्ता है तो कहते है, हम अपने पैसों से ऐश कर रहे है । कोई आम आदमी अगर ऐसा कह्ता तो ये सीबीडीटी वाले तुरन्त उसके घर पहुच पूछ्ना सुरु कर देते कि यह पैसा तेरे पास कहां से आया ? लेकिन इनकी दफ़े तो ये भी पता नही कहां मर गये? आज हर जगह इन्ही की तूती बोलती है, आजकल तो बस हरामखोरो और कमीनों का ही जमाना है, जनता भी मूर्ख …………..!
मिश्रा जी कहे जा रहे थे और मै उनकी हां मे हां मिलाये जा रहा था, कि तभी उनका छोटे बेटे का चार वर्षीय बेटा, यानि मिश्रा जी का पोता उनके पास पहुंच गया । गुस्सैल सा मुंह बनाये था, और आते ही लगा दनादन दादा को लात मारने । मैने पूछा कि ये जनाव क्यो इतने नाराज है ? वे बोले, सबेरे उठते ही चाकलेट की मांग रख दी थी, मैने किसी तरह समझाया बुझाया कि मै नाश्ते के बाद तुम्हें चाकलेट खरीद कर दूंगा । ये जनाव भी हमारे आजकल के किसी नेता से कम नही हैं । किसी और भाई-बहन को कोई अच्छी चीज़ देख ले तो बस छीन कर ले लेगा। जब छीनने मे कामयाव न रहे तो एकदम चिकनी-चुपडी मीठी-मीठी बातें करने लगेगा, लेकिन जब अपने पास इसके कोई बढिया चीज हो और कोइ दूसरा भाई-बहन जरा मांग ले तो बस बुल डौग की तरह गुर्राने लगता है । गली मोहल्ले के बच्चो को पटाने मे भी उस्ताद है! पढ्ने के नाम पर पिछले साल भर इसे एक से दस तक की गिनती सिखाते-सिखाते थक गया पर मजाल कि ये जनाव थ्री से आगे बढे हो । मैने कहा, हां, आपके कहने से तो लगता है कि इन जनाव मे नेता बनने के सभी गुण विध्यमान है । चौकलेट दिलाने की जिद के साथ-साथ पोते जी के जुल्म भी बढते ही जा रहे थे, अत: मिश्रा जी ने उसे गोद मे उठाते हुए घर की तरफ़ को रुख किया और उसके सिर पर हाथ फेरते हुए बोले : “ बडा होकर मेरा पोता भी बहुत बडा नेता बनेगा” !
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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पूत के पैर पालने में ही दिख जाते है |मिश्राजी ने सही पहचाना अपने पोते को !
ReplyDeleteयही तो गुण होते हैं नेता बनने के लिये जी बिलकुल बने गा वो नेता बधाई
ReplyDeleteशायद गृहमंत्रालय या खाद्यमंत्रालय या फ़िर कोई बडा मंत्रालय तो ज़िद करके मांग लेगा।
ReplyDeleteमिश्रा जी को पहले से ही हार्दिक शुभकामनाएं।
यही संस्कार तो पोता को नेता बनाता है....दे दनादन:)
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया!
ReplyDeleteफिर तो आपकी पाँचों उंगलियाँ घी में होंगी,
और...............।।
गुण तो मिल ही गये हैं नेता के, तो देर किस बात की।
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