अभी हाल ही मे दिल्ली मे आयोजित सी बी आई के अधिवेशन मे हमारे माननीय प्रधान मंत्री ने एक बहुत ऊंची बात कही थी कि जांच ऐजेंसियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई बडी मछली बचकर न निकले। लेकिन जमीनी हकीकत तो कुछ और ही बयां कर रही है । पंढेर का हत्या के मामले मे उत्तर प्रदेश उच्च न्यायालय से साफ़ बच निकलना, एवम आरुषी हत्या कांड की उलझती गुत्थी, कश्मीर मे सोपियन कांड के अभियुक्तो की जमानत, इत्यादि-इत्यादि, इसी कडी का एक हिस्सा है । इस देश मे हर कोई अपनी मजबूरी जताने मे उस्ताद है। सरकार कानूनो का हवाला देकर अपनी मजबूरी जताती है, सुरक्षा और जांच से जुडी ऐजेंसिया राजनैतिक हस्त:क्षेप की बात करते है तो अन्धी न्याय व्यवस्था, अप्रयाप्त सबूतो का रोना रोकर अपने दामन को पाक-साफ़ दिखाने मे कोई कसर बाकी नही छोडती ।
सवाल यह नही कि किसकी क्या मजबूरी है, सवाल यह है कि क्या पीडित को इसी तरह का न्याय इस देश मे मिलेगा ? यहा अगर कुछ भी हो जाये, हमारी ये सरकारें तो बस, लोगो की आखों मे धूल झोंकने हेतु तुरंत जांच ऐजेंसियो का गठन कर देती है । लेकिन उन जांचो का परिणाम क्या निकलता है, यह हम सभी लोग बखूबी जानते है । खूब पब्लिक के पैसे की ऐश उडाई जाती है सालो तक, और फिर उसके बाद जांच से सम्बंधित फाईले इनके मंत्रालय मे सालो धूल फांकती रहती है । यदि एक अपराधी को उसके कर्मो की उचित सजा दिलाने मे हमारी व्यवस्था इतनी नाकाम है, तो क्या ये हमारा तथाकथित ’तंत्र’ किसी निर्दोष मृतक को उसका जीवन वापिस कर सकता है? किसी अबला की आबरू लौटा सकता है ? यदि नही, तो फिर किस बात का लोकतंत्र ?
देश की एक केन्द्रीय जांच ऐजेंसी के नाते सी बी आई को पूरा देश एक निर्णायक और विश्वसनीय जांचकर्ता के तौर पर देखता था । लेकिन कुछ सालो से जिस तरह इस ऐजेंसी के संदिग्ध कार्यकलापो और दुरुपयोग के किस्से सामने आये है, उससे लोगो का पूरी कानून व्यवस्था से ही भरोसा उठ गया है । अभी हाल ही मे सी बी आई के पूर्व निदेशक श्री जोगिन्दर सिंह जी ने जिस तरह खुलासा किया कि चारा घोटाले की जांच के दौरान श्री गुजराल ने उन्हें जांच रोकने को कहा था, उससे यही साबित होता है कि किसी भी बडी मछ्ली को तो कोई ईमानदार अफ़सर भी चाह कर भी कभी नही पकड सकते। समझ मे नही आता कि आखिर हमारी सरकार को सी बी आई को एक स्वतंत्र जांच ऐजेन्सी का दर्जा देने मे दिक्कत क्या है ? लोगो को बडे-बडे उपदेश देने वाले देश के ये पालनहार, अगर सिर्फ़ इस वजह से कि ऐसा करने से कही उनका अपना ही पूरा आपराधिक लाव-लश्कर लपेटे मे न आ जाये, और अपराध करने वालो मे भय पैदा हो जाये, ये इसलिये सी बी आई को जान बूझकर एक स्वाययत संस्था का दर्जा नही देना चाहते, तो मै समझता हूं कि देश का वह मुखिया ही सबसे बडा अपराधी है। क्योंकि ऐसा न करके वह अपराध को बढावा दे रहा है ।
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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प्रश्न -चिन्ह ?
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सच को झूठ और झूठ को सच करने के ही तो पैसे मिलते हैं वकीलों को! वर्ना पंधेर का अंधेर कैसे होता?
ReplyDeleteis lekh ne sochne ko majboor kar diya........
ReplyDelete"मै समझता हूं कि देश का वह मुखिया ही सबसे बडा अपराधी है। क्योंकि ऐसा न करके वह जान बूझकर अपराध को बढावा दे रहा है"
ReplyDeleteएकदम दुरुस्त ....