Wednesday, September 23, 2009

एक गांधी यह भी...!

इससे पहले कि मै इस दुर्जन की बात लिखना सुरु करू, एक शेर सुनाने का दिल कर रहा है। पेश-ए-खिदमत है;

सजी फूलों की सेज से, ज़रा सी आस उधार ली हमने,
विरह वेदना की तपीश, अपने गमो में उतार ली हमने,
चंद यादोँ की परिधि मेँ ही ख्वाइशे सिमट के रह गई,
तेरे कुछ खतो के सहारे ही, जिन्दगी गुजार ली हमने !


आदरणीय समीर जी को विस्वास दिलाना चाहता हूँ कि यह शेर अपने पूरे होशो-हवास में मैंने ही बनाया है अतः आप बेहिचक होकर वाह-वाह कर सकते है :)

अब विषय पर लौटता हूँ;

इस बात के लिये हमारी सुरक्षा एजेंसियों और दिल्ली पुलिस की प्रसंशा करनी चाहिए कि उन्होने प्रचार-प्रसार के क्षेत्र मे नक्सलियों की रीढ समझे जाने वाले कोबाद गांधी को दिल्ली से गिरफ़्तार करने मे कामयावी हासिल की। मुम्बई के एक पारसी परिवार मे जन्मा यह शख्स, दून स्कूल का पढा हुआ है, और कट्टर माओ घांदे भाकपा (माओवादी) का पोलित ब्योरो का सदस्य है। यह नक्सलियों के प्रकाशन कार्यो का प्रमुख है, एवं दशको से विदर्भ क्षेत्र में नक्शली विचारधारा के प्रचार प्रसार में लिप्त रहा।

पुलिस और सुरक्षा बलों ने तो अपने काम को मुस्तैदी से अंजाम दे दिया, मगर अब बात आकार वहीं अटक जाती है, जहां से इस बुराई की सीढियां सुरु होती है, यानी राजनीति और उस राजनीति का सौतेला भाई, यानि मानवाधिकार संघठन। जैसा कि इस देश में अमूमन होता आया है कि एक आम आदमी को उचित चिकित्सकीय सहायता मिले ना मिले, एक आम आदमी को उचित सुरक्षा मिले ना मिले, लेकिन इस तरह के लोगो के लिए सब कुछ उपलब्ध रहता है। गिरफ्तारी के बाद इन गांधी जी को भी बेचैनी महसूस होने लगी, अतः पूरी सुरक्षा में इन्हें भी चिकित्सकीय सुविधा उपलब्ध कराई गई। हमारे तथाकथित मानवाधिकार संघठन इनकी पैरवी और खोस-खबर लेने के लिए तुंरत दौड़ पड़े।

सरकार को चाहिए था कि इस तरह के लोगो के साथ किसी भी तरह की रहमदिली न दिखाई जाए और शक्ति के साथ निपटा जाए। इनकी क्या आइडिओलोजी या विचारधारा है, उसे तो देश ने पिछले कुछ सालो में अच्छी तरह से देख ही लिया है। मुठ्ठीभर तथाकथित पढ़े-लिखे लोग, अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिए, भोले-भाले आदिवासियों को मोहरा बना उनका ब्रेन वाश ( दिमागी सफाई ) कर, उन्हें हिंसा में झोंक रहे है, और कुछ नहीं। पीपुल वार की जो सुरुँआती विचारधारा थे, वह तो राजनीति की सादगी बरतने के नारे की तरह, पाखंडी और किताबी बात बन कर रह गई है। अफ़सोस इस बात का है कि भ्रष्टाचार ने यहाँ अपनी जड़े इतने गहरे तक डुबो दी है कि एक भी दूध का धुला नजर नहीं आता। देश को चलाने का ठेका लिए चंद नेता और लालफीताशाह, एक मेहनत कश वेतन भोगी, जो कि मेहनत से महीने में १०- १५ हजार रूपये कमाता है, उसके सोर्स से ही इन्कम टैक्स काट लेते है, लेकिन हमारे देश में गावली जैसे अडरवल्ड से नेता बने लोग, जब अपने साढ़े चार करोड़ की चल-अचल सम्पति घोषित करता है, तो उसे कोई नहीं पूछता कि इतना धन आया कहा से? और यह सिर्फ गावली की ही कहानी नहीं बल्कि अधिकाँश नेतावो और कानून के ठेकेदारों का भी यही हाल है! कहने का तात्पर्य यह है कि इन्ही सब विसंगतियों के चलते ही आज एक पढा-लिखा और शांतिप्रिय इंसान भी विद्रोह और हिंसा की राह पर चल पड़ता है!

6 comments:

  1. अंधा जब रेवड़ी बाँटता है तो अपनों को देता है और हमारी सरकार जब रेवड़ी बाँटती है तो गुंडे बदमाशों को देती है।

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  2. अरे भाई ये नेता भी इन्ही भाइयों के भाई है इन्हें मिटा देंगे तो फिर काहे की नेतागिरी किस के लिए नेता गिरी |

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  3. भाई वाह, सच्चाई को उकेरति सुन्दर रचना। .......

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  4. जब सरकार ही इन गुंडे बदमाशों की बन गई तो , शरीफ़ आदमी की क्या ओकात की कुछ बोले....
    आप ने बहुत अच्छे ढंग से एक स्च्ची बात हम सब के सामने रखी.
    धन्यवाद

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  5. जिन्दगी अपनी सँवार ली हमने,
    देश की पगड़ी उतार ली हमने।
    कर्ज चुकता नही किसी का किया,
    सारी दौलत डकार ली हमने।

    बहुत बढ़िया पोस्ट लगाई है,
    पी.सी.गोदियाल जी।
    बधाई!

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  6. आपकी टिपण्णी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया! मुझे तो बड़ा आश्चर्य हो रहा है कि कुछ न करते हुए भी मुझे बदनाम किया जा रहा है और खामखा मुझपर कीचड़ उछाला जा रहा है! मेरी तरफ़ से जो सफाई देनी थी मैंने दे दिया है! अपना नाम बदलकर टिपण्णी वही दे सकता है जो पागल हो या अपना मानसिक संतुलन खो बैठा हो! पता नहीं कैसे कैसे लोग हैं इस दुनिया में जो लोगों को तकलीफ पहुंचाकर उन्हें खुशियाँ मिलती है!

    बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ है! नवरात्री की हार्दिक शुभकामनायें!

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।