Monday, September 7, 2009

हमारे बस का है क्या ?

शुरुआत एक जोक से करता हूँ; हो सकता है यह मशहूर जोक आपने पहले कई बार सुना हो, चलो एक बार और सुन लीजिये ! हुआ यूं कि वाशिंगटन डी.सी. की 'बाउंड्री वाल' टूट गई ! टेंडर निकला, कोटेसन मगाए गए ! जैसा कि आजकल यूरोप और अम्रेरिकी महादीप में एक गलतफमी पसरी पडी है कि भारत और चीन इस दुनिया की नई आर्थिक शक्तियाँ बन कर तेजी से उभर रही है, तो गलतफमी का नाजायज फायदा उठाने में इन तथाकथित दोनों नई आर्थिक शक्तियों के लोग भी माहिर है! दोनों फटाफट पहुचे टेंडर भरने ! सीनियरटी के हिसाब से पहले चीन वाले ने भरा ७०० डालर, टेंडरिंग अथॉरिटी ने पूछा ७०० डॉलर कैसे ? चीनी बोला, ३०० डॉलर का मटीरिअल, ३०० डॉलर का लेबर, और १०० डालर मेरा प्रोफिट ! और अब इंडिया वाले ने अपना टेंडर कोटेसन सबमिट किया! उसने भरा २७०० डॉलर ! टेंडरिंग अथॉरिटी ने पूछा २७०० डॉलर कैसे? वह बोला, यार, १००० डालर तेरे, हजार मेरे, और काम ७०० डॉलर में इस चीनी से करवा लेंगे, "मेड इन चाइना" !!!!! :-)))

ये तो महज एक जोक था, मगर अफ़सोस कि हकीकत भी इससे बहुत भिन्न नहीं है ! हम जितनी मर्जी डींगे हांक ले, लेकिन अन्ततोगत्वा प्रश्न वही बना रहता है कि हमारे बस का कुछ है भी ?अब देश की सुरक्षा का मामला ही ले लीजिये ! आज अखबार में पढ़ रहा था कि हमारे यहाँ बनने वाली हर तीन मिसायिलो में से एक खराब निकलती है! हमारे परमाणु दावों पर तो पहले ही हमारे ही वैज्ञानिक उंगली उठाकर हमें संदेह में डाल चुके है कि परमाणु मामले में हमारी सैन्य तकनीकी क्षमताये कितनी विस्वसनीय है ! ऊपर से हमारा अविस्वस्नीय पडोशी मार्केट में अपनी साख बनाए रखने के लिए, कभी हमारे २० टुकड़े करने की सोचता है तो कभी हमारे नाम की नकली दवाईया विश्व बाजार में बेचेने लगता है ! अब सवाल यह उठता है कि हम क्या इन सब बातो को चुपचाप सुनते रहेंगे या कुछ करेंगे भी ? अभी कुछ दिन पहले टीवी पर एक प्रोग्राम देख रहा था, जिसमे एक वरिष्ट सुरक्षा विशेषज्ञं चीन के हैलीकॉप्टर के भारतीय सीमा में घुस आने के मामले में कह रहे थे कि ऐसी छोटी-मोटी घटनाये तो होती ही रहती है ! एंकर ने एक सटीक प्रश्न पूछा कि यदि भारत का कोई हैलीकॉप्टर चीनी सीमा में घुस जाए, तो क्या चीन भी उसे छोटी मोटी घटना मानकर हमारी तरह ही नकार देगा ? इस पर साहब की बोलती बंद !



अफ़सोस कि दुनिया की तथाकथित महाशक्ति बनने के सपने देखने वाले हम लोग एक अदने से नेपाल को माकूल जबाब दे पाने में अक्षम है, पाकिस्तान और बांग्लादेश की तो खैर बात दूर रखो ! आज हमारे देश में जो भी विदेशो के जरिये गैर कानूनी हथियारों, नकली नोटों, और आतंकवाद का धंधा किया जा रहा है वह अधिकाँशत नेपाल के जरिये भारत पहुँच रहा है ! तो क्यों नहीं हम नेपाल के साथ सारे परम्परागत और भोगोलिक संबंधो को यथावत रखते हुए, नेपाल से लगी सीमा को सील कर वहां भी आने-जाने की एक ठोस प्रणाली लागू कर देते है ? वैसे भी वहाँ हावी मावोवादी साठ साल पुरानी भारत-नेपाल संधि के पक्ष में नहीं दीखते ! जो लोग यह तर्क देते है कि ऐसा करने से नेपाल भारत से बिदक जायेगा और चीन पैर पसार लेगा, तो वैसे भी ४१०० किलोमीटर लम्बी हमारी सीमा पर चीन ने कहाँ नहीं पैर पसार लिए है? वहाँ भी पसार लेगा तो क्या ?

10 comments:

  1. वाह आपके एक जोक मे ही सारी समस्या का हल है जब तक पैसे का *विकास* हो रहा है तब तक नेताओं को क्या जरूरत है देश की समस्याओं की तरफ ध्यान दें धन्यवाद इतनी बडिया पोस्ट के लिये

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  2. आप की बात सटीक और गौर करने योग्य है...सही कहा आपने हमें भी नेपाल सीमा को सील कर देना चाहिए...
    नीरज

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  3. Sir...... aapke yeh lekh ne kai baaten sochne ko majboor kiya hai........ aapka kahna ekdum sahi hai........

    kya agar yahi china ke saath hota to....?????

    bahut hi badhiya lekh.......


    hats off.....

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  4. सीमा तो बाद में सील करने की जरूरत है,.............
    पहली ज़रुरत तो देश पर पिछले बासठ साल से शासन करने वाले जिम्मेदार लोगों की सम्पूर्ण प्रापर्टी सील करने की है,.............और उन पर राज-द्रोह का मुक़दमा चला कर उचित सजा देने की है..............
    आखिर इन्होने आज तक किया ही क्या जो आज हम आप जैसे लोगों को विभिन्न समस्याओं के समाधान फ्री में देने पड़ रहे हैं....................

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  5. हमारे हत्यार फुस्स्स निकले तो क्या? यहां लड़ना किसे है:)

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  6. बहुत खुब, सार्थक प्रयास।

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  7. विषय प्रतिपादन के लिए प्रतीक अच्छा चुना है।
    बधाई!

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  8. आपकी बातों से लग रहा है कि स्थिति विस्फोटक है।
    Think Scientific Act Scientific

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।