Monday, September 21, 2009

अंधेर नगरी !

कल रविवार था, एक दोस्त से मिलने गाजियाबाद गया था! लौटते में दिमाग मनोरंजनात्मक पहलू की ओर घूम गया! यों भी जिस दोस्त से मिलने गया था, उसके मनोरंजन का बाजा तो उत्तरप्रदेश सरकार ने पहले से ही बजा रखा था ! बेचारा खीजते हुए बोला कि यार, ये मायावती बहन भी न, पता नहीं क्या-क्या गुल खिलायेगी! सारा फंड तो अपनी मूर्तिया बनाने में खर्च कर दिया, और अब केवल टीवी पर ओपरेटरो पर ३० % (तीस प्रतिशत) टैक्स लगा दिया! वे लोग हमारे से वसूल रहे है! अतः ठीक-ठाक चैनलों वाला पैक खरीदने पर महीने के करीब ५०० रूपये डिश टीवी वाले को देने पड़ रहे है! कोई पूछने वाला ही नहीं है ! दूभर हो गया है इस उत्तरप्रदेश में जीवन तो! उसकी इन्ही मनोरजन की बातो पर गौर फरमाए जा रहा था, सोच रहा था कि मायावती बहन जी ने क्या सोच कर ३०% टैक्स लगाया होगा? क्या वह भी यही चाहती होंगी कि लोग केबल कटवा ले ताकि टीवी पर इन फालतू मीडिया वालो की खबरे न सुन सके ? मन गहमा-गहमी में था, अतः वसुंधरा के पास गाडी मुख्य सड़क पर रोक हम चल दिए गम की दवा की डिस्पेंसरी को !


एक वक्त की डोज ख़रीदी, १०० का नोट उस मर्ज की दवा बेचने वाले हकीम को पकडाया, तो उसने झट से १० रूपये वापस कर दिए ! वैसे मैं अमूमन रेट नहीं देखता, मगर चूँकि दिल्ली में इस एक डोज की कीमत मात्र साठ रूपये है, और वहा उसने ९० रूपये काटे तो मुझे एक बारी रेट देखने पर मजबूर होना पडा! उस पर रेट ८५ रूपये लिखा था! मैंने कहा, भैया, बाकी के पांच रूपये ? वह बोला, नब्बे का ही है जी, मगर इस पर तो MRP 85/-रूपये लिखी है ? मैंने कहा ! वह तपाक से बोला, जी, बाकी बहन जी के खाते में ! उसकी बात सुन मेरे माथे पर बल पड़ गए ! यह आखिर किस बहन जी की बात कर रहा है? क्या और भी बहन जी है यहाँ ? या फिर लोग नाजायज फायदा उठाकर बहन जी के नाम पर झूट मूठ में इस तरह की रंगदारी वसूल रहे है, इस उत्तम परदेश में ? ऊपर वाला जाने ? हम तो गम के मारे थे, दवा के वगैर गुजारा भी न था, अतः एक लम्बी आह भरकर चल दिए !





मै बेचारा गम का मारा,

दुनिया की ठोकरों से हारा,

बोतल बनी है मेरा सहारा,

मै बेचारा गम का मारा !

यहाँ से वहाँ भटक रहा हूँ,

शामे बोतल घटक रहा हूँ,

इसके सिवा न कोई और चारा,

मै बेचारा गम का मारा !

मधु के हम दुत्कारे हुए है,

मदिरा के दुलारे हुए है ,

मयखाना बना है बसेरा हमारा,

मै बेचारा गम का मारा !

7 comments:

  1. ab sarkaar ke naam par janata bhi maje lena chah rahi hai janata se,
    kavita bada satik likha aapne aaj ke pariwesh se pareshan manushy ki dastaan ..bahut badhiya..aabhar..

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  2. चलो रंगदारी का एक रास्ता तो निकला.

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  3. सिर्फ़ एक चास को चाहिये इस ??? को फ़िर देखे ओर क्या क्या गुल खिलाती है, अब दलित हाथियो पर बेठा करे गे, सुंदर सुंदर पार्को मै बाहो मै बाहे डाल कर भूखे पेट फ़िल्मी गीत गाया करे गे..
    हम तो कहगे अंधेर नगरी चोपट मास्टरनी

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  4. "Andher nagaree,chaupat maya.."...aur kya kahen?

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  5. रोचक संस्मरण/रचना है।
    नवरात्रों की शुभकामनाएँ!
    ईद मुबारक!!

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  6. मयखाना बना है बसेरा हमारा,
    मै बेचारा गम का मारा !

    --मैं भी गम का मारा-बस, रुकना..आ रहा हूँ. साथ बैठकर गम गलत करेंगे. :)

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  7. समीर जी, मैं इन्तजार करूँगा,..... क्या खूब जमेगी जब मिल बैठेंगे दो गम के मारे...........!! :-)

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।