बडी खुशी की बात है कि आज हमारा देश ’राष्ट्र भाषा हिन्दी दिवस’ इस खास दिन पर मना रहा है । मगर वास्तविक तौर पर इस राष्ट्र भाषा की स्थिति क्या है, यह बताने की जरुरत नही। तारीफ़ करनी होगी उन अंग्रेजो की, जिन्होने न सिर्फ़ दुनिया को गुलामी की जंजीरो मे जकडा, अपितु हर एक इन्सान पर गुलामियत की एक ऐसी अनोखी छाप भी छोड दी जो, अब शायद मिटाये ना मिटे। उनकी वह भाषा अब सभ्य और अमीर कहलाने वाले लोगो की भाषा बन चुकी है। हमारे इस भारत देश मे ही देख लीजिये कि हमारी राष्ट्र भाषा हिन्दी आज एक गरीब-गुरबे की भाषा बन कर रह गई है। भाषा ने दिमागी तौर पर भी इन्सान-इन्सान मे अमीर-गरीब का एक ऐसा खासा अन्तर खडा कर दिया है कि यहां आपके मुख से निकले शुरुआती शब्द आपकी पह्चान और समाज मे आपकी हैसियत का माप-दण्ड बन जाते है। इसे एक उदाहरण के तौर पर इस तरह से देख सकते है कि मान लीजिये, आप देश के किसी अजनवी शहर मे जाते है, और एक होटल मे कमरा पूछने हेतु उसके स्वागत कक्ष मे पहुचकर कमरे और किराये के बारे मे जानकारी लेते है। अगर आपने अपना सुरुआती परिचय हिन्दी मे देकर पूछताछ की तो आप पायेंगे कि आपके साथ उस होटल के कर्मचारियों का व्यवहार उतना गर्मजोशी भरा नही है, जितना कि तब होता, यदि आपने अंग्रेजी मे पूछताछ की होती ।
मै यह एक भाषायी मानसिकता का अन्तर बता रहा हूं, जो हमारे बीच है। दक्षिण के राज्यों, विशेषकर तमिलनाडु मे चले जाइये, आपको अंग्रेजी और हिन्दी की मह्ता मे क्या फर्क है, एकदम साफ मह्सूस हो जायेगा। ऐसा भी नही है कि सारा दक्षिण भारत ही हिन्दी से नफ़रत करता हो , कुछ लोग इसके अपवाद भी है, जो अपनी इस राष्ट्र भाषा से लगाव भी रखते है, ऐसे ही लोगो मे यहां इस चिठठा जगत मे अनेकों सम्मानित चिठ्ठाकार भी है, जो दक्षिण से सम्बद्ध होते हुए भी, जिन्हे हिन्दी से प्रेम है, कुछ उम्र दराज दक्षिण भारतीय चिट्ठाकारो का हिन्दी प्रेम मुझे नितांत सराह्नीय लगा ।
खैर, इन सब बातों से आप सभी लोग भी भली भांति परिचित है, इसलिये इस बारे मे अधिक कुछ नही कहुंगा ! जो मै आज के इस सुअवसर पर यहां कहना चाहता हूं, वह यह कि आज हम हिन्दी के हजारों चिठ्ठाकार यहां अपनी-अपनी मौलिक, समसामयिक, राजनैतिक, आर्थिक और मनोरंजनात्मक रचनाओ और विचारो को इस प्लेटफार्म पर एक दूसरे से न सिर्फ़ बांटते है अपितु एक दूसरे के सुख-दुख मे भी भागीदार बनते जा रहे है । और यह सब सम्भव हो पाया है उन लोगो और सस्थाओं के अथक प्रयास से, जिन्होने हमे यहां हिन्दी मे लेखन की सुविधा उपलब्ध कराई ।
तो आईये, आज हम सब "गरीब" हिन्दी चिठ्ठाकार मिलकर इस खास अवसर पर और कुछ नही तो उन सब लोगो और संस्थाओ का अभिनन्दन एवं हार्दिक धन्यवाद करें, जिन्होने अपने अथक प्रयास से हमारे लिये हिन्दी लेखन को आसान बनाने मे अपना मह्त्वपूर्ण योगदान दिया ।
तज दिया सबल ने, निर्बल के मुख है डेरा,
हिन्दी हूँ मै, वतन है हिन्दोस्तां मेरा !!जय हिन्द !
...............नमस्कार, जय हिंद !....... मेरी कहानियां, कविताएं,कार्टून गजल एवं समसामयिक लेख !
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प्रश्न -चिन्ह ?
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आपका लेख बहुत ही सुन्दर है, साथ ही सच्चाई को भी दर्शा रहा है। हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई।
ReplyDeleteहमारी हिन्दी अब गरीबों की भाषा नहीं रह गयी है .. हमें प्लेटफार्म देनेवालों का शुक्रिया कि उनके कारण यह दिन ब दिन मजबूत होती जा रही है .. सरकारी अधिकारियों की छोडिए .. सरकार के खर्च के अनुसार किसी क्षेत्र में उन्होने प्रगति नहीं की .. ब्लाग जगत में आज हिन्दी के प्रति सबो की जागरूकता को देखकर अच्छा लग रहा है .. हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteसुन्दर लेख!!
ReplyDeleteहिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई...
हिंदी दिवस पर sateel और saamyik post है आपकी ........... सही लिखा है आपने की हिंदी gareebon की bhaasha बन कर रह गयी है ........ पर अगर सब chaahen तो ये सबसे unnat भी बन सकती है .......... sundar post है आपकी
ReplyDeleteहमारी राष्ट्रभाषा राजनीति का शिकार हुई है वर्ना यह किसी भी विश्व भाषा से कम समृद्ध नही।
ReplyDeleteसुन्दर आलेख है हिन्दी दिवस पर शुभकामनायें
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
ReplyDeleteआप की बातें सही हैं मगर दक्षिण में हिंदी न बोलने समझने वाले या कहीये हिंदी भाषा से परहेज रखने वाले लोग सिर्फ तमिलनाडु में अधिक मिलेंगे.
ReplyDeleteइस के अतिरिक्त मेरा यहाँ गल्फ में दक्षिण भारतियों के साथ रहने का अनुभव यही कहता है की इस राज्य के अलावा दूसरे राज्यों में ठीक हिंदी समझी और बोली जाती हैं...जैसे कर्णाटक और केरला..वहां प्रारंभिक हिंदी सीखना आवश्यक विषय है.
हिंदी को समझने वाले और बोलने वाले यहाँ अरब देश में भी अरबी बहुत है..कम सेकम ओमान और यू ऐ ई के लिए तो कह सकती हूँ..
यहाँ १० में से ९ arabic बोलने वाले हिंदी[यू ऐ ई के लोग]समझते हैं..इस का कारण हिंदी फिल्में हैं.
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हाँ अपने ही देश में हिंदी में बोलने में bahut se logon ko छोटापन महसूस होता hoga.
aur एक आदत si sab ko हो गयी है..जब मिलते हैं तो सीधा हाय या हेल्लो कहते हैं..बाकि बातें तो हैं ही सच..
लेकिन मुझे यकीन है इन सब के बाद भी हमारी हिंदी को विश्व में एक सम्म्मानीय स्थान मिलता रहेगा.
Bhai apne bachcho ko to English hi pada rahe hai. Hamne hindi padi aur aaj tak jhel rahe hai. Aur hindi ke blogs par cooents de rahe hai. I reqest to all please give the comments whether they want to give education in hindi medium to their children and why.
ReplyDeleteशशिधर जी, मै समझता हूँ कि यहीं तो मार खा गए हम हिन्दुस्तानी, कि हम किसी के भी नहीं हो सके ! चीनी लोग चीनी भाषा में ही मग्न है, जापानी लोफ जापानी भाषा में मग्न है रूसी, रसियन भाषा में मग्न है मगर हम हिन्दुस्तानी ऑल राउनडर है ! लेकिन यह मैं समझता हूँ कि गलत होगा यदि हम सोचे कि बच्चो को हम हिन्दी में पदाए क्योंकि हम हिन्दी से प्रेम करते है ! मैं यही कहूंगा कि उन्हें हिन्दी की पूर्ण शिक्षा दीक्षा के साथ अगंरेजी पढाना भी बहुत जरूरी है, क्योंकि हिन्दी जहा हमारी मात्र भाषा है वही इस ग्लोब्लाजेसन के जमाने में इंग्लिश हमारी कर्म भाषा बन गई है, बिना इंग्लिश के गुजरा नहीं !
ReplyDeleteBhai english bhasha globalization se pahle hi strog thi, Aur ab bhi. Baat roti ki hai. Roti ke liye English chahiye. Matra Bhasha se prem tab tak hota hai jab roti milti rahe. Otherwise, garib jinko roti nasib nahi, Unke liye kya Matra bhasha aur kya desh prem. Sabh kuchchh pet se attached hai bhai.
ReplyDeleteभाई साहब मैं आपके इस जबरदस्त तर्क कि "प्रेम भी तभी तक है जब तक रोटी मिल रही है" एकदम सही एवं सच्ची बात " भूखे पेट भजन नहीं होत गोपाला "
ReplyDeleteDhanyabad Bhai Saab, gaur pharmane ke liye.
ReplyDeleteभाई गोदियाल जी.
ReplyDeleteभाषा-विवाद का एक ऐसा जाल बुना जा चुका है कि इस पर हर हिन्दुस्तानी अलग-अलग सा खडा दिखाई देता है, दंगे, मारकाट, विघटन जैसे हालात पैदा कर दिए जाते हैं, और हिंदी भाषी गरीब-गुरबे को दबा कर रख दिया जाता है.
रोज़ी-रोटी कि चाह मुकम्मल हो सके भविष्य में अपने-अपने बच्चों को, इसी आस में आज पेट काट-काट कर भी अंग्रेजी स्कूलों में पढ़ा रहा है अपने बच्चों को, भविष्य जैसा दिखाया जा रहा है, मज़बूरी है वैसा ही देखना पड़ेगा.
अपनी भी मजबूरी देखिये न, टाईप रोमन अंग्रेजी में करना पद रहा है टिपण्णी भी हिंदी भाषा में भेज़ने के लिए, ये भी तो गूगल द्वारा क्रिएट की एक तथाकथित हालात ही तो है...............
रोटी क्या न करा ले मजबूरों से, आने वाले समय में बढती मंहगाई में गरीब-गुरबों का पेट कैसे भरेगा, सोचने का विषय तो अब यह भी हो गया............
सोंचों चाहे किसी भी भाषा में, हमारी और से खुल्ली छूट, पर समस्या का पुख्ता समाधान तो स्वतंत्रता के ६२ वर्ष बाद भी तो आये.............
जय हो रोटी, जय हो पानी
बाकी सब लगता है बेमानी
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
कांच के घरो पर पत्थर फेंकना ! परछाइयों में इंसान को ढूँढने की कोशिश ! sabse pehle to yeh kahoonga......... ki ........ mujhe aapke yeh interests bahut hi achche lage....... ab se main bhi koshish karoonga....heheheheehe.......
ReplyDelete-------------------------------
यह बताने की जरुरत नही। तारीफ़ करनी होगी उन अंग्रेजो की, जिन्होने न सिर्फ़ दुनिया को गुलामी की जंजीरो मे जकडा, अपितु हर एक इन्सान पर गुलामियत की एक ऐसी अनोखी छाप भी छोड दी जो, अब शायद मिटाये ना मिटे। bilkul sahi kahan aapne....... shayad hi mitey..... भाषा ने दिमागी तौर पर भी इन्सान-इन्सान मे अमीर-गरीब का एक ऐसा खासा अन्तर खडा कर दिया है कि यहां आपके मुख से निकले शुरुआती शब्द आपकी पह्चान और समाज मे आपकी हैसियत का माप-दण्ड बन जाते है।
haan! angrezi bolne wale khud ko ooncha samajhte hain...... main khud basically angrezi ka hi writer hoon..... award bhi angrezi ke liye hi mila..... yeh main dekh chuka hoon..... ki angrezi kavita ke liye jab award mila tha...... to samaaj mein meri kya izzat hui thi.... mere upar bade bade article likhe gaye they.... akhbaar meion mein..... par jab hindi mein likha aur chapa..... to koi poochne bhi nahi aaya.... logon ne kaha ki hindi mein to har aira gaira likh leta hai.... par us izzat se mujhe sharm hi aayi thi....
par main ab...... kaam (Official) to angrezi mein hi karta hoon..... qki wo meri neenv mein hai.....usko main badal nahi sakta..... angrezi mein aaj bhi likhta hoon......
par ab hindi ko aage badhana apna dharm samajhta hoon......
par ek baat aur hai..... yeh bhi dekhiyega apne aas paas ki angrezi kaun log bolte hain.....padhte hain......
For Ex:----
1. Sharaabi aadmi... dekhiyega .... sharaab peene ke baad anpadh bhi angrezi bolta hai....
2. Kam pada likha admi.... jisko angrezi bol ke yeh batane ki zaroorta hoti hai ki wo pasha likha hai....
3. Salesman ..... bhale hi wo apne aapko marketing manager ya marketing head kahte hon.... lekin salesman type ke log angrezi zyada bolte hain....
3. Admi jab gusse mein hota hai..... tab....
4. Ladkian jo degree to bahut le letin hain..... lekin knowledge ke naam pe kaala dhabba hotin hain.... subject knowledge dekhiyega ki ladkion ke paas bilkul nahin hoti.... lekin degreeian bahut milengin......
5. Badsoorat ladke.... aur ladkian bhi....
6. Film Stars...... jinko Rashtra geet aur Rshtra gaan ka difference nahin pata hai.... jinko yeh nahin pata hai ki olympic games kab shuru huye....? aur inhi film stars ko log follow karte hain ..... bhale hi wo schedule ko skedule bolen....hehehe
7. Corporates mein kaam karne wale.... zyadatar aapko degree dhaarak milenge..... lekin knowledge wale kam....
8. Kisi ko dabaane ke liye ..... anpadh bhi angrezi ka istemaal karta hai....
9. Gareeb aadmi .... zyadatar angrezi bolna chahta hai.....
aise bahut se example hain....
yeh main maansikta bata raha hoon.....
mujhe aapka yeh lekh bahut achcha laga........