आप लोग भी कल से सभी संचार माध्यमो के जरिये एक खबर काफ़ी जोर-शोर से पढ, सुन और देख रहे होगें कि भैया जी ने बहिना को बिना बताये ही अपने उत्तम प्रदेश की “सरप्राइज विजिट “ कर दी और नेपाल से सटे एक गांव मे एक दलित महिला के घर रुके । बताया जाता है कि एक बूढी दलित महिला ने भैया के इस अचानक आगमन पर खूब आंसू भी बहाये । समझ मे नही आता कि भैया जी ने इस तरह की नौटंकी कर कौन सी नई बात कर दी ? आपको याद होगा कि ऐसी ही नौटंकिया भैया जी ने मुलायम सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल मे भी बहुत बार की थी, नतीजा क्या निकला ? हां, अगर कुछ अन्होनी हो जाये, तो दो-चार पुलिस अधिकारियो और सुरक्षा कर्मियो के लिये ये मुसीबत जरूर खडी कर सकते है ।
कोई इनसे पूछे कि ऐसी नौटंकिया करके ये जनाव किसे बेवकूफ़ बना रहे है ? जब केन्द्र की सत्ता इनके और इनकी माता जी के इर्द-गिर्द घूम रही है, फिर क्या ये उन दलित महिलाओ को वह दाल जो वे ८० से १०० रुपये कीलो खरीद रहे है, उसके पुराने भाव २५-३०रुपये प्रति कीलो की दर से मुहैया करा सकते है? क्या ये उनके अकाल और भुखमरी को यह जनाव दूर कर सकते है ? जिस पैसे को बहिना ने मूर्तिया बनाने पर युं ही जाया कर दिया, क्या केन्द्र की सत्ता मे रहते हुए ये उस पैसे के दुरुपयोग को रोक नही सकते थे, और उसका इस्तेमाल सूखा राहत पर नही किया जा सकता था क्या ? मुलायम सिंह के काल मे जो सपने इन्होने उन भोले-भाले दलितो को दिखाये, उनका क्या हुआ ?
दूसरी तरफ़, आपको याद होगा कि अभी कुछ दिन पहले मैने एक लेख “अंधेर नगरी” शीर्षक से इसी ब्लोग पर लिखा था। और जिसमे मैने इस बात का उल्लेख किया था कि गाजियाबाद के एक शराब विक्रेता द्वारा शराब के पौवे पर एम आर पी से पांच रुपये अधिक लेने पर जब मैने उससे ऐतराज जताया था तो उसने मुझे टका सा जबाब दिया था कि “पांच रुपये बहिन जी के खाते मे” ! कल किसी काम से दिल्ली से नोएडा जाना हुआ। यह जानने के लिये कि उस शराब विक्रेता की बात मे कितनी सच्चाई है, मैने जानबूझ कर वहां की शराब की एक दुकान से वही ब्रैन्ड फिर से खरीदा, जबकि मुझे मालूम था कि इसके एक तिहाई कम दाम पर वह मुझे वह दिल्ली से मिल सकती है। उस विक्रेता ने भी ९० रुपये काटे, उससे भी मैने वही सवाल किया कि भैया इस पर एमआरपी तो ८५ रुपये है, तो उसका जबाब सुन मै दंग रह गया । उसने कहा कि भैया, ऊपर से आदेश है कि हर पौवे पर पांच रुपये, अद्द्धे पर दस रुपये और बोतल पर १५ रुपये एमआरपी रेट से अधिक लिये जायें। मैने उसे जब गाजियाबाद वाले विक्रेता की कही बात उसे बताई कि वह कह रहा था कि पांच रुपये बहन जी के खाते मे….. तो वह बोला, कि उसने आपको एकदम दुरस्त बात बताई ।
अब आप लोग खुद ही सोच लीजिये कि क्या यह अतिरिक्त बोझ उपभोक्ता पर नही पड रहा ?क्या कोइ यह जानने की कोशिश करेगा कि यह अतिरिक्त वसूली आखिर जा कहां रही है? क्या केक की कीमत वसूलने का यह नया फन्डा है, इस अन्धेर नगरी मे ? क्या सिर्फ़ वोट की राजनीति से हटकर भैया और केक की राजनीति से हटकर बहिना के पास इन बातो और आम जनता की तकलीफ़ो के बारे मे सोचने की फुर्सत है?
मुद्दतें हुई इन अधरों को, मदिरा का इक घूँट तक छुए हुए,
साकी भी न जाने क्यों आजकल, अश्कों के ही जाम परोसता है !
कोई इनसे पूछे कि ऐसी नौटंकिया करके ये जनाव किसे बेवकूफ़ बना रहे है ? जब केन्द्र की सत्ता इनके और इनकी माता जी के इर्द-गिर्द घूम रही है, फिर क्या ये उन दलित महिलाओ को वह दाल जो वे ८० से १०० रुपये कीलो खरीद रहे है, उसके पुराने भाव २५-३०रुपये प्रति कीलो की दर से मुहैया करा सकते है? क्या ये उनके अकाल और भुखमरी को यह जनाव दूर कर सकते है ? जिस पैसे को बहिना ने मूर्तिया बनाने पर युं ही जाया कर दिया, क्या केन्द्र की सत्ता मे रहते हुए ये उस पैसे के दुरुपयोग को रोक नही सकते थे, और उसका इस्तेमाल सूखा राहत पर नही किया जा सकता था क्या ? मुलायम सिंह के काल मे जो सपने इन्होने उन भोले-भाले दलितो को दिखाये, उनका क्या हुआ ?
दूसरी तरफ़, आपको याद होगा कि अभी कुछ दिन पहले मैने एक लेख “अंधेर नगरी” शीर्षक से इसी ब्लोग पर लिखा था। और जिसमे मैने इस बात का उल्लेख किया था कि गाजियाबाद के एक शराब विक्रेता द्वारा शराब के पौवे पर एम आर पी से पांच रुपये अधिक लेने पर जब मैने उससे ऐतराज जताया था तो उसने मुझे टका सा जबाब दिया था कि “पांच रुपये बहिन जी के खाते मे” ! कल किसी काम से दिल्ली से नोएडा जाना हुआ। यह जानने के लिये कि उस शराब विक्रेता की बात मे कितनी सच्चाई है, मैने जानबूझ कर वहां की शराब की एक दुकान से वही ब्रैन्ड फिर से खरीदा, जबकि मुझे मालूम था कि इसके एक तिहाई कम दाम पर वह मुझे वह दिल्ली से मिल सकती है। उस विक्रेता ने भी ९० रुपये काटे, उससे भी मैने वही सवाल किया कि भैया इस पर एमआरपी तो ८५ रुपये है, तो उसका जबाब सुन मै दंग रह गया । उसने कहा कि भैया, ऊपर से आदेश है कि हर पौवे पर पांच रुपये, अद्द्धे पर दस रुपये और बोतल पर १५ रुपये एमआरपी रेट से अधिक लिये जायें। मैने उसे जब गाजियाबाद वाले विक्रेता की कही बात उसे बताई कि वह कह रहा था कि पांच रुपये बहन जी के खाते मे….. तो वह बोला, कि उसने आपको एकदम दुरस्त बात बताई ।
अब आप लोग खुद ही सोच लीजिये कि क्या यह अतिरिक्त बोझ उपभोक्ता पर नही पड रहा ?क्या कोइ यह जानने की कोशिश करेगा कि यह अतिरिक्त वसूली आखिर जा कहां रही है? क्या केक की कीमत वसूलने का यह नया फन्डा है, इस अन्धेर नगरी मे ? क्या सिर्फ़ वोट की राजनीति से हटकर भैया और केक की राजनीति से हटकर बहिना के पास इन बातो और आम जनता की तकलीफ़ो के बारे मे सोचने की फुर्सत है?
मुद्दतें हुई इन अधरों को, मदिरा का इक घूँट तक छुए हुए,
साकी भी न जाने क्यों आजकल, अश्कों के ही जाम परोसता है !
राजनीति है सब यहाँ सब कुछ चलता रहता है..कभी भी कोई नई बात हो सकती है..
ReplyDeleteभैयाजी जहां भी जायें, ये उनकी मर्ज़ी की बात है। वो भी किसी आम नागरिक की तरह भारत में घूमने के लिए आज़ाद है। अभी चेनै में भी ये कहा गया कि वे मुख्य मंत्री से नहीं मिले! क्यों मिलें? आखिर भैयाजी कहीं जा रहे हैं तो किसी के पेट में दर्द क्यों?
ReplyDeleteवो काम जो आम नेता को करना चाहिए अपनी कांस्टिट्यूएंसी में, वो नहीं करते। बल्कि पांच साल में एक बार दिखाई देते हैं। ऐसे में यदि कोई जनता के बीच जा रहा है, दुख-दर्द बांट रहा है-भले इसे नाटक कह लें- ऐसे नाटक यदि सभी नेता करने लगे तो देश का उद्धार हो जाएगा॥
कोई इनसे पूछे कि ऐसी नौटंकिया करके ये जनाव किसे बेवकूफ़ बना रहे है ? जब केन्द्र की सत्ता इनके और इनकी माता जी के इर्द-गिर्द घूम रही है, फिर क्या ये उन दलित महिलाओ को वह दाल जो वे ८० से १०० रुपये कीलो खरीद रहे है, उसके पुराने भाव २५-३०रुपये प्रति कीलो की दर से मुहैया करा सकते है? क्या ये उनके अकाल और भुखमरी को यह जनाव दूर कर सकते है ? जिस पैसे को बहिना ने मूर्तिया बनाने पर युं ही जाया कर दिया, क्या केन्द्र की सत्ता मे रहते हुए ये उस पैसे के दुरुपयोग को रोक नही सकते थे, और उसका इस्तेमाल सूखा राहत पर नही किया जा सकता था क्या ? मुलायम सिंह के काल मे जो सपने इन्होने उन भोले-भाले दलितो को दिखाये, उनका क्या हुआ ?
ReplyDeleteab kya karen Sir........ log hi bevkooof ban rahe hain....
दूसरी तरफ़, आपको याद होगा कि अभी कुछ दिन पहले मैने एक लेख “अंधेर नगरी” शीर्षक से इसी ब्लोग पर लिखा था। और जिसमे मैने इस बात का उल्लेख किया था कि गाजियाबाद के एक शराब विक्रेता द्वारा शराब के पौवे पर एम आर पी से पांच रुपये अधिक लेने पर जब मैने उससे ऐतराज जताया था तो उसने मुझे टका सा जबाब दिया था कि “पांच रुपये बहिन जी के खाते मे” ! कल किसी काम से दिल्ली से नोएडा जाना हुआ। यह जानने के लिये कि उस शराब विक्रेता की बात मे कितनी सच्चाई है, मैने जानबूझ कर वहां की शराब की एक दुकान से वही ब्रैन्ड फिर से खरीदा, जबकि मुझे मालूम था कि इसके एक तिहाई कम दाम पर वह मुझे वह दिल्ली से मिल सकती है। उस विक्रेता ने भी ९० रुपये काटे, उससे भी मैने वही सवाल किया कि भैया इस पर एमआरपी तो ८५ रुपये है, तो उसका जबाब सुन मै दंग रह गया । उसने कहा कि भैया, ऊपर से आदेश है कि हर पौवे पर पांच रुपये, अद्द्धे पर दस रुपये और बोतल पर १५ रुपये एमआरपी रेट से अधिक लिये जायें। मैने उसे जब गाजियाबाद वाले विक्रेता की कही बात उसे बताई कि वह कह रहा था कि पांच रुपये बहन जी के खाते मे….. तो वह बोला, कि उसने आपको एकदम दुरस्त बात बताई ।
is baat mein ekdum saufi-sadi sachchai hai........
District Industrial Corporation ke Chairman ne mujhse yahi kah ke 5,000 ki ghoos khayi hai........
Abhi mere ek dost ne AMBEDKAR PARK mein patthar lagane ka theka liya hai...... usse pradesh adhyaksh ne 2 lakh rupaye ki ghoos bhi yahi kah ke khayi hai...... uske paas iska VIDEO bhi hai.... (Ab yeh baat alag hai ki uska paisa doob gaya.... kyunki SUPREME COURT NE ROK LAGA DI.....)
pata nahi .... yeh sab main likh raha hoon ...... to mere andar ka rashtravaad hilore maar raha hai..... ki is poore system ko aag laga doon....
main khud bhukt bhogi hoon UTTAR PRADESH LOK SEVA AYOG ka...... jahan par PCS officers 10 se 25 lakh rupyae leke banaye jaate hain......
khud mujhse kaha gaya tha...... lekin achcha hua nahi diya...... Qki tab tak ke Supreme Court ne result pe rok laga diya......
Main agar aapke article aise hi padhta raha na ....... to is desh ka doosra SHAHEED BHAGAT SINGH main hi hounga......
aur main SHAHEED nahi hona chahta.............
thnx for sharing.......
hum yeh to kah dete hain ki aisa chalta hai........ par......... hamein hi CHANGE lana hoga jaise ki 1986 mein china mein students ne laya tha...... yeh baat alag hai ki us change ko ya revolt ko daba diya gaya...... par China tabse sudhatr gaya....itna bada country hone ke baawajood bhi youth mein unemployment nahi hai wahan.....
ReplyDeletepar dikkat yeh hai ki yahan ka youth UNITE hi nahi hai...... sab log materialistic cheezon mein khud ko kho ke...... Rashtra seva se door ho gaye hain......
yeh Govt. ne hi gadgets, cars aur malls aur pubs aur bekaar ki cheezon mein uljha diya hai...... youth ko ..... to wo desh ke baare mein kya sochega.....
jahan private sector 18 ghante kaam karata ho..... zabardasti ke..... aur youth ko padhne ka mauka nahi deta..... yahan tak ki newspaper bhi nahi..... to youth kya change layega...... ?????
jab tak ke ham duniyawi cheezen nahi padhenge ..... history , geography ....nahi jaannege to change kahan se layenge......?
jahan filmstars pooje jaate hon..... jinko yeh nahi pata ki rashtra geet aur rashtra gaan mein kya difference hai.....? to hum change kya layenge.........? aur to aur Shahrukh khan sareekhe logon is desh aur youth ko barbaad kar rahe hion yeh kah ki ...... WAHI TO KAR RAHA HAI........????
TO IS DESH KA KYA HOGA?
JAHAN SCHEDULE(SHEDOOL) KO SKEDULE PADHA JA RAHA HO..... IN FILM STARS KI BADAULAT..... TO IS DESH KA KYA HOGA?
AGAR is desh ka system sudharna hai...... to sabse pahla kaam yahi karna hoga ki youth ko sudharna hoga..... unhe moral aur national education ki sakht zarroorat hai..... desh bhakti jazbaa unme jagana hoga......
Samaaj ko sudhaarne ka sabse badhiya tareeka yahi hai ki....... zyada se zyada logon mein padhne ki aadat daali jaye......
aaj bhi 99% logon ko nahi pata hai ki hum HISTORY kyun padhte hain???????????
ये भाया जी और बहन जी सब की पागल बना रहे हैं ............ ये ही क्यों सब नेता लोग इस नौटंकी को कर रहे हैं ...... ये नयी बात नहीं है ..... बस जनता को समझना है वो क्या करे .......
ReplyDeleteक्या कहे.. जब तक जनता जागरुक नही होती तब तक यह नोटंकिया वाले ऎश करते रहेगे... लेकिन इन्हे शर्म भी कोई चीज है इन्हे मालुंम है क्या... या उसे भी बेच कर खा गये
ReplyDelete"क्या केक की कीमत वसूलने का यह नया फन्डा है, इस अन्धेर नगरी मे ? क्या सिर्फ़ वोट की राजनीति से हटकर भैया और केक की राजनीति से हटकर बहिना के पास इन बातो और आम जनता की तकलीफ़ो के बारे मे सोचने की फुर्सत है? "
ReplyDeleteइसे कहते हैं हाथी के दाँत।
यह हम नही कहेंगे कि......।
आप बिल्कुल ठीक कह रहे हैं ।
ReplyDeleteबहुत बढिया लिखते हैं आप।
ReplyDeleteदुर्गापूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
Aaadarniya Godiyal Sahab...........
ReplyDeletemaine ek sawaal apne blog pe kiya hai........... plz aayiyega zaroor............
www.lekhnee.blogspot.com
(Aur ek request aur hai aapse...... plz zara apna email id dene ka kasht karen......)
बहुत बढिया विवेचन।
ReplyDeleteदुर्गा पूजा एवं दशहरा की हार्दिक शुभकामनाएँ।
( Treasurer-S. T. )
बढिया लिखा आपने ....महफूज साहेब के ख्यालात भी अच्छे हैं ......!!
ReplyDeleteदिखावे-छलावे से वोट और भ्रमित करते, लुभावाते विज्ञापनों से नोट
ReplyDeleteनोचने खाने के लिए ऊपरी आदेश , इसी हाल चल रहे हर प्रदेश
दबंगों का राज, थाने जाने से डर रहा हर सीधा, भोला सा इन्सान
जो गया उसी में भला, थाने जाकर बेचना पड़ेगा बच खुचा सम्मान
क्या- क्या नहीं हो रहा है, प्रदेशों को कोई चला नहीं रहा सब कुछ स्वतः चल रहा है............
ऐसी जागरूकता भी किस कम की कि हम महसूस करे और सामूहिक रूप से कुछ कर भी न सके, चुनाव के समय फिर से वोट डाल देते हैं एक बार फिर से लुटने के लिए....... वोट देना मज़बूरी तो नहीं. हमें तब तक वोट देना बंद कर देना चाहिए, जब तक मतपत्रों में "इनमें से कोई नहीं" विकल्प कि भी व्यवस्था नहीं हो जाती. शायद यही पढ़े-लिखे, समझदारों, भुक्तभोगियों का उचित असहयोग आन्दोलन होगा, और पाप के भागीदार होने से तो बच सकेंगें
आपके जागरूकता भरे, बिसंगातियाँ दिखाते ओजपूर्ण लेख के लिए हार्दिक आभार
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com