Friday, January 29, 2010

पप्पू कांट डांस साला !

पता नहीं हम हिन्दुस्तानी कब सुधरेंगे , सुधरेंगे भी या नहीं, कोई नहीं जानता ! क्योंकि अगर हममे सुधरने की गुंजाईश होती तो सातवी सदी से दसवी-ग्यारहवी सदी तक , जब सिकंदर, मंगोलों-मुगलों ने हमारे देश पर आक्रमण किया और छद्म तरीके अपनाकर जैचंदो से मदद ली, इस देश में मौजूद तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को हारने के लिए, तो अगर हममे गैरत और अक्ल होती तो हमें तभी संभल जाना चाहिए था ! तब नहीं संभले थे तो जब बाबर ने आक्रमण किया तब संभल जाते, तब भी नहीं संभले थे तो जब सोलहवी- सत्रहवी सदी में ईस्ट-इंडिया कंपनी आई थी तभी संभल जाते! तब भी नहीं संभले थे तो १९४७ में जब देश का विभाजन हुआ, तभी संभल जाते! लेकिन नहीं, हमारे पास इतना सोचने के लिए वक्त कहाँ था?

देश में जो ज्वलंत मुद्दे है , महंगाई , बेरोजगारी, दरिद्रता और सबसे ऊपर नेतावो और नौकरशाहों का नित बढ़ता भ्रष्टाचार, उसके बारे में हम लोग शायद एक साथ मिलकर इतना उछलते तो क्या पता हमारी बेशर्म सरकारों को कुछ शर्म आ जाती ! आज सड़क चलते आपकी-हमारी जान हर वक्त खतरे में है, माँ-बहनों की आबरू खतरे में है, लेकिन सरकार के पास हमें सुरक्षा देने के लिए प्रयाप्त साधन नहीं है, धन की कमी है, सुरक्षाबल नहीं है, और दूसरी तरफ इन नेतावो ने अपने और अपने परिवारों की सुरक्षा के लिए तो कमांडो की लम्बी चौड़ी फौज हमारे खून पसीने की कमाई से वसूले गए टैक्स से तैयार कर ही राखी थी अब हमारे पैसे से बने गई अपनी मूर्तियों के लिए भी हमारे ही पैसे से कमांडो दस्ते बनाने जा रहे है ! और हम-आप "हम इसमें भला क्या कर सकते है" कहकर अपना पल्ला झाड रहे है, और सिर्फ तमाशा देख रहे है ! कभी आपने सोचा कि ये इस मानसिकता के गडरिये खुलें आम यह सब करने का साहस कैसे जुटा लेते है ? क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि " भेड़े प्रतिकार नहीं करती " !!!!!!!!!!

11 comments:

  1. अपने इस लेख पर पहली प्रतिक्रया भी खुद ही दे रहा हूँ ;
    आपने देखा होगा कि अक्सर देश की राजधानी दिल्ली में जगह-जगह ट्रैफिक जाम से सडको पर चल पाना दूभर रहता है ! क्योंकि प्रयाप्त मात्र में ट्रैफिक पुलिस कर्मी नहीं मौजूद रहते ! नतीजन जाम की वजह से देश का अरबो रूपये का तेल एक दिन में ही सडको पर व्यर्थ चला जाता है !
    दूसरी तरफ अगर आप वी आई पी एरिया और उस रूट पर चले जावो जहाँ से कुछ देर बाद कोई वी ई पी निकलेगा वहां एक साथ १०-१० ट्रैफिक पुलिस वाले सड़क किनारे धूप सेक रहे होते है ! ताकि जैसे ही महा-महीम की सवारी निकले ये लोग बीच सड़क में खड़े होकर ट्रैफिक को रोक सके ! कभी किसी तथाकथित सामाजिक संस्था ने इस और ध्यान दिया और अपनी आवाज बुलंद की कि जहां १०-१० ट्रैफिक पुलिस वाले खड़े करवाए गए है, वहा इसकी जरुरत क्या थी ? और जहां कोई ट्रैफिक पुलिस वाला नहीं है वहाँ पर देश कितना नुकशान उठा रहा है ?

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  2. जन चेतना सोयी हुई है.

    सब मिलकर मशाल जलाओ.

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  3. विचारों का एक अंधड़ फ़िर आज आया
    उमड़ता घुमड़ता बादल आकाश पे छाया
    ये बात बहुत मुखरता से कही है आपने
    बहुत सही कहा आपने बजा फ़रमाया

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  4. विचारों की प्रस्‍तुति सराहनीय ।

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  5. "पता नहीं हम हिन्दुस्तानी कब सुधरेंगे , सुधरेंगे भी या नहीं, कोई नहीं जानता!"

    एक दूसरे की टाँग खींचना, न स्वयं बढ़ना न दूसरे को आगे बढ़ने देना यही तो हमारा काम है! अब इस काम में कहीं सुधार की गुंजाइश है क्या?

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  6. सार्थक लेख ,सटीक निशाना

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  7. कभी आपने सोचा कि ये इस मानसिकता के गडरिये खुलें आम यह सब करने का साहस कैसे जुटा लेते है ? क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से मालूम है कि " भेड़े प्रतिकार नहीं करती " !!!!!!!!!!
    आप ने बिलकुल सच कहा है, लेकिन हम कब जाग्रुक होंगे?अगर हम चाहे तो इन नेताओ को इन की ओकात याद दिला दे, लेकिन फ़िर एक दुसरे की टांग कोन खींचेगा??
    सहमत है जी आप के एक एक शव्द से

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  8. पता नहीं हम हिन्दुस्तानी कब सुधरेंगे , सुधरेंगे भी या नहीं, कोई नहीं जानता !

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  9. sab kuch ho sakta hai bas itni si himmat karni hai ki pahal karne ka jazba ho kuch logon mein to karwan apne aap banta jayega .........magar ye thodi si himmat hi aaj kisi deshbhakt ke pass nhi hai .

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  10. बहुत सार्थक और सटीक लिखा आपने.

    रामराम.

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  11. अब तो संभल ही जाना चाहिए, खासकर जब मुंबई भारत होने लगा है।

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।