Monday, December 17, 2012

मूर्खता और लालच !


गत सप्ताह एक विवाह समारोह में सम्मिलित होने हेतु उत्तराखंड की यात्रा पर था। वहाँ एक परिचित के मुख से सुनी एक पुरानी आंचलिक कहानी को यहाँ लिपिबद्ध कर रहा हूँ। संभव है कि कुछ लोग इस कहानी से पहले से वाकिफ हो फिर भी  उम्मीद करता हूँ कि कुछ पाठकगण, खासकर बच्चों को पसंद आयेगी


एक गाँव में एक निर्धन मगर बहुत ही चालाक किस्म का किसान रहता था। घर की परिस्थितियों के अनुरूप किसान की पत्नी खान-पान में भी मितव्ययता बरतने का भरसक प्रयास करती थी, लेकिन किसान को यह पसंद न था। फलस्वरूप उसने अपनी पत्नी से कहा कि आइन्दा वह जब भी भोजन पकाए  तो दो आदमियों का खाना अतिरिक्त बनाया करे, भले ही उस अतिरिक्त भोजन को उन्हें दूसरे वक्त में ही क्यों न खाना पड़े। 

एक दिन किसान लकड़ी लेने जंगल गया तो उसे वहाँ दो खरगोश के बच्चे मिल गए। वह उन्हें घर ले आया और उनका पालन-पोषण करने लगा। एक दिन वह अपने बैलों संग हल जोतने के लिए खेतों में गया था तो वह एक खरगोश भी साथ ले गया था। हल लगाते वक्त उसने उस खरगोश को हल के ठीक पीछे रस्सी से बांध दिया  बैल हल को खीचते तो आगे-आगे हल चलता और उसके ठीक पीछे-पीछे वह खरगोश चलता  

जब हल जोतने का यह क्रम चल ही रहा था, तभी कहीं से बैलों के दो व्यापारी वहाँ आ पहुंचे। उन्होंने किसान से पुछा कि क्या उसके  बैल बिकाऊ हैं? किसान से सकारात्मक जबाब मिलने पर वे मोल-भाव करने लगे, तभी एक व्यापारी पूछ बैठा कि उसने उस खरगोश को हल से इस तरह क्यों बाँध रखा है? किसान स्वाभाव से ही बहुत चालक किस्म का था, उसने उस व्यापारी की उत्सुकता को भांप लिया और कहने लगा कि यह खरगोश तो उसकी जान है, बहुत ही आज्ञाकारी किस्म का है, वह इसको जो भी काम  बताता है, वह उसे तत्परता से करता है,  दूसरी तरफ वह उसके और उसकी बीवी के बीच संदेशवाहक का काम भी करता है। 

किसान की बातें सुनकर दोनों व्यापारी काफी चकित हुए। बैलों के मोलभाव की बात आई तो किसान ने कहा कि इतनी जल्दी भी क्या है भाई!  दोपहर के भोजन का समय हो रहा है, इसलिए घर चलकर भोजन कर, तदुपरांत  आराम से बैठकर मोलभाव करते है। दोनों व्यापारी किसान की बात मान गए। किसान ने झट से उस खरगोश को हल पर बंधी रस्सी से खोला और उसे गोद में उठाकर उसके कानो में बोला; "जा मेरे लाडले, घर जा, मालकिन को बोलना कि दो मेहमानों के लिए भी भोजन पका के रखना, हम बस थोड़ी देर में पहुँच रहे है।" यह कहकर उसने खरगोश को छोड़ दिया। छूटते ही खरगोश सरपट भागकर झाड़ियों में कही विलुप्त हो गया। व्यापारी कौतुहल भरी  निगाहों से यह सब देख रहे थे। 

थोड़ी देर बाद वे लोग जब किसान के घर पहुंचे तो व्यापारी यह देखकर चकित रह गए कि खरगोश किसान के घर में खूंटे से बंधा था। किसान की पत्नी ने खाना भी  दो आदमियों का अतिरिक्त पकाया हुआ था। व्यापारी यह सब देख यही समझ बैठे कि यह सब उस खरगोश की ही करामात है, जबकि हकीकत यह थी कि किसान की बीवी ने खाना तो किसान के निर्देशानुसार पहले से ही अतिरिक्त पका के रखा था और जिस खरगोश को किसान ने खेत से छोड़ा था वो तो कहीं जंगल  में भाग गया था, घर में बंधा खरगोश दूसरा वाला था। दोनों ही व्यापारी उस खरगोश पर फ़िदा थे, अत: दोनों ने किसान से कहा कि इस बारी बैल रहने दे, और ये बता की खरगोश को कितने में बेचेगा। चालाक किसान तो इसी मौके की तलाश में था, अत: उसने झट से कहा  कि वैसे तो मैं  खरगोश को बेचना नहीं चाहता था किन्तु चूंकि आप मेरे मेहमान है अत: मैं आपकी बात को भी नहीं टाल सकता और वैसे कीमत तो इसकी 25000 रुपये है, किन्तु तुम 20000 रूपये ही देकर ले जा सकते हो।    

व्यापारियों ने किसान को खुशी-खुशी 20000 रूपये चुकता किये और खरगोश लेकर चल पड़े।  जब वे अपने गाँव के समीप पहुंचे तो उन्होंने भी उस खरगोश के कानो में कहा की जाओ मालकिन से कहना कि हम बस थोड़ी देर में पहुँच ही रहे है, वह दो आदमियों का खाना तैयार रखे। यह कहकर जैसे ही उन्होंने खरगोश को आजाद किया, खरगोश सरपट भागकर कही अदृश्य हो गया। वे दोनों व्यापारी जब घर पहुंचे तो देखा की न तो वहां कोई खरगोश था और न ही घर की मालकिन ने उनके लिए खाना तैयार करके रखा था। व्यापारी ने अपनी पत्नी से पूछा कि क्या वहां कोई खरगोश नहीं आया था ? उसकी पत्नी ने तुरंत  प्रतिसवाल  किया कि आप किस खरगोश की बात कर रहे है? 

व्यापारियों को समझते देर न लगी कि उनके साथ धोखा हुआ है। वे उलटे पाँव किसान के गाँव पहुंचे और दोनों ही किसान पर बिगड़ने लगे कि उसने उनके साथ छल किया है। चालाक किसान ने उन्हें शांत कराया और पूछा कि खरगोश को आदेश देने से पहले क्या उन्होंने उसे अपना घर दिखाया था? दोनों व्यापारी सकपकाने लगे और एक स्वर में बोले कि उन्होंने खरगोश को अपना घर तो नहीं बताया था। अब बारी चालक किसान के बिगड़ने की थी, वह विलाप करने का नाटक करते हुए बोला अरे मूर्खों ! तुमने यह क्या कर दिया, मेरे लाडले खरगोश को  बिना अपना घर दिखाए ही आदेश देकर छोड़ दिया, बेचारा पता नहीं उस अन जान जगह पर कहाँ जंगलों में इधर-उधर भटक रहा होगा। अरे, तुमने ये क्या कर दिया? दोनों ही व्यापारियों को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे किसी अपराधी की तरह ग्लानी सी महसूस करने लगे।     

किसान उन्हें सांत्वना देते हुए अपने घर के अन्दर ले गया और चूंकि सर्दियों का मौसम था इसलिए उसने अपनी पत्नी को उनके लिए चाय बनाने को कहा। जिस कमरे में किसान ने उन्हें बिठाया था उसके दरवाजे और खिड़की के बीच में बाहर की तरफ से  किसान ने एक बकरा भी बाँध रखा था। बकरा लेटा  हुआ, अपने दोनों जबड़ो को हिलाता हुआ जुगाली कर रहा था। चाय पीते-पीते व्यापारियों ने एक साथ किसान से पूछा कि भई, तुम्हारा यह कमरा काफी गरम है, क्या बात है? किसान झट से बकरे की तरफ इशारा करते हुए बोला; सब अपने इस एयरकंडीशन की वजह से है। व्यापारियों ने आँखें फाड़ते हुए उसके तरफ देखकर  प्रश्नवाचक स्वर में  कहा, एयरकंडीशन ????  किसान बोला, हाँ भाई, सही सूना आपने! यही तो मेरा एयरकंडीशन है, बाहर से जितनी भी ठंडी हवा आती है उसे , यह खा जाता है, (जुगाली करते बकरे के मुह की तरफ उंगली से इशारा करते हुए ) देखो, अभी भी खा रहा है। जबकि उन व्यापारियों के गर्मी महसूस करने की वजह यह थी कि एक तो वे गरम-गरम चाय पी रहे थे और दूसरा, कमरे की जिस दीवार से सटकर वे बैठे थे, उसके ठीक पिछ्ले भाग में दीवार से सटा किसान की रसोई का चूल्हा था, जो उसवक्त जल रहा था, इसलिए कमरे में गर्मी थी। 

किसान की बात सुनकर दोनों व्यापारी आपस में फुसफुसाने लगे कि हमारे गाँव में तो यहाँ से भी ज्यादा ठण्ड है, क्यों न इसे ही खरीद ले। उन्होंने किसान से बकरे का भाव पूछा तो किसान ने वही रटा-रटाया जबाब दिया,कि  वैसे तो 25000/- रुपये है किन्तु तुम्हे मैं 20000 रूपये में दे दूंगा। अब दोनों व्यापारी उस बकरे को अपने गाँव ले आये और कमरे के बाहर बाँध दिया। रात को कड़ाके की सर्दी पडी और सुबह तक बकरा ठण्ड के मारे स्वर्ग सिधार चुका था। अगले दिन दोनों व्यापारी भागते-भागते किसान के गाँव पहुंचे तो किसान की पत्नी ने बताया कि वह तो जंगल गए है इस वक्त।  दोनों ही व्यापारी वक्त जाया नही करना चाहते थे, अत: वे भी किसान को पकड़ने  जंगल की और चल पड़े। इस बीच किसान जब अकेला जगल में जा रहा था तो उसके पीछे रास्ते में एक भालू पड गया। किसान उससे बचने के लिए एक पेड़ के पीछे छुपा तो भालू  ने मय पेड़  उसे पकड़ने की कोशिश की। किसान न सिर्फ चालाक बल्कि बहादुर किस्म का भी था। उसने झट से भालू के दोनों हाथ पकड़ लिए और उसे वहीं रस्सी से लपेटकर पेड़ से बांध दिया। उसके बाद किसान ने भालू के पिछवाड़े पर एक जोर की लात मारी तो भालू ने मल त्याग दिया। 

इस बीच किसान की नजर जंगल में उसी की तरफ आते दोनों व्यापारियों पर पडी तो उसे मामला भांपते देर न लगी। उसने फ़टाफ़ट अपनी जेब से कुछ रूपये निकाले और उन्हें भालू द्वारा विसर्जित मल में अच्छी तरह लोट-पोट कर दिया। ज्यों ही व्यापारी  एकदम उसके नजदीक पहुंचे तो किसान  एक-एक कर भालू के मल में लिपटे नोटों को निकाल-निकालकर साफ़ करने लगा और उन्हें सुखाने लगा। व्यापारियों ने उत्सुकताबश तुरंत पूछा कि किसान तुम ये क्या कर रहे हो? चालाक किसान बोला, मत पूछो भाई कि मैं क्या कर रहा हूँ। यही भालू तो मेरी रोजी का साधन है..............क्योंकि यह मल के साथ-साथ अपने पेट से नोट भी त्यागता है, जिन्हें साफ कर मैं अपनी रोजी-रोटी चलाता हूँ। दोनों ही व्यापारी एक साथ उछल पड़े, और बोले, अरे यह तो बड़ा ही अजूबा है, पहली बार ऐसा देखा और सूना है। वे किसान से बकरे के बदले दिए गए पैसे वापस मांगना भी भूल गए और बोले, तुम इस भालू को कितने में बेचोगे ? 

किसान ने एक बार फिर वही रटा-रटाया जबाब दिया कि वैसे तो इसकी कीमत 25000 रूपये है किन्तु तुम्हारे लिए मात्र 20000/- रूपये। लेकिन इस बारी किसान ने एक शर्त यह रखी कि चुकी वह भालू उसको जी-जान से प्यार करता है और उससे अलग नहीं होगा, इसलिए वे लोग उस भालू को उसके वहां से चले जाने के दो घंटे बाद ही खोलें। लालची व्यापारी किसान की हर बात मानने को तैयार थे, अत: किसान को भालू की कीमत देकर उन्होंने विदा कर दिया और जब उसके कहे अनुसार दो घंटे बाद उन्होंने भालू को खोला तो क्रोधित भालू  उनपर झपटा और पलभर में दोनों व्यापारियों को  उसने मार डाला।     

इतिश्री !                                                                                                                       

11 comments:

  1. बहुत ही बढ़िया कहानी ।

    ReplyDelete
  2. रोचक कहानी ...गजब के ही मूर्ख थे व्यापारी ।

    ReplyDelete
  3. कहानी अपना काम कर गई और सीख भी दे गयी!

    ReplyDelete
  4. हा हा हा...ये किसान कोई और नही सिर्फ़ ताउ ही था.:)

    रामराम

    ReplyDelete
  5. बहुत रोचक कहानी...

    ReplyDelete
  6. सुन्दर लेखन !!

    ReplyDelete
  7. लालची को मूर्ख बनाना आसान है !

    ReplyDelete
  8. जो लुटने को तैयार बैठा हो, उसे लूटने में क्या कठिनाई।

    ReplyDelete
  9. @ताऊ रामपुरिया:
    ताऊ जी , वालमार्ट वाले ढूंढ रहे है ऐसे किसानो को। सुना है कंट्री मैनेजर की पोस्ट देंगे :)

    ReplyDelete
  10. किसान वास्तव में ही चालाक निकला। काठ की हांड़ी को बार बार चढ़ा लिया।
    और व्यापारी परले दर्जे के मूर्ख !
    बढ़िया कहानी।

    ReplyDelete
  11. हाहा। लोभे लक्षण जाए! खैर, किसान को कम से कम भालु तो मिला! किसान मेधावी जो है अगर शेर भी उसे मिल जाता, शेर को उलटे सर लटका देता! और फिर समाचार-पत्र की पहले पन्ने की सबसे बड़ी खबर उसे दिखाता, की फ़्लान ढीमका वनमें श्रीमान वनराजसिंह को महाज्ञानी श्री चन्द्रगोपाल नामके किसान ने उल्टा लटका दिया है! और शेर शर्म के मारे नत मस्तक हो जाता ! वैसे भाई भालू को मुक्त क्यूँ करना चाहिए? हमारी तो कामना रहेगी, व्यापारी भी भालू को मुक्त ना करें । जान है तो जहां है, भालू जहाँ हैं, हे भाई व्यापारी, वहां ही ठीक है। वैसे सर! आप उत्तराँचल से है? क्या बात है! जय हो जय हो!

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...