Wednesday, June 3, 2020

एक अफसोस....।।


30-32 साल पहले युवावस्था मे जब पहली झलक मे यमनोत्री धाम देखा था तो उस वक्त की उस जगह का आखों देखा चित्रण कुछ यूं था:
दूर पहाड़ी ओठ से आती लकीराकार एक स्वच्छ निर्मल नीर धार...। नीचे पहाड़ी की ओठ मे बना एक प्राचीन मंदिर..। मंदिर के आसपास टिन की चादरों और तिरपाल की छत से ढके कुछ खपरैल, चाय-पानी की दुकानें...। बस, अन्यथा सब कुछ निर्जन।


आज... यहां जो तस्वीर चस्पा कर रहा हूँ वो गत बर्ष की है, जो मैंने कही से उठा ली थी। उसपर नजर गई तो
बडा दुख हुआ यह देखकर कि आज भी सब कुछ वैसा ही है, कुछ नहीं बदला इन 30 सालों मे... या यूं कहूं कि पहले वह तीर्थ स्थल ज्यादा आकर्षक नजर आता था।

कुछ सवाल जो मन मे खटके:-
1) क्या हमारी सरकारें जो फाइव ट्रीलियन के सपने सजोती हैं, और  पिछले 19 सालों से जहां राज्य स्तर की सरकार भी है, जो देवस्थानों के स्वामित्व को पाने को तत्पर है, क्या इतनी गरीब है कि मंदिर के आस-पास के खपरैलों और छप्परनुमा दुकानों को एक आकर्षक लुक न दे सके?
2) अगर, यह एक हिंदू तीर्थस्थल न होकर किसी और का धार्मिक स्थल होता तो क्या पूर्ववत सरकारें भी इसके प्रति इतनी उदासीन रहती?

यह चित्र मैने श्री तरुण पाल जी की फेसबुक वाल से लिया है। 30-32 साल पहले कुछ यूं था यमनोत्री धाम।


मैं समझता हूँ, मात्र कुछ ही लाख रुपयों के इंवेस्टमेंट से इस स्थान का स्वरूप ही बदल जाता, मगर अफसोस...।

3 comments:

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...