Friday, April 1, 2011

अप्रैल फूल !

गिरह बांधी है मिसरे की, मतले से मक्ते तक दर्द ने,
तुम कहो न कहो,खुद बात कह दी चेहरे की जर्द ने।

पतझड़ में होता पत्ता-पत्ता, डाली से खफा क्यों है,
कोंपल पैदा कर दिए है, दरख्तों पर जमी गर्द ने।

बुलंदियां पाने की चाहत में, तहजीब त्याग दी ,
गिराया कहाँ तक, हसरत-ए-दीदार की नबर्द ने।

हासिल न कुछ अब जिस्म पर से पर्दा हटाने से,
 णवत्ता तो बता दी है  प्रतिरूप नग्न-ए-अर्द्ध ने।

हर दिन तबसे 'फूल' ही नजर आता है 'परचेत',
पर्दा, बुर्का पहनना, शुरू कर दिया जबसे मर्द ने।  



..

22 comments:

  1. मूर्खता दिवस पर बधाइयाँ .......

    ReplyDelete
  2. बुलंदियां पाने की चाह में, तहजीब त्यागी क्यों हमने,
    गिरा दिया कहाँ तक हमें, हसरत-ए-दीदार की नबर्द ने !
    ...............ला-जवाब" जबर्दस्त!!

    ReplyDelete
  3. क्या बात है...बहुत बढ़िया सर जी!

    सादर

    ReplyDelete
  4. आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (2.04.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
    चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)

    ReplyDelete
  5. शुक्र है आज कमेंट बाक्स खुल गया!
    औह!
    यह तो बुद्धिमानी दिवस अधिक लगता है!
    बढ़िया रचना!

    ReplyDelete
  6. बस आज इतना ही कहूँगा मुर्ख दिवस की शुभकामनाएं....

    ReplyDelete
  7. पतझड़ में इस कदर पत्ता-पत्ता, डाली से खफा क्यों है,
    नाते नए पैदा कर दिए क्यों, रिश्तों पर जमी गर्द ने !!
    यह शेर तो बहुत जबरदस्त है |बहुत बढ़िया ....

    ReplyDelete
  8. सच कहाँ से ढूढ़ लाये?

    ReplyDelete
  9. ये फ़ैशन भी शुरू हो गया? वैरी गुड..

    ReplyDelete
  10. चेहरे की ज़र्द और अंडे की ज़र्दी..... अंतर बताओ तो जानें :)

    ReplyDelete
  11. हम मूर्खों की बधाई स्वीकार करें।

    ReplyDelete
  12. april fool day par mujh jaise 'fool' ko to wakai maza aa gaya Godiyal jee,aur ham 'parchet' na hokar 'achet' ho gaye. ........abhar.

    ReplyDelete
  13. बुलंदियां पाने की चाह में, तहजीब त्यागी क्यों हमने,
    गिरा दिया कहाँ तक हमें, हसरत-ए-दीदार की नबर्द ने !

    बढ़िया जी बढ़िया । मूर्ख दिवस पर इतनी समझदारी की बात !!

    ReplyDelete
  14. शुभकामनाएँ... मूर्ख बनाम बुद्धिमान दिवस की.

    ReplyDelete
  15. बुलंदियां पाने की चाह में, तहजीब त्यागी क्यों हमने
    बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  16. हमें तो हरेक दिन तबसे'फूल'ही नजर आता है'परचेत',
    पर्दा करना व बुर्का पहनना, शुरू कर दिया जबसे मर्द ने !!

    वाह...
    क्या खूब शेर कहा आपने....

    ReplyDelete
  17. आप सब को नवसंवत्सर तथा नवरात्रिपर्व की मंगलकामनाएं.

    ReplyDelete
  18. पतझड़ में इस कदर पत्ता-पत्ता, डाली से खफा क्यों है,
    नाते नए पैदा कर दिए क्यों, रिश्तों पर जमी गर्द ने !!

    बहुत सुन्दर...नवसंवत्सर की शुभकामनायें!

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...