Wednesday, February 16, 2011

मंसूबे !

सर्वप्रथम सभी मित्रों को ईद-ए-मिलाद ( हजरत मुहम्मद का जन्म दिन ) की मुबारकबाद !

काश कि भिन्न-भिन्न देश,काल और परिस्थितियों में अनेक धर्मभीरु मुल्लाओं ने निजी स्वार्थों और अपनी तुच्छ ख्वाइशों की पूर्ति के लिए अपने पैगम्बर के नाम का बेजा इस्तेमाल न किया होता और इन्हें सिर्फ अपनी धार्मिक आस्था की नीव की एक मजबूत कड़ी तक ही सीमित रखकर, दूसरे धर्म के अनुयायियों के लिए भी उन्हें उसी आस्था के प्रेरणा स्रोत का सूत्रधार बनाया होता, जिसकी ये खुद अपेक्षा करते है ! काश, कि ये यह समझ पाते कि किसी भी हस्ती और धर्म के प्रति सम्मान दिल में खुद जगता है, जोर-जबरदस्ती पैदा नहीं किया जा सकता ! अगर बल प्रयोग कर ही वह वास्तविक सम्मान हासिल किया जा सकता होता, तो आज इन कुछ तथाकथित अनुयायियों के द्वारा इस्लाम की वो गत दुनियाभर में नहीं की गई होती, जिसका गवाह समय-समय पर यह विश्व बनता आया है !

अभी कुछ दिनों पहले ही यह खबर आई थी कि २६/११ के मुंबई के आतंकी हमलों का मुख्य आरोपी हाफिज सईद, पाकिस्तानियों के तथाकथित कश्मीर एकजुटता दिवस के दिन लाहोर में एक बार फिर से भारत के खिलाफ अपनी गंदी जुबान से गीदड़ भभकियां देता दिखा ! एनडीटीवी की ६ फ़रवरी की रिपोर्ट देखे, उसने न सिर्फ भारत के खिलाफ आग उगली, अपितु एक बार फिर से "घज्वा-ए-हिंद" का ऐलान भी किया! मैं समझता हूँ कि शायद हमारे देश में बहुत कम लोग ही पाकिस्तान के कुछ अतिवादी तत्वों जैसे ज़ैद हामिद, जाकिर द्वारा यहाँ/ वहाँ की जनता को भारत के खिलाफ भड़काने की इस योजना "घज्वा-ए-हिंद" (मुसलमानों द्वारा भारत पर विजय ) के बारे में जानते होंगे, क्योंकि इक्का-दुक्का बार कुछ मीडिया में इसकी चर्चा भले ही हुई हो, मगर बहुत से कारणों की वजह से यह बात हमारे देश के मीडिया में खास नहीं उछली, और मैं समझता हूँ कि हमें इसे ख़ास तबज्जो देनी भी नहीं चाहिए ! गीदड़ो का काम है गुर्राना, अत: उन्हें गुर्राने दो ! Quote:The government is helpless. It can control nothing. It can keep nothing within the bounds of lawfulness or of decency. Its appeasement policies have spread poison. The mullahs of the mosques, mostly government servants, callफॉर hatred and in a disgraceful incident earlier this month in Lahore the mad mullah leader of the banned Jamaatud Dawa, Hafiz Saeed, a wanted man, addressing a rally, called for a nuclear jihad against India. He can get away with it; no one can stop him.Unquoteलेकिन हमें इनकी इस घृणित सोच से एकदम मुख भी नहीं मोड़ना होगा ! मानता हूँ कि ये ज्यादा कुछ नहीं कर सकते, फिर भी इनके घृणित मंसूबे, और पिछली अनेक गिरी करतूतों के मध्यनजर हमें इसे सिरे से नजरअंदाज भी नहीं करना चाहिए!

क्या है यह "घज्वा-ए-हिंद" ? इस्लाम के कुछ धर्मभीरु मुल्ला घज्वातुहिंद (घज्वा-ए-हिंद ) की हदीसों का संदर्भ देते हैं ; मैं यहाँ सिर्फ इनका संदर्भ ही उल्लेखित कर रहा हूँ ; ये हदीसे क्या है, इन्हें आप उपरोक्त को गूगल सर्च में डाल नेट पर पढ़ सकते है ! इनमे यह कहा गया है कि कैसे मुस्लिम सेना सिंध के रास्ते भारत पर आकर्मण करेगी! आप देखिये कि अगर थोड़ी देर के लिए यह भी मान ले कि ये हदीसे हजरत मुहम्मद द्वारा ही कही गई और इनमे सच्चाई है, तो यह सब तो बहुत पहले ही घटित हो चुका है इस देश में, फिर ये पाकिस्तानी और भारत के दुश्मन क्यों इन सबको वर्तमान परिपेक्ष में दिखाने के कोशिश कर रहे है ? कुछ ने तो इसकी तिथि भी घोषित कर रखी है;२४ जुलाई , २०१२ ! मकसद सिर्फ इतना है कि किस तरह लोगो में घृणा फैलाई जाए और ये अपने घृणित मसूबों की पूर्ति करते रहे ! आज ये भले ही इसे कश्मीर के परिपेक्ष में प्रस्तुत कर रहे हो,मगर यह मानकर चलिए कि कल हमने अगर इन्हें कश्मीर दे भी दिया तो ऐसा नहीं कि उसके बाद ये चुप बैठ जायेंगे ! ये फिर से कोई भी मुद्दा उछालकर घृणा के बीज बोते रहेगे !

इनमे और हममे बस यही फर्क है कि ये लोग अपने बच्चो को घृणा का पाठ पढ़ाकर किसी निर्दोष की जान लेना सिखाते है, जबकि हम अपने बच्चो को अपनी जान जोखिम में डाल किसी निर्दोष की जान बचाने का पाठ पढ़ाते है ! इन्हें कौन समझाए कि घृणा से घृणा और प्यार से प्यार पनपता है ! अज्ञानता सभी बुराइयों की जड़ है और ज्ञान, अज्ञान को ख़त्म करता है! मेरा भी मानना है कि हमें खुद किसी भी तरह की हिंसा की शुरुआत कभी नहीं करनी चाहिए, मगर दूसरी तरफ भविष्य की चुनौतियों और दुश्मन के नापाक इरादों के खिलाफ जागरूक होना भी बहुत जरूरी है!

रिपु देखता फिर खाब है,घज्वा-ए-हिंद का,
सर कुचल रख देंगे हम,बुजदिल दरिंद का !
होने न देंगे कामयाब, असुरी तदबीर को,
छीन कर दिखलाए वो, हमसे कश्मीर को !
दुश्मन कोई भी हो भला, लाहौर,सिंध का,
सर कुचल रख देंगे हम,बुजदिल दरिंद का !
निहत्थो पे वार, किस धर्म का मजमून है,
मासूमों के क़त्ल से,इन्हें मिलता सुकून है !
घृणा,आतंक फैलाना,काम दानव-वृन्द का,
सर कुचल रख देंगे हम,बुजदिल दरिंद का !

रिपु=दुश्मन , तदबीर=योजना, मजमून =सार

12 comments:

  1. इस देश की नींव ही नफ़रत ओर लाशो के ढेर पर बनी हे तो फ़िर इस से प्यार की उम्मीद ही क्यो, हां अगर कशमीर को आजाद भी कर दिया तो कशमीर का हाल इस कंगला देश से भी बुरा हो जायेगा, क्योकि जो हिस्सा अब इस के पास हे क्या वहां के लोग सुखी हे? यह बात हमारे कशमीरी भाईयो की समझ मे क्य नही आती,
    आप के लेख से सहमत हे जी

    ReplyDelete
  2. dhyan dena hoga andekhi hanikark hai aap sht pratisht shai hai ....

    ReplyDelete
  3. ऐसी बातों का परोक्ष या अपरोक्ष समर्थन करने वाले भी उतने ही दोषी हैं, फ़िर वो चाहे किसी भी धर्म के हों, जिसी भी विचारधारा के हों।

    ReplyDelete
  4. 24 जुलाई?
    मेरा जन्मदिन ही मिला था क्या इन लोगों को?
    यार जन्मदिन तो तसल्ली से मनाने दो। थोडा सा केक दे दूंगा तुम्हे भी।
    फिर कर लेना धज्वा ए हिंद या ध्वजा ए हिंद।

    ReplyDelete
  5. आपसे पूरी तरह सहमत हैं। ऐसे लोगों के नापाक ईरादों के प्रति सतर्क रहने की जरूरत है। कविता बहुत अच्छी लगी। धन्यवाद।

    ReplyDelete
  6. यह सब साम्राज्यवादी धर्म के तहत हो रहा है. वीर रस की आपकी कविता उत्तम है.

    ReplyDelete
  7. हसरतें न जाने कितनों की हैं, पर हम होने दें तब ना।

    ReplyDelete
  8. हिंसा की शुरूआत नहीं करनी चाहिये, लेकिन खबरदार रहना जरुरी है।

    प्रणाम

    ReplyDelete
  9. यार रहना होगा ... संभल जाओ ...

    ReplyDelete
  10. वास्तव में गोदियाल जी, आप के लेख पढ़ कर मष्तिष्क में अंधड चलने लगता है, मन विचलित होने लगता है,और सोंचने पर मजबूर हो जाता हूँ, कि सच्चाई कितनी कड़वी होती है....

    ReplyDelete

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...