Friday, January 28, 2011

पलायन !





कायनात की
कुदरती तिलस्म ओढ़े,
शान्त एवं सुरम्य,
उन पर्वतीय वादियों में
जंगल-झाड़ों को,
दिन-प्रतिदिन
सिमटते, सरकते देखा,
चट्टानों,पहाड़ों को
बारिश में
खिसकते,दरकते देखा।  


काफल, हीसर,किन्गोड़ से 

दरख्त-झाड़ियाँ
खूब लदे पड़े देखे,
वृद्ध देवदार,चीड व बांज
सब उदास,
खामोश खड़े देखे ,

कफु, घुघूती,हिलांस
अभी भी बोलती है,
किन्तु उनकी मधुर स्वर-लहरी,
कोई सुनने वाला ही नहीं,
ग्वीराळ, बुरांस
अभी भी खिलता है,
पर सौन्दर्य,
खुशबुओं पर मुग्ध,
पेड़ की टहनियों से उसे
कोई चुनने वाला ही नहीं,


शिखर, घाटियाँ
जिधर देखो,
सबकी सब सुनशान,
वीरान घर, खेत-खलिहान,
गाँव के गाँव यूँ लगे,
ज्यों शमशान,
शनै:-शनै: लुप्त होते
कुदरती जलश्रोत,
पिघलते ग्लेशियर,
तेज बर्फीली
सर्द हवाओं का शोर,
बारहमासी और बरसाती,
नदियों-नालों का प्रचंड देखा,
बहुत बदला-बदला सा
इस बार मैंने
अपना वो उत्तराखंड देखा।  

17 comments:

  1. यह मनुष्य का लोभ प्रकृति को लील रहा है, पर प्रकृति का क्रोध क्या यह झेल पायेगा।

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  2. पेड और परिंदों से सराबोर वादियों में सैर कराने के लिए आभार :)

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  3. satya ko kholti hui adbhut rachana

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  4. आदरणीय गोदियाल जी
    नमस्कार !
    सचित्र सैर कराने के लिये धन्यवाद|

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  5. यहां नरमुण्डों की गिनती से परेशान हैं, चारों तरफ वही.. और कुछ नहीं.

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  6. देवभूमि उत्तराखण्ड का सजीव चित्रण करने के लिए आभार!

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  7. शिखर, घाटियाँ
    जिधर देखो,
    सबकी सब सुनशान,
    वीरान घर, खेत-खलिहान,
    गाँव के गाँव यूँ लगे,
    ज्यों शमशान !

    बहुत संवेदनशील रचना ..

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  8. गोदियाल जी नमस्ते
    भानात्मक लेकिन बहुत सुन्दर कबिता लगता है गंगोत्री का दृश्य है पवन तट पर पवन कबिता के लिए बहुत-बहुत बधाई .

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  9. हम भुगते हे अपने कर्मो का फ़ल जल्द ही, अति सुंदर चित्र ओर बहुत सुंदर विचार

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  10. प्रकृति का दोहन सभी ओर ऐसे ही नजारे बढाते जाने की तैयारी में है ।

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  11. आपने आईसक्रीम खा कर पलायन कर दिया ,अच्छा लगा.

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  12. दुःख कचोट और गहरा गया...

    प्रभावशाली ,बहुत ही सुन्दर रचना...

    आपने जिस तरह इसे महसूस किया है,यह पीड़ा जन जन के ह्रदय में व्यप्त हो,यही ईश्वर से प्रार्थना है...

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  13. हा-हा, बस यों ही समझ लीजिये माथुर साहब ! मन के उदगार है सब ! खैर, आप सभी का इस उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक शुक्रिया !

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  14. बहुत दिल को छू गयी..मनुष्य का प्रकृति से खिलवाड़ कब तक चलता रहेगा, और क्या होगा उसका परिणाम...बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..

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  15. शनै:-शनै: लुप्त होते
    कुदरती जलश्रोत,
    पिघलते ग्लेशियर,
    तेज बर्फीली
    सर्द हवाओं का शोर,
    बारहमासी और बरसाती,
    नदियों-नालों का प्रचंड देखा,
    बहुत बदला-बदला सा
    इस बार मैंने
    अपना वो उत्तराखंड देखा !

    बहुत ही प्यारा और सुंदर वर्णन

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  16. badiya rachna.....jude hue chitron ne chaar chaand laga diye....sadhuwaad..

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  17. मार्मिक हालात का वर्णन क्या है .... बहुत संवेदनशील रचना ...

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।