कायनात की
कुदरती तिलस्म ओढ़े,
शान्त एवं सुरम्य,
उन पर्वतीय वादियों में
जंगल-झाड़ों को,
दिन-प्रतिदिन
सिमटते, सरकते देखा,
चट्टानों,पहाड़ों को
बारिश में
खिसकते,दरकते देखा।
काफल, हीसर,किन्गोड़ से
दरख्त-झाड़ियाँ
खूब लदे पड़े देखे,
वृद्ध देवदार,चीड व बांज
सब उदास,
खामोश खड़े देखे ,
कफु, घुघूती,हिलांस
अभी भी बोलती है,
किन्तु उनकी मधुर स्वर-लहरी,
कोई सुनने वाला ही नहीं,
ग्वीराळ, बुरांस
अभी भी खिलता है,
पर सौन्दर्य,
खुशबुओं पर मुग्ध,
पेड़ की टहनियों से उसे
कोई चुनने वाला ही नहीं,
शिखर, घाटियाँ
जिधर देखो,
सबकी सब सुनशान,
वीरान घर, खेत-खलिहान,
गाँव के गाँव यूँ लगे,
ज्यों शमशान,
शनै:-शनै: लुप्त होते
कुदरती जलश्रोत,
पिघलते ग्लेशियर,
तेज बर्फीली
सर्द हवाओं का शोर,
बारहमासी और बरसाती,
नदियों-नालों का प्रचंड देखा,
बहुत बदला-बदला सा
इस बार मैंने
अपना वो उत्तराखंड देखा।
कुदरती तिलस्म ओढ़े,
शान्त एवं सुरम्य,
उन पर्वतीय वादियों में
जंगल-झाड़ों को,
दिन-प्रतिदिन
सिमटते, सरकते देखा,
चट्टानों,पहाड़ों को
बारिश में
खिसकते,दरकते देखा।
काफल, हीसर,किन्गोड़ से
दरख्त-झाड़ियाँ
खूब लदे पड़े देखे,
वृद्ध देवदार,चीड व बांज
सब उदास,
खामोश खड़े देखे ,
कफु, घुघूती,हिलांस
अभी भी बोलती है,
किन्तु उनकी मधुर स्वर-लहरी,
कोई सुनने वाला ही नहीं,
ग्वीराळ, बुरांस
अभी भी खिलता है,
पर सौन्दर्य,
खुशबुओं पर मुग्ध,
पेड़ की टहनियों से उसे
कोई चुनने वाला ही नहीं,
शिखर, घाटियाँ
जिधर देखो,
सबकी सब सुनशान,
वीरान घर, खेत-खलिहान,
गाँव के गाँव यूँ लगे,
ज्यों शमशान,
शनै:-शनै: लुप्त होते
कुदरती जलश्रोत,
पिघलते ग्लेशियर,
तेज बर्फीली
सर्द हवाओं का शोर,
बारहमासी और बरसाती,
नदियों-नालों का प्रचंड देखा,
बहुत बदला-बदला सा
इस बार मैंने
अपना वो उत्तराखंड देखा।
यह मनुष्य का लोभ प्रकृति को लील रहा है, पर प्रकृति का क्रोध क्या यह झेल पायेगा।
ReplyDeleteपेड और परिंदों से सराबोर वादियों में सैर कराने के लिए आभार :)
ReplyDeletesatya ko kholti hui adbhut rachana
ReplyDeleteआदरणीय गोदियाल जी
ReplyDeleteनमस्कार !
सचित्र सैर कराने के लिये धन्यवाद|
यहां नरमुण्डों की गिनती से परेशान हैं, चारों तरफ वही.. और कुछ नहीं.
ReplyDeleteदेवभूमि उत्तराखण्ड का सजीव चित्रण करने के लिए आभार!
ReplyDeleteशिखर, घाटियाँ
ReplyDeleteजिधर देखो,
सबकी सब सुनशान,
वीरान घर, खेत-खलिहान,
गाँव के गाँव यूँ लगे,
ज्यों शमशान !
बहुत संवेदनशील रचना ..
गोदियाल जी नमस्ते
ReplyDeleteभानात्मक लेकिन बहुत सुन्दर कबिता लगता है गंगोत्री का दृश्य है पवन तट पर पवन कबिता के लिए बहुत-बहुत बधाई .
हम भुगते हे अपने कर्मो का फ़ल जल्द ही, अति सुंदर चित्र ओर बहुत सुंदर विचार
ReplyDeleteप्रकृति का दोहन सभी ओर ऐसे ही नजारे बढाते जाने की तैयारी में है ।
ReplyDeleteआपने आईसक्रीम खा कर पलायन कर दिया ,अच्छा लगा.
ReplyDeleteदुःख कचोट और गहरा गया...
ReplyDeleteप्रभावशाली ,बहुत ही सुन्दर रचना...
आपने जिस तरह इसे महसूस किया है,यह पीड़ा जन जन के ह्रदय में व्यप्त हो,यही ईश्वर से प्रार्थना है...
हा-हा, बस यों ही समझ लीजिये माथुर साहब ! मन के उदगार है सब ! खैर, आप सभी का इस उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक शुक्रिया !
ReplyDeleteबहुत दिल को छू गयी..मनुष्य का प्रकृति से खिलवाड़ कब तक चलता रहेगा, और क्या होगा उसका परिणाम...बहुत मर्मस्पर्शी प्रस्तुति..
ReplyDeleteशनै:-शनै: लुप्त होते
ReplyDeleteकुदरती जलश्रोत,
पिघलते ग्लेशियर,
तेज बर्फीली
सर्द हवाओं का शोर,
बारहमासी और बरसाती,
नदियों-नालों का प्रचंड देखा,
बहुत बदला-बदला सा
इस बार मैंने
अपना वो उत्तराखंड देखा !
बहुत ही प्यारा और सुंदर वर्णन
badiya rachna.....jude hue chitron ne chaar chaand laga diye....sadhuwaad..
ReplyDeleteमार्मिक हालात का वर्णन क्या है .... बहुत संवेदनशील रचना ...
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