देश में दिन-प्रतिदिन बिगडती क़ानून व्यवस्था की स्थित व लोगो में बढ़ती असुरक्षा की भावना, महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार के खिलाफ छिड़ी मुहिम एक बड़ी क्रांति का रूप धारण कर लेगी, ऐसा शायद ट्यूनीशिया और मिस्र के शासकों ने सपने में भी नहीं सोचा होगा। ट्यूनीशिया और मिस्र का जनविद्रोह यह दर्शाता है कि अब सत्ता का सुख भोगने वाले लोग अधिक दिनों तक जनता की जुबान बंद करके नहीं रख सकते। हालांकि यह विद्रोह लम्बे समय से अपेक्षित था, मगर नए साल के प्रथम माह में ही यह ज्वालामुखी बनकर फूट पडेगा, बड़े-बड़े भविष्यवेदाओं ने भी नहीं सोचा होगा।
बाहर वाले के लिए, या फिर हमारे खुद के द्वारा ही जग दिखावे के लिए, हम भले ही दुनिया की दूसरी बड़ी ताकत बनने के पथ पर अग्रसर हो, मगर आतंरिक सच्चाई यह है कि अपना यह देश फिलहाल महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की मार से जर्जर अवस्था में है। क़ानून और व्यवस्था दिन-प्रतिदिन बिगड़ रही है, असामाजिक तत्व खुले घूम रहे है। प्रशासनिक कुव्यवस्था की वजह से देश ने पिछले कुछ सालों से महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के नाम पर क्या नहीं देखा? बेरोजगारी का तो आज का ही ताजा उदाहरण हमारे समक्ष है, बरेली में आई टी बी पी की भर्ती के दौरान बेकाबू हुआ युवा आक्रोश। कोई पूछे कि क्यों हो रहा है यह सब ? सिर्फ पेट के लिए। देश के बेरोजगार युवकों को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। महंगाई नित आसमान छूती जा रही है, दाल-सब्जियां आमजन की पहुँच से बाहर हो चुकी है। और ऊपर से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के नाम पर पूंजी-बाजारों में आम -आदमी द्वारा निवेशित धन की होली खेली जा रही है।
दूसरी तरफ धन और कुर्सी की अंधी दौड़ में सत्तासीन लोग देश के संसाधनों की बंदरबांट में लगे है। जिसे मौक़ा मिल रहा, वह लूट-खसौट कर अपना घर भरने में लगा है। जब देश में टू जी स्पेक्ट्रम, कॉमवेल्थ खेल, आईपीएल, प्रसार भारती और आदर्श सोसायटी जैसे घोटालों की गूँज ही इस जंक लगी बहरी व्यवस्था को सुनाई न दे रही हो तो येदुरप्पा जैसे पता नहीं कितने हजारों घोटाले इन सफेदपोशों के घरों में बिछे कालीनो के नीचे ही दबकर दम तोड़ रहे होंगे। ऊपर से देश का वह मुखिया जिसे कल तक लोग एक सुन्दर छवि वाला इमानदार व्यक्ति के तौर पर जानते थे , वो और उनकी सरकार न्यायालय में भी झूठे बयान दे रहे है। इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी हमारी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कि जिस शख्स के ऊपर व्यवस्था में गड़बड़ियों पर नजर रखने का जिम्मा सौंपा गया है, वही खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा है।
अंत में इतना ही कहूंगा कि ट्यूनीशिया और मिस्र की जन-क्रांति हमसे सिर्फ एक मामले में भिन्न है कि उनके ऊपर एक लम्बे अर्से से अधिनायकवादी शासन है, जबकि हमारे देश में तथाकथित लोकतंत्र है । अत : उनके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचा था, बगावत, जबकि मेरा मानना है कि हमारे पास अभी भी दो विकल्प मौजूद हैं; सर्वप्रथम और सर्वोत्तम विकल्प यह है कि इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था के आज जो ठेकेदार बने बैठे है, जिनपर इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनने, सुचारू रूप से चलाने का जिम्मा है, वे समय रहते सिर के ऊपर से गुजर रहे पानी की धाराओं को देखने का कष्ट करे, फिर से ठन्डे दिमाग से अपने कृत्यों पर गहन मनन करे, अपनी की हुई गलतियों को सुधारें, स्वतंत्रता सेनानियों के नक्शेकदम का पालन करें और देश-जन की समस्याओं का तुरंत निराकरण करने का हर संभव बीड़ा उठाये। या फिर अंतिम विकल्प के तौर पर मिस्र, ट्यूनीशिया जैसी क्रांति का इंतजार करें। युवा पीढ़ी अगर अधिक बेचैन हुई तो निश्चित तौर पर वे भारतीय क्षितिज को बदलकर रख देंगे.
बाहर वाले के लिए, या फिर हमारे खुद के द्वारा ही जग दिखावे के लिए, हम भले ही दुनिया की दूसरी बड़ी ताकत बनने के पथ पर अग्रसर हो, मगर आतंरिक सच्चाई यह है कि अपना यह देश फिलहाल महंगाई, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार की मार से जर्जर अवस्था में है। क़ानून और व्यवस्था दिन-प्रतिदिन बिगड़ रही है, असामाजिक तत्व खुले घूम रहे है। प्रशासनिक कुव्यवस्था की वजह से देश ने पिछले कुछ सालों से महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी के नाम पर क्या नहीं देखा? बेरोजगारी का तो आज का ही ताजा उदाहरण हमारे समक्ष है, बरेली में आई टी बी पी की भर्ती के दौरान बेकाबू हुआ युवा आक्रोश। कोई पूछे कि क्यों हो रहा है यह सब ? सिर्फ पेट के लिए। देश के बेरोजगार युवकों को अपना भविष्य अंधकारमय नजर आ रहा है। महंगाई नित आसमान छूती जा रही है, दाल-सब्जियां आमजन की पहुँच से बाहर हो चुकी है। और ऊपर से मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के नाम पर पूंजी-बाजारों में आम -आदमी द्वारा निवेशित धन की होली खेली जा रही है।
दूसरी तरफ धन और कुर्सी की अंधी दौड़ में सत्तासीन लोग देश के संसाधनों की बंदरबांट में लगे है। जिसे मौक़ा मिल रहा, वह लूट-खसौट कर अपना घर भरने में लगा है। जब देश में टू जी स्पेक्ट्रम, कॉमवेल्थ खेल, आईपीएल, प्रसार भारती और आदर्श सोसायटी जैसे घोटालों की गूँज ही इस जंक लगी बहरी व्यवस्था को सुनाई न दे रही हो तो येदुरप्पा जैसे पता नहीं कितने हजारों घोटाले इन सफेदपोशों के घरों में बिछे कालीनो के नीचे ही दबकर दम तोड़ रहे होंगे। ऊपर से देश का वह मुखिया जिसे कल तक लोग एक सुन्दर छवि वाला इमानदार व्यक्ति के तौर पर जानते थे , वो और उनकी सरकार न्यायालय में भी झूठे बयान दे रहे है। इससे बड़ी त्रासदी और क्या होगी हमारी इस लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए कि जिस शख्स के ऊपर व्यवस्था में गड़बड़ियों पर नजर रखने का जिम्मा सौंपा गया है, वही खुद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरा है।
अंत में इतना ही कहूंगा कि ट्यूनीशिया और मिस्र की जन-क्रांति हमसे सिर्फ एक मामले में भिन्न है कि उनके ऊपर एक लम्बे अर्से से अधिनायकवादी शासन है, जबकि हमारे देश में तथाकथित लोकतंत्र है । अत : उनके पास सिर्फ एक ही विकल्प बचा था, बगावत, जबकि मेरा मानना है कि हमारे पास अभी भी दो विकल्प मौजूद हैं; सर्वप्रथम और सर्वोत्तम विकल्प यह है कि इस लोकतान्त्रिक व्यवस्था के आज जो ठेकेदार बने बैठे है, जिनपर इस लोकतांत्रिक व्यवस्था को चुनने, सुचारू रूप से चलाने का जिम्मा है, वे समय रहते सिर के ऊपर से गुजर रहे पानी की धाराओं को देखने का कष्ट करे, फिर से ठन्डे दिमाग से अपने कृत्यों पर गहन मनन करे, अपनी की हुई गलतियों को सुधारें, स्वतंत्रता सेनानियों के नक्शेकदम का पालन करें और देश-जन की समस्याओं का तुरंत निराकरण करने का हर संभव बीड़ा उठाये। या फिर अंतिम विकल्प के तौर पर मिस्र, ट्यूनीशिया जैसी क्रांति का इंतजार करें। युवा पीढ़ी अगर अधिक बेचैन हुई तो निश्चित तौर पर वे भारतीय क्षितिज को बदलकर रख देंगे.
तो, आप समझते हैं कि भारत की जनता भी क्रांति कर सकती है?
ReplyDeleteद्विवेदी साहब , सब्र का बांध
ReplyDeleteटूट जाए तो बहुत कुछ हो सकता है !
लोकतन्त्र में सबको कहने का अधिकार है, बस औरों के लिये सुनने की बाध्यता नहीं है।
ReplyDeleteअंतिम विकल्प क्रांति ?.........
ReplyDeleteमै तो हमेशा यही कहती हूँ जब तक जनता जागृत नही होगी , कदम नही उठायेगी तब तक कुछ नही हो सकता……………बदलाव के लिये हमेशा क्रांति की जरूरत होती है।
ReplyDeleteद्विवेदी जी की बात दोहराता हूं>..
ReplyDeleteभुखे मरने से अच्छा हे देश के लिये मरे , देश के लिये कुछ कर के मरे, ओर जब जनता भुखी मरती हे तो फ़िर ऎसी क्रांति ही जन्म लेती हे बडे बडे शासको के तखते हिल जाते हे, ओर वो शासक ओर उन के सहायक फ़िर पांव तले ही कुचले जाते हे ,
ReplyDeleteआप का लेख आंखे खोलने वाला हे, धन्यवाद
सार्थक ...जागरूक करने वाला आलेख.... आभार
ReplyDeleteभीतर ही भीतर लावा उगल रहा है ....देश भी ऐसे ही किसी जलते लावे पर बैठा है ...दबा गुस्सा आने लगा है बाहर, कल बरेली की घटना भी एक सबक ही है , कारण कुछ भी हो ...
ReplyDeleteजागग्रिती लाने वाला आलेख। समय रहते जब किसी समस्या का हल न निकाला जाये तो हालात और बिगड जाते है। धन्यवाद।
ReplyDeleteसही कहा आपने, जनआक्रोश को किसी भी तरह की सरकार नही दबा सकती । इतिहास गवाह है इसलिये बेहतर हो कि इतिहास से कुछ सबक लिया जाय।
ReplyDeleteक्रांति होने में कोई ज़्यादा देर नही लगती ... इसलिए सब्र का इंतेहाँ नही लेना चाहिए ...
ReplyDeleteसहमत हू आपकी बात से ..