Wednesday, February 2, 2011

विनय, रब से !

जिन्दगी कोई पहेली न बने, इसलिए सही  से डिफाइन किया करो ,
सबकी तमन्ना पूरी हो, आरजू न किसी की डिक्लाइन किया करो।  


परेशां हो 
क्यों भला कोई भी यहाँ जीवन के अपने लम्बे सफ़र में,
विनती है या रब,सभी के मुकद्दर को ढंग से डिजाइन किया करो।

खुशियाँ पाने को,आपसे दुआ मांगने की लत पड़ गई है लोगों को ,

आग्रह है कि बिन मांगे ही,खुद ही खुशियाँ कन्साइन किया करो।  


याचना करता है 'परचेत' इस मेले में कोई अपनों से न बिछड़े ,
और बिछड़े हुए को आप उसके अपनों से कम्बाइन किया करों।  


11 comments:

  1. कविता करते करते थक गए है
    कभी तो रिक्लाइन किया कर:)

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  2. प्रयोग की इस धारा में मेरा कमेंट भी ज्वाइन किया जाए :)

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  3. बहुत ही गर्जना और वर्जना से भरी है आज की आपकी रचना!
    अच्छे सुझाव दिये हैं आपने!

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  4. गजब कविता।
    अब शब्द को डिवाइन किया कर।

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  5. क्या बात हे जी आज तो बहुत काम हो रहा हे कही डिवाईन तो कही रिवाइन हो रहा हे...

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  6. गज़ब ...बहुत कमाल की हैं अलग सी पंक्तियाँ.....

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  7. क्या खूब लिखा है……बहुत सुन्दर्।

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  8. आपके निष्कर्ष से पूर्ण सहमती दोनों विकल्पों पर है ,डिवाइन द्वारा परामर्श के लिए धन्यवाद.

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  9. वाह वाह .. क्या काफ़िए निकाले हैं गौदियाल साहब ... सुभान अल्ला ... हर शेर में वह वाह निकल रहा है ....

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  10. लाज़वाब..बहुत अनूठी रचना..बहुत सुन्दर

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।