जिन्दगी कोई पहेली न बने, इसलिए सही से डिफाइन किया करो ,
सबकी तमन्ना पूरी हो, आरजू न किसी की डिक्लाइन किया करो।
परेशां हो क्यों भला कोई भी यहाँ जीवन के अपने लम्बे सफ़र में,
विनती है या रब,सभी के मुकद्दर को ढंग से डिजाइन किया करो।
खुशियाँ पाने को,आपसे दुआ मांगने की लत पड़ गई है लोगों को ,
आग्रह है कि बिन मांगे ही,खुद ही खुशियाँ कन्साइन किया करो।
याचना करता है 'परचेत' इस मेले में कोई अपनों से न बिछड़े ,
और बिछड़े हुए को आप उसके अपनों से कम्बाइन किया करों।
सबकी तमन्ना पूरी हो, आरजू न किसी की डिक्लाइन किया करो।
परेशां हो क्यों भला कोई भी यहाँ जीवन के अपने लम्बे सफ़र में,
विनती है या रब,सभी के मुकद्दर को ढंग से डिजाइन किया करो।
खुशियाँ पाने को,आपसे दुआ मांगने की लत पड़ गई है लोगों को ,
आग्रह है कि बिन मांगे ही,खुद ही खुशियाँ कन्साइन किया करो।
याचना करता है 'परचेत' इस मेले में कोई अपनों से न बिछड़े ,
और बिछड़े हुए को आप उसके अपनों से कम्बाइन किया करों।
कविता करते करते थक गए है
ReplyDeleteकभी तो रिक्लाइन किया कर:)
प्रयोग की इस धारा में मेरा कमेंट भी ज्वाइन किया जाए :)
ReplyDeleteबहुत ही गर्जना और वर्जना से भरी है आज की आपकी रचना!
ReplyDeleteअच्छे सुझाव दिये हैं आपने!
गजब कविता।
ReplyDeleteअब शब्द को डिवाइन किया कर।
क्या बात हे जी आज तो बहुत काम हो रहा हे कही डिवाईन तो कही रिवाइन हो रहा हे...
ReplyDeleteगज़ब ...बहुत कमाल की हैं अलग सी पंक्तियाँ.....
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है……बहुत सुन्दर्।
ReplyDeleteआपके निष्कर्ष से पूर्ण सहमती दोनों विकल्पों पर है ,डिवाइन द्वारा परामर्श के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteवाह वाह .. क्या काफ़िए निकाले हैं गौदियाल साहब ... सुभान अल्ला ... हर शेर में वह वाह निकल रहा है ....
ReplyDeleteलाज़वाब..बहुत अनूठी रचना..बहुत सुन्दर
ReplyDeleteक्या खूब लिखा है
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