जैसी कि पहले से ही उम्मीद थी, एक लम्बे अन्तराल के बाद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कल मीडिया से मुखातिब तो हुए मगर उनकी ढुलमुल भाषा शैली ने देश के आम जन को एक बार फिर से निराश किया ! जैसा कि मैं पहले भी कह चुका कि निसंदेह श्री सिंह जी अपने व्यक्तिगत जीवन में एक सम्मानित हस्ती है, लेकिन जब पूरे देश का सवाल हो तो उनकी व्यक्तिगत छवि से किसी देशवासी को क्या लेना देना? और पता नहीं क्यों, मगर कभी-कभार तो उनके प्रवचनों को सुनकर शरीर में एक अजीब सी उकताहट सी होने लगती है! क्या मनमोहन जी देशवासियों को इतना भोला और मूर्ख समझते है, जो बार-बार बस कुछ रटी-रटाई शब्दावली इस्तेमाल करते है? ईमानदारी से यह क्यों नहीं बताते कि आपने प्रधानमंत्री की हैसियत से पिछले सात सालों में किया क्या ? देश ने जो अराजकता, भ्रष्टाचार और महंगाई की स्थित पिछले सात सालों में देखी, वैसी शायद पहले कभी नहीं देखी होगी ! ऊपर से जनाब आप कहते है कि अभी तो हमारी सरकार को बहुत से लक्ष्य हासिल करने है ! अरे साहब, अब इस देश के आम आदमी की यह हैसियत नहीं रही कि वह आपकी सरकार के और अधिक घोटाले झेल सके ! आप कहते है कि हम दोषियों को सजा देंगे ! जनाब, आज देश आपसे पूछता है कि बात उछलने के बावजूद भी आप तीन साल तक तमाशा देखते रहे, आखिर क्यों ? और अगर कल इन घोटालों में कहीं भी श्रीमती सोनिया गांधी का नाम उजागर होता है ( जैसा कि श्री सुब्रमंनियम स्वामी ने आरोप लगाए है ) तो क्या आप श्रीमती गांधी को सजा दे पाएंगे ? आप खुद को जितना साफ़-सुथरा साबित करने की कोशिश करते है, वास्तविक धरातल पर हमें तो कहीं भी नजर नहीं आया कि आप वैसे है भी ! एक दागी ब्यूरोक्रेट को सीवीसी तो आप ही ने नियुक्त किया था, वह भी सब कुछ जानते हुए ! आज आप सारा दोष उसी राजा पर मड रहे है, जिसे कल तक बचाते फिरते थे, एक संस्था का अध्यक्ष होने के नाते क्या आपकी कोई जिम्मेदारी नहीं बनती ? सब कुछ जानते हुए भी कलमाडी क्यों अभी तक खुले घूम रहे है? आज फिर से देश २० साल पीछे धकेल दिया गया है, क्या गठ्वंधन-धर्म की आड़ में आप लोगो को देश की ऐसी-तैसी करने की खुली छूट दे दी जाए ? अभी कुछ समय पूर्व ही देश में अनाज के खराब रख-रखाव पर इतनी किरकिरी हुई थी और फिर कल के बारिश में अकेले गाजियाबाद में ही ऍफ़ सी आई के गोदाम के बहार खुले में डेड लाख गेहू की बोरिया बर्बाद हो गई, क्या सबक लिया था आपकी सरकार ने पिछली घटना से? कौन है इसके लिए जिम्मेदार ? डेड लाख क्विंटल गेहूं से छह लाख लोगो का छह महीने का गुजारा हो जाता! बजाये फालतू के दुनियाभर के आयोजन कराकर देश का पैसा बर्बाद करवाने से बेहतर क्या यह नहीं था कि बढ़ती जनसंख्या को ध्यान में रखते हुए, देश में पर्याप्त अनाज-भंडारों की व्यवस्था की जाये ? आप तो अर्थशास्त्री थे सरकार !
आपको गठबंधन धर्म और पार्टी धर्म तो याद रहता है, मगर आप यह भूल गए कि आपका एक धर्म और भी था; प्रधानमंत्री धर्म ! मगर याद रखिये कि अब यह जनता शिक्षित हो गई है और सिर्फ झुनझुने पकड़ा देने भर से आपको माफ़ नहीं करने वाली ! आप क्या दोषियों को सजा देंगे, आपको याद दिलाना चाहूँगा कि १९९३ में भी संसदीय निगरानी समिति ने वित् मंत्रालय की, जिसके सर्वेसर्वा आप थे, इस बात के लिए कटु आलोचना की थी कि आपकी कोताही की वजह से तत्कालीन समय में लगभग ८५ करोड़ रूपये का प्रतिभूति घोटाला हुआ था, और तब भी आपने इस्तीफ़ा देने की पेशकश करते हुए दोषियों को न बक्शे जाने की बात कही थी ! १७ साल बीत चुके उस घटना को, आज तक आपने क्या सजा दी दोषियों को यह देश जानना चाहता है ? बस करो पा जी बहुत हो गया, अब जो करेगी इस देश के जनता करेगी ! अंगरेजी में एक कहावत है;``Better to keep your mouth shut and be thought a fool than to open it and remove all doubt.``
आपको गठबंधन धर्म और पार्टी धर्म तो याद रहता है, मगर आप यह भूल गए कि आपका एक धर्म और भी था; प्रधानमंत्री धर्म ! मगर याद रखिये कि अब यह जनता शिक्षित हो गई है और सिर्फ झुनझुने पकड़ा देने भर से आपको माफ़ नहीं करने वाली ! आप क्या दोषियों को सजा देंगे, आपको याद दिलाना चाहूँगा कि १९९३ में भी संसदीय निगरानी समिति ने वित् मंत्रालय की, जिसके सर्वेसर्वा आप थे, इस बात के लिए कटु आलोचना की थी कि आपकी कोताही की वजह से तत्कालीन समय में लगभग ८५ करोड़ रूपये का प्रतिभूति घोटाला हुआ था, और तब भी आपने इस्तीफ़ा देने की पेशकश करते हुए दोषियों को न बक्शे जाने की बात कही थी ! १७ साल बीत चुके उस घटना को, आज तक आपने क्या सजा दी दोषियों को यह देश जानना चाहता है ? बस करो पा जी बहुत हो गया, अब जो करेगी इस देश के जनता करेगी ! अंगरेजी में एक कहावत है;``Better to keep your mouth shut and be thought a fool than to open it and remove all doubt.``
यह सब साम्राज्यवादी आका अमेरिका के इशारे पर की गयी कसरत है..
ReplyDeleteभोली भाली सुरत वाले होते हे शेतान बडे,
ReplyDeleteकुछ तो मजबूरियाँ रही होंगी...
ReplyDeleteजनता बनती है तभी तो बना रहे हैं…………।
ReplyDeleteसीख गये जी ये भी राजनेताओं वाली भाषा का उपयोग
ReplyDeleteकर सकते तो कर लेते
सब जानते हैं कि करना-धरना कुछ इनके बस में है नहीं फिर भी पडे हैं पीछे :)
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ReplyDeleteताऊओं से पार पाना इतना आसान नहीं है.:)
ReplyDeleteरामराम.
राजनीति कभी भी साफ-सुथरी नहीं रही!
ReplyDeleteजिनके वोटों से सरकारें बनती हैं, उन्हें इस सब का पता नहीं, जिन्हें इस सब का पता है वे वोट देने नहीं जाते..
ReplyDeleteयह एक सटीक उदाहरण है कि एक सफल वित्त मंत्री असफ़ल प्रधानमंत्री भी हो सकता है :(
ReplyDeleteअजी २-३ साल और इंतज़ार करो जी
ReplyDeleteक्या करें...मेरा भारत महान... और साथ में प्रधान मंत्री भी...
ReplyDeleteअपने पपेट पीएम की एक बात पर ध्यान दिया क्या? उन्होंने कहा है की वे अभी इस्तीफा नहीं देने वाले... अभी बहुत से काम बाकि हैं... उनका मतलब मैं बताता हूँ.. वे कहा रहे थे की अभी तो चंद घोटाले सामने आये हैं, अभी तो बहुत से और आने हैं, उसके बाद ही मैं हटूंगा... सोनिया मैडम ने भी मुझे ऐसे ही निद्रेश दिए हैं.. और आप सब तो जानते हैं मैं उनका कितना वफादार हूँ....
ReplyDeleteइंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार इंतज़ार.....करो
ReplyDeleteअब पाजी इतने बुजुर्ग हैं .... उन्हें माफ़ भी कर दो ....
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