Wednesday, February 23, 2011

क्या अहम् है,खबर की जानकारी या फिर आपका स्वास्थ्य ?
















बहुत दिनों से सोच रहा था कि इस बाबत चंद लाइने लिखूं, और आखिरकार आज हिमाचल के कुल्लू गाँव की एक खबर ने कलम हाथ में थमा ही दी! एक खबर के मुताबिक़ कुल्लू के एक गाँव के लोगो ने सामूहिक फैसला लिया कि दिन प्रतिदिन टीवी धारावाहिकों में बढ़ती अश्लीलता के चलते, अब यदि गाँव का कोई परिवार खर्च वहन कर पाने में सक्षम है तो हर घर में युवा वर्ग के लिए अलग टीवी सेट होगा,और बुजुर्गों के लिए अलग ! यदि आप यह खर्च नहीं उठा पाते तो जिस वक्त बुजुर्ग लोग टीवी देख रहे हो, कोई युवा उस स्थान पर नहीं जाएगा, इसी तरह यदि जब युवा वर्ग टीवी देख रहा हो तो कोई बुजुर्ग उस जगह नहीं टपकेगा ! यदि किसी वजह से ऐसी बंदिशे लागू करने में दिक्कत आ रही हो तो टीवी चलेगा ही नहीं! और वहाँ के लोगो ने इस फैसले का स्वागत भी किया है !

प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रोनिक मीडिया दोनों ही अपने-अपने क्षेत्र में अपनी अलग अहम् भूमिका रखते है (थे), बशर्ते कि वह अपना दायित्व निष्पक्ष निभाए ! मगर अफ़सोस कि आज के इस भ्रष्ट माहौल में चंद अपवादों को छोड़ निष्पक्ष कुछ भी नहीं है! यह भी आम भारतीय भली भांति जानता है कि आज इस देश में यह प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया कुछ लोगो के ही निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए हर गली कूचे में कुकुरमुत्ते की तरह उग आया है! जो सिर्फ अपने मातहतों की तामीरदारी में और प्रतिपक्ष को नुक्शान पहुचाने तक ही की खबरों को आम जनता के लिए परोसता है! आज का ही उदाहरण देख लीजिये, गुलाम मानसिकता और चाटुकारिता की सारी हदें पारकर कुछ अखबारों के मुख्य पृष्ठ पर बड़े अक्षरों में यह खबर छपी थी कि राहुल गांधी ने सड़क दुर्घटना में घायल एक व्यक्ति को अस्पताल पहुचाने में मदद की!

मैं यह हरगिज नहीं कहता कि उन्होंने कोई प्रशंसनीय काम नहीं किया, मगर ऐसी भी क्या प्रशंसा कि बहुत सी अहम् ख़बरों को गौण बनाकर पहले उसे ही प्राथमिकता दी जाये ! उलटे सरकार में बैठे लोगो के लिए तो यह शर्म की बात थी कि नई दिल्ली के एक हाई सेक्योरिटी जौन में, जहां चप्पे-चप्पे पर पुलिस मौजूद रहती है, वहां भी ऐसी घटनाएं हो रही है ! और इस बात को क्यों नहीं आँका जाता कि हो सकता है टक्कर मारकर भागने वाले टबेरा ड्राइवर ने इस हडबडाहट में ऐसी गलती की हो, चूँकि राहुल गाँधी का काफिला उधर से गुजर रहा था, और उसे खुद के ट्रैफिक जाम में फंसने की चिंता थी ? कहने का आशय यह है कि हमारे ये जो नेता लोग दिल्ली की सडको पर अपने लाव-लश्कर के साथ निकलते है, क्या वे कभी यह सोचते है कि उनके इस शहजादेपन से आम इंसान को क्या-क्या परेशानियां होती है?

खैर छोडिये, जब हमारा सुप्रीम कोर्ट ही यह कह चुका कि इस देश को तो भगवान भी नहीं बचा सकता, तो एक मेरे चिल्लाने से क्या होगा ? मगर, जो बात में आपके सामने रखना चाह रहा हूँ, वह यह कि आप लगभग सभी लोग सुबह चाय की चुस्कियों के साथ अखबार पढ़ते होगे! अंग्रेजो से बुरी लते सीखने के सिवाए हमने और सीखा ही क्या? पूरे अखबार में तू-तू, मै-मैं लड़ाई -पिटाई , घपले-घोटाले, क़त्ल और मारकाट की खबरे, बस ! शाम को ऑफिस से घर पहुँचने पर आप अपने ड्राइंग रूम में एलसीडी के सामने बैठ, रिमोट हाथ में लेकर चाव से बारी - बारी खबरिया और धारावाहिक चैनलों को भी देखते होंगे ! धारावाहिक चैनलों में अश्लीलता और खबरिया चैनलों में मार-काट, स्टंट, अंधविश्वास, पसंदीदा सरकार की चाटुकारिता, तिल का ताड़ बनाना, इत्यादि-इत्यादि आपको दिखाया जाता है!

अब लौटते है इनके परिणामों पर; सुबह अखबार पढ़ा, अगर आपमें ज़रा भी संवेदनशीलता है तो उसके तुरंत बाद आप अपना ब्लड प्रेशर चेक कीजिये, ई सी जी करवाइए! शर्तिया तौर पर कह सकता हूँ कि आपको अपना उच्च रक्तचाप मिलेगा ! दिनभर की थकान के बाद शाम को कुछ पल चैन के बिताने की सोचते है, सोचते है कि कुछ मनोरंजन होगा, लेकिन वहाँ भी वक्त की बर्बादी, बिजली का बिल,आँखों को तकलीफ, उच्च रक्तचाप , अवसाद, दिल की बीमारी, बहंगापन, गर्दन दर्द ,भूलने की बीमारी इत्यादि-इत्यादि,

पता नहीं क्या-क्या इन्हें पढने,देखने के बदले में नसीब होता है हमें ! और तो और यह भी देखा गया है कि जो महिलाए इसतरह की खबरे, धारावाहिक गर्भावस्था के दौरान अधिक देखती, पढ़ती है, उनकी होने वाली संतान में जन्मजात दिल की बीमारी होती है! बाकी आज के बच्चो में, चश्मा तो आम हो ही गया है ! ये अखबार और टीवी चैनल यह खबर तो बड़े चटपटे ढंग से परोसकर आपको पेश करते है कि मोबाइल फोन रखने के क्या-क्या नुकशान है, मगर कभी यह नहीं बताते कि अखबार पढने और टीवी देखने के कितने-कितने नुक्शान है! इसलिए, अगर स्वस्थ रहकर कुछ साल चैन की जिन्दगी जीनी है, तो इन्हें तिलांजली देने में ही समझदारी है ! इन ख़बरों को पढ़, सुनकर हमें/आपको कुछ भी हासिल नहीं होने वाला, आपके खबर पढने सुनने से इस देश से भ्रष्टाचार ख़त्म नहीं हो जाएगा, बल्कि आप भी भ्रष्ट बनने के गुर ढूढने लगोगे, लेकिन हाथ लगेगा कुछ नहीं, जो कुछ था उसे तो महाभ्रष्ट खा-पीकर डकार चुके ! :) बाकी जैसी आपकी मर्जी !

13 comments:

  1. गोदियाल जी आपके सुझाव बहुत अच्छे है अब तो यही शेर कहना पड़ेगा आराम बड़ी चीज है मुंह ढक कर सोइए , किस किस को याद कीजिये किस किस को रोइए |आनंद दायक पोस्ट बधाई.

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  2. जब टेंशन और काम का बोझ सर पे ज्यादे हो तो चुपचाप समझिये कि आप बिलकुल फ्री हैं, और घर जा करके सो जाइये.

    टेंशन लेने का नहीं देने का .

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  3. वो आह भी करते हैं तो अखबार की सुर्खी बन जाते हैं
    हम दुनिया के सितम सहें तो भी चर्चा नहीं होता :)

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  4. टी.वी.फ्रिज और कूलर व्यक्तित्व एवं स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं ही.इनसे बचना ही बेहतर उपाय हैं.

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  5. बहुत ही शानदार व्यंग्य है सर!

    सादर

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  6. अब तो समझें टीवी वाले।

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  7. गोंदियल साहब,

    इस देश की आम जनता का खून तो देश की निक्कमी सरकार और भ्रष्टाचारी नेता पी जाते हैं तो भला ब्लड में प्रेसर कहाँ से आयेगा.


    नोट : मेरे उपरोक्त विचार आपके लेख को पढ़ कर ही उत्पन्न हुए हैं जिन्हें मैं "तेरा तुझको अर्पण" वाली तर्ज पर यहाँ टिपण्णी रूप में दर्ज कर रहा हूँ. इस टिपण्णी के पीछे कोई अन्य छिपा हुआ मंतव्य नहीं है. आप इसे उधार में दी गयी टिपण्णी समझ कर प्रतिउत्तर में मेरे ब्लॉग पर टिपण्णी करने के लिए बाध्य नहीं हैं.

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  8. आपके व्यंग्य में सिक्षा और सन्देश दोनों हैं!

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  9. हो सकता हे यह एक ड्रामा ही हो जिसे जान कर दिखाया गया हे, हे सब बकवास ही, ओर राहुल गांधी हे कोन? यह सब तो चंद वोटे बटोरने के लिये होता हे, जिस के लिये यह ऎसी हरकते ओर ड्रामे करता हे, आप ने बहुत सुंदर लिखा धन्यवाद

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  10. सचमुच हद कर राखी है सालों ने

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  11. आपके सुझाव बहुत अच्छे है

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प्रश्न -चिन्ह ?

  पता नहीं , कब-कहां गुम हो  गया  जिंदगी का फ़लसफ़ा, न तो हम बावफ़ा ही बन पाए  और ना ही बेवफ़ा।