उपस्थित मित्रगण हमारी बेसब्री और
झुँझलाहट का मजा लिए जा रहे थे,
हमारी नजर उनके अंदाज पर थी
और वो हमें नजरंदाज किये जा रहे थे।
चिकनी चुपडी बातें कर,
मैने भी बिठाया
अपनी भोली सी बीवी को सर,
'इन्टरनेशनल वीमन डे' पर ।
मैने भी बिठाया
अपनी भोली सी बीवी को सर,
'इन्टरनेशनल वीमन डे' पर ।
अंतराष्टीय महिला दिवस पर समर्पित:-
अगर आपके घर के अगले गेट के बाहर से बीवी चिल्ला रही हो और पिछले गेट के बाहर से आपका कुक्ता भौंक रहा हो तो ग्यानी लोग कह गये कि पिछला गेट खोलो, क्यौंकि कुत्ता अन्दर आ जाने के बाद चुप हो जायेगा ।
अग्रिम छमा :-)
अगर आपके घर के अगले गेट के बाहर से बीवी चिल्ला रही हो और पिछले गेट के बाहर से आपका कुक्ता भौंक रहा हो तो ग्यानी लोग कह गये कि पिछला गेट खोलो, क्यौंकि कुत्ता अन्दर आ जाने के बाद चुप हो जायेगा ।
अग्रिम छमा :-)
कलयुग मे यही हस्र होना था, काठ के उल्लुऔं का,
कुछ हमारी ही मूर्खता थी, कुछ जमाना बना गया ।
कुछ हमारी ही मूर्खता थी, कुछ जमाना बना गया ।
पानी फ्री मे पी गये जमुना का,
डालके दिल्ली के घडे मे कंकर,
और जीने की कला भी सिखा गए,
श्री-श्री रवि शंकर ।
डालके दिल्ली के घडे मे कंकर,
और जीने की कला भी सिखा गए,
श्री-श्री रवि शंकर ।
कुछ लुच्चे, लफ्गौं की छीना-झपटी मे जब
एक "पहाडी घोडा" अपनी टांग गंवा बैठा,
तभी जा के ये अहसास हुआ 'परचेत' कि
इस बेदर्द जहां मे, हम 'मैदानी' गधे ही बेहतर ।
एक "पहाडी घोडा" अपनी टांग गंवा बैठा,
तभी जा के ये अहसास हुआ 'परचेत' कि
इस बेदर्द जहां मे, हम 'मैदानी' गधे ही बेहतर ।
यहां की विरासतों ने हर तहजीब को इस खूबसूरती से उकेरा है,
कि अपने इस सनातनी मुल्क में, 'काण्ड' भी "सुन्दर" होते है।
कि अपने इस सनातनी मुल्क में, 'काण्ड' भी "सुन्दर" होते है।
कुछ यूं खो दिया खुदको हमने ऐ जिंदगी, तेरी तलाश में,
दिनभर बटवे में ढूढ़ते है तुझको और शाम को गिलास में।
दिनभर बटवे में ढूढ़ते है तुझको और शाम को गिलास में।
हाल-ए-दिल !
जब पड़ोसन पूछ बैठी उनसे, हमारी खुशहाल जिंदगी का राज,
वह बोली, स्लिपर निशाने पे सही लगे तो हम खुश, वरना वो।
और तंगदिल ज़माना, यकीं कर बैठा उनकी काबिले-उक्ति पर,
क्या करते, खुदा भी तो हमपर, कुछ इसतरह ही मेहरबान हुआ।
जब पड़ोसन पूछ बैठी उनसे, हमारी खुशहाल जिंदगी का राज,
वह बोली, स्लिपर निशाने पे सही लगे तो हम खुश, वरना वो।
और तंगदिल ज़माना, यकीं कर बैठा उनकी काबिले-उक्ति पर,
क्या करते, खुदा भी तो हमपर, कुछ इसतरह ही मेहरबान हुआ।
न जाने क्यों अक्सर इस जहां ने, हमें कंटक ही दिये,
हमने तो सदा ही सहृदय उनको, कुसुम निवेदित किये।
ऐ दस्तूर-ए-ज़िंदगी, तुझे आजतक हम समझ न पाए,
झुकने को ये दुनियाँ, सज़दा समझ लेती है किसलिए।
" नित बदलता वक्त"
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कभी कर्मठ जहां वाले,
अपनी मनपसंद शक्ल को
स्वमानस पटल पर अंकित किया करते थे,
अब तो इस कदर आलसी हो गए
कि अंतरजाल के सहारे,
जुकरवर्ग के 'दरखास्त' "मुख-दर्ज" पर
चस्पा करते भी हैं तो जम्हाई लेकर।
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कभी कर्मठ जहां वाले,
अपनी मनपसंद शक्ल को
स्वमानस पटल पर अंकित किया करते थे,
अब तो इस कदर आलसी हो गए
कि अंतरजाल के सहारे,
जुकरवर्ग के 'दरखास्त' "मुख-दर्ज" पर
चस्पा करते भी हैं तो जम्हाई लेकर।
सुविधा हेतु मिलता -जुलता अंग्रेजी अनुवाद :
Those were the days,
when diligent people used to
colonized in their heart
their darling saize.
Now a days,
we sluggish use zuckerberg's
'app' " facebook" to record
ours any charming image .
Those were the days,
when diligent people used to
colonized in their heart
their darling saize.
Now a days,
we sluggish use zuckerberg's
'app' " facebook" to record
ours any charming image .
तरस आता है कभी-कभी अपनी जिन्दगी जुझारू पे,
सुबह को दवा पे जीते हैं, और शाम को दारू पे।
सुबह को दवा पे जीते हैं, और शाम को दारू पे।
अपने विकास के एजेंडे को
अपने ही पास रखो, मोदी जी ,
लाइट आ गई, लाइट आ गई......
दिन में १० बार यह दोहराने से
जिस ख़ुशी का एहसास मिलता है ,
अरे, वो तुम का जानो।
अपने ही पास रखो, मोदी जी ,
लाइट आ गई, लाइट आ गई......
दिन में १० बार यह दोहराने से
जिस ख़ुशी का एहसास मिलता है ,
अरे, वो तुम का जानो।
प्यार-मुहब्बत में शक-शुबहा की ये मदें क्यों हैं,
परस्पर दिलों में दूरी नहीं, फिर ये सरहदें क्यों है,
उम्र गुजर गई है सारी, इसी जुस्तजू में, ऐ दोस्त,
कि जिंदगी के हर मोड़ पर इतनी मयकदें क्यों है।
परस्पर दिलों में दूरी नहीं, फिर ये सरहदें क्यों है,
उम्र गुजर गई है सारी, इसी जुस्तजू में, ऐ दोस्त,
कि जिंदगी के हर मोड़ पर इतनी मयकदें क्यों है।
है दुआ रब से बस इतनी कि तुम्हारी हर इक मुराद पूरी हो,
हमने तो जिन्दगी मे ऐ यार, कभी कोई आरजू ही नही की ।
हमने तो जिन्दगी मे ऐ यार, कभी कोई आरजू ही नही की ।
यूं अब तक जिये तो किसी और के रहमोंकरम पर ही हम,
किंतु ऐ हुजूर, खुद के लिए मांगी हुई दुआ सदा बेअसर ही गई ।
किंतु ऐ हुजूर, खुद के लिए मांगी हुई दुआ सदा बेअसर ही गई ।
फ़क़त नौकरी बदलने से फजीहत कम नहीं होती,
मगर फिर भी नौकरी की अजीयत कम नहीं होती। अजीयत=परेशानी
जहां भी चले जाओ, सब के सब लाले एक जैसे है,
जितना भी नफ़ा दे दो इनकी नीयत कम नहीं होती।
मगर फिर भी नौकरी की अजीयत कम नहीं होती। अजीयत=परेशानी
जहां भी चले जाओ, सब के सब लाले एक जैसे है,
जितना भी नफ़ा दे दो इनकी नीयत कम नहीं होती।
मैं दायरों में रहूँ या फिर दायरों से निकलू,
मेरे ख्यालात,मेरे जज्बात सिर्फ तुम से है ,
तुम साथ हो तो मुकद्दर पे हुकूमत अपनी,
मेरे हर रिश्ते की सौगात, सिर्फ तुम से है।
ख़ुशी हुई यह जानकार
कि मोदी जी शीघ्र ही
"स्मार्ट सिटी" लॉंच करेंगे,
मगर मन में सवाल ये है
कि वाशिंदे तो
अपने ही देश के लोग होंगे न ???
कि मोदी जी शीघ्र ही
"स्मार्ट सिटी" लॉंच करेंगे,
मगर मन में सवाल ये है
कि वाशिंदे तो
अपने ही देश के लोग होंगे न ???
इसबार ख़्वाबों ने
मन की मुराद पूरी कर दी,
'कल्पना' हमसफ़र बनी
तो पंखों ने भी
उड़ान लम्बी भर दी।
मन की मुराद पूरी कर दी,
'कल्पना' हमसफ़र बनी
तो पंखों ने भी
उड़ान लम्बी भर दी।
रोज सुबह, दुआ मांगता हूँ कि मैं, रास्ता भूल जाऊं मैखाने का ,
और शाम ढले, मौका-ए-लुत्फ़, हिसाब भूल जाता हूँ पैमाने का।
और शाम ढले, मौका-ए-लुत्फ़, हिसाब भूल जाता हूँ पैमाने का।
कितनी ही बार खुद को समझाया,
साक़ी को भी खूब धमकाया
कि कल से हमारी-तुम्हारी दोस्ती ख़त्म,
मगर आजतक वो कमबख्त 'कल ' नहीं आया।
साक़ी को भी खूब धमकाया
कि कल से हमारी-तुम्हारी दोस्ती ख़त्म,
मगर आजतक वो कमबख्त 'कल ' नहीं आया।
अब भला और किस नाम से ताबीर करे इस रुत को ,
बगिया बदहाल है और माली के सिर पर बहार आई है। :-) जय केजू की
बगिया बदहाल है और माली के सिर पर बहार आई है। :-) जय केजू की
Dekha Kalyug ka ye kaisa asool,
fool ke sar par bhi khil gaye phool
fool ke sar par bhi khil gaye phool