Thursday, November 2, 2017

अवंत शैशव !


यकायक ख़याल आते हैं मन में अनेक, 
मोबाईल फोन से चिपका आज का तारुण्य देख, 
बस,सोशल मीडिया पे बेसुद, बेखबर, 
आगे, पीछे कुछ आता न उसको नजर, 
उसे देख मन में आते है तुलनात्मक भाव, 
कौन सही, मेरा शैशव या फिर उसका लगाव ?  

लड़कपन में हम तो  कुछ इसतरह 
वक्त अपना जाया करते थे,
हर दिन अपना, दोस्तों संग, 
घर से बाहर ही बिताया करते थे,
कभी गुलशन की अटखेलियां,
कभी  माली से शरारत, 
तो कभी दबे पाँव गुल से लिपटी हुई 
तितली को पकड़ने जाया करते थे।

सहज-अनुभूति!

निमंत्रण पर अवश्य आओगे, दिल ने कहीं पाला ये ख्वाब था, वंशानुगत न आए तो क्या हुआ, चिर-परिचितों का सैलाब था। है निन्यानबे के फेर मे चेतना,  कि...